गोरखपुर (ब्यूरो)। लोगों को राहत दिलाने के लिए 85 झाईं पीडि़त युवतियों और महिलाओं के ब्लड के सैंपल लिए हैं। स्किन रोग विभाग की देखरेख में शुरू हुए सैंपल की जांच एम्स के माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने शुरू कर दी है। महिलाओं के चेहरे पर दाग और धब्बे तो किसी तरह मिट जाते हैं, लेकिन एक बार झाई होने पर यह प्रॉब्लम कई वर्षो तक रहती है, जो जल्दी ठीक नहीं होती है। एम्स के स्किन रोग विभाग की ओपीडी में हर 10 में तीन से चार मरीज झाई के इलाज के लिए आ रही हैं। इसे देखते हुए स्किन रोग विभाग ने रिसर्च शुरू कर दिया है।
पूर्वांचल की महिलाओं में यह समस्या आम हो गई है। साइंस की भाषा में इस बीमारी को हाईपर प्रिग्मेंटेशन कहते हैं। इसके होने के कई कारण होते हैं। पहला कारण सूर्य की रोशनी में अल्ट्रारेज किरणें निकलती हैं, जो रंग बनाने वाली कोशिकाओं को बढ़ा देती है। इसके कारण चेहरे पर काले रंग का धब्बा बनने लगता है, जिसे झाईं कहते हैं। दूसरा बड़ा प्रोजेस्ट्रोन हार्मोस में बदलाव है। तीसरा कारण थायराइड भी है। लेकिन, पूर्वाचल में महिलाओं के चेहरे पर झाई होने का बड़ा करण मिलेनोसाइट इंडेक्शन ट्रांसफार्मिंग फैक्टर हैं।
- डॉ। सुनील कुमार गुप्ता, स्किन रोग विशेषज्ञ एम्स