आईनेक्स्ट के इसी कैंपेन की तर्ज पर एसोचैम ने भी एक सर्वे किया, जिसके रिजल्ट काफी हद तक आईनेक्स्ट के रिजल्ट्स से मैच करते हैं। इस सर्वे में एसोचैम ने साफ कहा है कि यह सरकार और पैरेंट्स दोनों के लिए वेकअप कॉल है, क्योंकि भारी बैग के कारण बच्चे अभी से बैक पेन जैसी सीरियस प्रॉब्लम्स का सामना कर रहे हैं। साथ ही उसने यह भी कहा है कि स्कूल्स सेंट्रल गवर्नमेंट के चिल्ड्रेंस बैग एक्ट 2006 के रूल्स का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं। आईनेक्स्ट ने भी अपने कैंपेन में इसी बात का खुलासा किया था।

अलार्मिंग सिचुएशन

एसोचैम के सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन (एसडीएफ) ने देश के दस शहरों दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, बंगलुरू, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद, लखनऊ, जयपुर और देहरादून में यह सर्वे कराया। मार्च और अप्रैल में करीब दो हजार बच्चों पर सर्वे किया गया। इसमें चौंकाने वाले रिजल्ट सामने आए। एसोचैम के हेल्थ कमेटी के चेरमैन डॉ। बीके राव ने बताया कि यह अलार्मिंग सिचुएशन है।

सर्वे के अनुसार, करीब 82 परसेंट बच्चे कम से कम 35 परसेंट अधिक वजन अपनी पीठ पर उठाते हैं। हैवी स्कूल बैग के कारण बैक पेन आम समस्या हो रही है, जो वक्त के साथ बढ़ती जाती है। दस साल से कम उम्र के करीब 58 परसेंट बच्चे माइल्ड बैक पेन से जूझते हैं। यह पेन बाद में बढ़कर क्रोनिक पेन में बदल जाता है।

क्या था सर्वे का मकसद

एसोचैम के अनुसार सर्वे का मुख्य मकसद यह जानना था कि बच्चे के स्कूल बैग का एवरेज वेट कितना होता है और इससे उनके शरीर पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है। सर्वे के दौरान करीब दो हजार बच्चों के अलावा दो हजार पेरेंट्स से भी बात की गई। अधिकतर पेरेंट्स ने कंप्लेन की कि बच्चे अपने सात और आठ पीरियड के लिए करीब 21 किताब और कॉपी डेली कैरी करते हैं। बच्चों ने भी बताया कि इतनी किताबों का बोझ उठाना उनकी मजबूरी है, क्योंकि स्कूल में लॉकर की सुविधा नहीं मिलती है।

 

गवर्नमेंट से अपील

एसोचैम के सेक्रेट्री जनरल डीएस रावत कहते हैं कि सर्वे के दौरान यह भी रिजल्ट आया है कि लड़कियां सबसे अधिक बैक पेन की चपेट में आ रही हैं। एसोचैम ने गवर्नमेंट से अपील की है कि वे इस सिचुएशन पर ध्यान दें। अधिकतर प्राइवेट स्कूल्स ने यह सोच लिया है कि हैवी स्कूल बैग का मतलब है बेहतर एजुकेशन। यह चिंता का विषय है।

The findings of the survey

-82 परसेंट बच्चों के बैग का वजन उनके बॉडीवेट से 35 परसेंट तक ज्यादा है।

-12 साल के कम उम्र के करीब 1500 बच्चे ठीक तरीके से नहीं बैठ सकते।

-लड़कियों में बैक पेन की प्रॉब्लम लड़कों के कंपैरिजन में ज्यादा होने की संभावना रहती है।

what law says

-A schoolbag should not weigh more than 10% of a child’s body weight

-Nursery and kindergarten

students should carry no schoolbag

-The state government should provide appropriate lockers at school

-Schools should issue

-guidelines on bags

-Schools violating such provisions are liable to face a penalty of up to 3 lakhs 

   As the schools see it

-Children carry as much as over 35 per cent of their weight on their backs।

-Nursery and kindergarten carry schoolbag

-Schools don’t have appropriate lockers 

-Schools have no guidelines on bags

-Schools violating- No such provisions of penalty

ज्यादा भार ढोने से बैक पेन और रीढ़ की हड्डी में परेशानियां बढ़ रही है। ज्यादा भार के कारण स्ट्रेस से नुकसान हो सकती है। इससे मसल्स-स्केलटल सिस्टम पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इस पर जल्द ध्यान देने की जरूरत है, नहीं तो बच्चों की हेल्थ पर असर पड़गा।

- Dr। B K Rao, Chairman ASSOCHAM Health Committee