-फादर्स डे पर पढि़ए 33 साल के युवा की कहानी जो तमाम बेसहारा बच्चों के लिए पिता से बढ़कर है

GORAKHPUR: कभी रेलवे जंक्शन की तरफ चले जाइए। वहां लंबी दाढ़ी, बिखरे बाल और साधारण सी वेशभूषा में एक शख्स दिखेगा आपको। कभी किसी अनाथ को अपनों सा दुलार देता हुआ तो कभी किसी मासूम पर प्यार बरसाता हुआ। इस शख्स का नाम है आजाद पांडेय और वह जंक्शन ही नहीं, शहर और आसपास के तमाम अनाथ और बेसहारा बच्चों के लिए सुपर फादर हैं। सड़क पर कूड़ा बेचने वाले बच्चे हों या फिर भीख मांगने वाले नन्हें हाथ, उनको सहारा देकर मुख्य धारा में लाने के लिए आजाद ने जिंदगी की खुशियां कुर्बान कर दीं। टीनएज लड़कियों को सेक्स रैकेट से बचाने से लेकर मानसिक रोगी बच्चों को सकुशल उनके घर तक पहुंचाकर सबके चेहरे पर स्माइल बिखेर रहे हैं। पांच साल के भीतर आठ सौ से अधिक बच्चों को उनके घर पहुंचाकर मुख्यधारा से जोड़ चुके आजाद पांडेय पिता जैसी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

बदल रहे हैं सूरत

रेलवे स्टेशन की बात हो या शहर की पॉश कॉलोनियां, इन सभी जगहों पर कूड़ा बीनते हुए बच्चे नजर आ जाएंगे। कहीं ये लोगों से राह चलते भीख मांगते हैं तो कहीं पर ये नशे की लत में गिरफ्तार नजर आते हैं। राह गुजरते हुए आम लोग भले इन बच्चों को इग्नोर कर दें। लेकिन आजाद की नजरें पड़ने पर इनकी सूरत और सीरत जरूर बदल जाती है। आजाद ऐसे बच्चों को अपने सेंटर पर ले जाते हैं। फिर उनकी काउंसिलिंग करके मुख्य धारा से जोड़ने की कवायद करते हैं। साफ-सफाई के बाद नया कपड़ा पहनाकर ऐसे बच्चों के हाथों में कलम और कॉपी पकड़ाई जाती है। वहीं से इन बच्चों की जिंदगी में बदलाव शुरू हो जाता है। बतौर अभिभावक आजाद बच्चों को पढ़ने से लेकर उनको मुख्यधारा में ले आने के लिए सारे जतन करते हैं।

मानसिक रोगियों का बनते हैं सहारा

शहर में ऐसे भी मानसिक रोगी बच्चे भटकते हुए मिलते हैं जिनको लोग पगला कहकर दुत्कार देते हैं। कभी किसी ने तरस खा लिया तो भले दो रोटी दे दें। लेकिन कोई न तो उनकी भावनाएं समझ पाता है। न ही उनको घर तक पहुंचाने में मदद की कोशिश करता है। ऐसे बच्चों पर निगाह पड़ते ही आजाद सेवा के लिए तत्पर हो जाते हैं। मानसिक रोगी बच्चों के हाथ-पैर में चोट लगने से कभी-कभी हालत खराब हो जाती है। ऐसे बच्चों की साफ-सफाई, मरहम-पट्टी से लेकर घाव ठीक करने तक आजाद खुद ही सेवा करते हैं। तीन साल पूर्व झंगहा एरिया से भटककर रेलवे स्टेशन पहुंचे एक बच्चे के पैरों में कीड़े पड़ गए थे। तब आजाद ने खुद पैरों के घाव ठीक करके उसे घर तक पहुंचाया। बच्चे के परिजन उसे पाने की उम्मीद खो चुके थे। लेकिन उनकी आंखों में चमक आजाद की वजह से लौट सकी।

26 बच्चों के लिए चला रहे पाठशाला

कैंपियरगंज, मूसाबार निवासी आजाद पांडेय का असली नाम बेहद ही कम लोगों को पता होगा। लावारिस हाल बच्चों की मदद, उनकी पढ़ाई-लिखाई का भार उठाने वाले आजाद का वास्तविक नाम श्रीकृष्ण पांडेय है। आजाद की पहल पर एनई रेलवे के एक्स सीएमई अजय कुमार सिंह ने लावारिस हाल, सड़क पर कूड़ा बीनने वाले और भीख मांगने वाले बच्चों की पढ़ाई के लिए नि:शुल्क स्कूल शुरू किया। वहां पर 26 बच्चे पढ़ रहे हैं। कोविड प्रोटोकॉल की वजह से क्लास नहीं चल रही है। लेकिन बच्चों की पढ़ाई जारी है।

पूर्व एसएसपी की हेल्प से कई बच्चियों की मदद

लावारिस हाल भटककर रेलवे स्टेशन सहित अन्य जगहों पर पहुंचने वाली बच्चियों के गलत हाथों में पड़ने का खतरा रहता है। ऐसे खतरे से वाकिफ आजाद पांडेय ने टीनएजर्स के लिए रेस्क्यू आपरेशन भी चलाए हैं। गोरखपुर के पूर्व एसएसपी डॉ। सुनील गुप्ता की मदद से सौ से अधिक बच्चियों को उनके घर पहुंचाया।