- एचआईवी संक्रमित होने के बाद अब पेशेंट्स में से खत्म होने लगी जिंदगी जीने की ख्वाहिश

- कईयों ने छोड़ी दवाइयां, तो कई अब हुए लापरवाह

- पांच सालों में डेढ़ हजार से ज्यादा संक्रमितों ने तोड़ा है दम

GORAKHPUR: जिंदगी की ख्वाहिश हर किसी को है, लेकिन मौत से जूझकर जिदंगी की जंग लड़ने वालों की तादाद मुट्ठी भर भी नहीं है। उनकी जिंदगी में ऐसी खतरनाक बीमारियां दाखिल हो चुकी हैं कि उससे लड़ते-लड़ते अब लोगों की उम्मीदें दम तोड़ने लगी हैं। लाइलाज और जानलेवा बीमारी के तौर पर जाना जाने वाला एड्स भी मरीजों की उम्मीदों को तोड़ रहा है। पांच सालों में जिले के डेढ़ हजार से ज्यादा एचआईवी संक्रमितों ने दम तोड़ दिया है, तो वहीं अब इलाज करा रहे लोगों की उम्मीदें भी टूटने लगी हैं। जिले में बड़ी तादाद में एचआईवी संक्रमितों ने जहां दवाइयों से किनारा कर लिया है, वहीं कुछ धीरे-धीरे इसे छोड़ने की राह पर हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें अब भी जिंदगी की आस है और वह जंग एचआईवी से लगातार जंग लड़ रहे हैं।

516 इंफेक्टेड ने बंद की दवाई

एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी की गिरफ्त में आने के बाद लोगों की जिंदगी जीने की आस टूटने लगी है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि एआरटी के आंकड़े इस बात को साफ बयां कर रहे हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो जिले में 8400 संक्रमित एआरटी सेंटर्स में एनरोल हैं। वहां से इनका रेग्युलर फॉलोअप लिया जाता है और सेंटर्स से ही दवाएं दी जाती हैं। रिपोर्ट पर नजर डालें तो पिछले कुछ माह से 516 संक्रमितों ने दवाएं लेना बंद कर दिया है। इतना ही नहीं 223 संक्रमित ऐसे हैं, जो अब रेग्युलर दवाएं नहीं ले रहे हैं। ऐसे में जिम्मेदार टेंशन में हैं और उनको रेग्युलर करने की कोशिशों में लग गए हैं।

5 सालों में 1606 की मौत

जिले में एआरवी पर 7107 एचआईवी संक्रमित रजिस्टर्ड हैं। यहां पर यह एंटरोवायरल ट्रीटमेंट करा रहे हैं। मगर अक्टूबर के आंकड़ों पर ध्यान दें, तो लास्ट अक्टूबर तक 1606 पेशेंट्स जिंदगी की जंग हार चुके हैं। 723 संक्रमित ऐसे हैं, जिनमें एचआईवी डायग्नोज हुआ और उन्होंने गोरखपुर में ही रजिस्ट्रेशन कराया, लेकिन अब उन्हें ट्रीटमेंट और फॉलोअप्स के लिए संबंधित जिले में भेज दिया गया है। इसके साथ ही 126 एचआईवी संक्रमित अब बिल्कुल ढीले पड़ने लगे हैं और यह 3 माह से ज्यादा समय बीत जाने के बाद फॉलोअप के लिए भी नहीं पहुंचे हैं।

हाईलाइट्स -

टोटल एचआईवी केस - 8400

प्री-एआरटी डेथ - 328

प्री-एआरटी लॉस ऑफ फॉलोअप - 57

एआरवी में एनरोलमेंट - 7107

एआरटी डेथ - 1606

अदर एआरटी सेंटर्स पर ट्रांसफर केस - 723

एंटरोवायरल ट्रीटमेंट बंद किया - 516

एआरटी लॉस ऑफ फॉलोअप - 126

मिस एंटरोवायरल ट्रीटमेंट - 223

एक्टिव केस - 3913

बॉक्स -

साल में दस संक्रमित डोनर

जिले में वालंटरी ब्लड डोनेशन करने वालों की तादाद भी बढ़ी है। लोगों को ब्लड डोनेशन के जरिए सोशल सर्विस करने में भी अच्छा लग रहा है। बीआरडी ब्लड बैंक प्रभारी डॉ। राजेश राय ने बताया कि साल में करीब 10 हजार यूनिट ब्लड कलेक्ट हो रहा है। हालांकि ब्लड को इस्तेमाल करने वालों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है और इसकी वजह से हमेशा ही ब्लड की क्राइसिस बनी रहती है। सबसे खास बात यह है कि हर साल ऑन एवरेज 10 साल के एचआईवी संक्रमित भी ब्लड डोनेट करने के लिए पहुंच रहे हैं। हालांकि इन ब्लड्स को जांच के बाद इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

काफी संक्रमित अब फॉलोअप्स के लिए नहीं पहुंच रहे हैं, जिनको टीम लगातार संपर्क करने की कोशिश कर रही है। अब तक 516 संक्रमितों ने एंटरोवायरल ट्रीटमेंट बंद कर दिया है। पांच साल में एचआईवी संक्रमित करीब 1606 लोगों की मौत भी हो चुकी है।

- डॉ। रामेश्वर मिश्रा, जिला क्षय रोग अधिकारी