गोरखपुर (ब्यूरो)।ऐसे में उनको बीमारियों ने घेर लिया है। इन सबके बीच अब मोबाइल का एक और साइड इफेक्ट सामने आया है। अगर आप अपने बच्चे को चुप कराने के लिए उसे मोबाइल दे दे रहे हैं और इसके बाद से उसे पढऩे या प्रॉपर बोलने में शिकायत हो रही है तो अलर्ट हो जाने की जरूरत है। मोबाइल के एक्सेसिव यूज से वह वर्चुअल ऑटिज्म का शिकार हो रहा है। साइकोलॉजिस्ट टीम की स्टडी में यह बात सामने आई है।

350 पेरेंट्स पर सर्वे

सेंट एंड्रयूज कॉलेज की साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की टीम ने 350 पेरेंट्स व उनके बच्चों पर स्टडी की। अपने ही कॉलेज के स्टूडेंट्स के जरिए उन्होंने एक क्वेश्चनायर तैयार कर उसे फिल करवाया। सर्वे के दौरान 350 पेरेंट्स से उनके 3-5 वर्ष उम्र के बच्चों पर बेस्ड सवाल पूछे गए, सवाल के दौरान उन्होंने जो जवाब दिया, उसके हिसाब से यह बात सामने आई कि वर्चुअल ऑटिज्म का शिकार हो रहे हैं। इसकी वजह से उनकी रीड ऑफ स्पीच डेवलपमेंट में प्रॉब्लम आने लगी है। यह आगे चलकर उनके लिए गंभीर समस्या पैदा कर सकती है।

घंटों स्क्रीन पर बीताता है वक्त

साइकोलॉजिस्ट डॉ। सुनीता पॉटर, डॉ। जेके पांडेय, डॉ। रमेंद्र त्रिपाठी व श्वेता जॉनसन की संयुक्त टीम ने वर्चुअल ऑटिज्म पर स्टडी की। इस दौरान यह देखा गया कि घर में छोटा बच्चा लगातार रोता है, इसकी वजह से पेरेंट्स के काम में व्यवधान होता है। ऐसे में वह बच्चों को चुप कराने के लिए मोबाइल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स थमा देते हैं। इससे बच्चा शांत बैठकर घंटों स्क्रीन पर टाइम स्पेंड करने लगता है। इतनी कम उम्र में बच्चों को फोन देने से उनके मानसिक विकास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसको साइकोलॉजी टर्म में वर्चुअल ऑटिज्म कहते हैैं। इसमें बच्चों में रीड ऑफ स्पीच की प्रॉब्लम होती है। वह कुछ भी पढ़ नहीं पाता है। बोलने में उसे दिक्कत होती है। वह क्लीयर बात नहीं कर पाता है।

पेरेंट्स रहते हैैं परेशान

डॉ। रमेंद्र त्रिपाठी बताते हैैं कि कोरोना से शुरू हुई मोबाइल स्क्रीन की लत बच्चों के मानसिक विकास पर असर डाल रही है। हर दूसरे या तीसरे दिन वर्चुअल ऑटिज्म (स्वलीनता) की परेशानी लेकर परिजन के संग 2 से 5 वर्ष तक के बच्चे पहुंच रहे हैं। पेरेंट्स अक्सर कम उम्र में बच्चों में ऑटिज्म के लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं। कम उम्र में ही इसके संकेत दिखते हैं। हाईपर एक्टिव होना इसका शुरुआती लक्षण है।

भाषा का कम विकास होता है

उन्होंने बताया कि नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (एनसीबीआई) के रिसर्च के अनुसार 29,461 में से 875 यानि 2.97 प्रतिशत बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण पाए जा रहे हैं। रिसर्च के अनुसार कम उम्र में बच्चे जब 2 से 3 घंटे स्क्रीन पर समय देते हैं तो वे फोन के आदी होने लगते हैं। उनमें फोन के अलावा दूसरी चीजों की समझ कम हो जाती है। ऐसे में असामान्य व्यवहार, संज्ञात्मक कमी और भाषा का कम विकास आम समस्या है।

बच्चे हो हो रहे चिड़चिड़े

क्लीनिकल जेनेटिक्स एक्सपर्ट डॉ। रमेंद्र त्रिपाठी बताते हैैं कि 2 से 5 वर्ष की आयु दिमाग के विकसित होने की होती है। इस उम्र में बाहरी और परिवार के लोगों से बातचीत, शारीरिक गतिविधियां, माइंड गेम बच्चों के दिमाग को तेज करते हैं। बच्चे जितनी ज्यादा गतिविधियां करेंगे उतने ही शार्प बनेंगे। फोन के आदी बच्चे थोड़ी देर फोन न मिलने पर चिड़चिड़े हो जाते हैं, चिल्लाने और रोने लगते हैं। अत्यधिक स्क्रीन का इस्तेमाल दिमाग को सुन्न भी कर देता है।

कुछ इस तरह के पूछे गए थे सवाल

1- आपके बच्चे का नाम व उम्र क्या है

2- वह किस तरह की एक्टिविटी करता है

3- वह मोबाइल पर कितनी देर तक समय देता है

4- क्या वह मोबाइल पर कॉर्टून देखना पसंद करता है

5- पेरेंट्स मोबाइल क्यों देते हैैं।