- डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के पोस्ट कोविड सेंटर पर आ रहे ब्रेन फॉग के केस, लोगों में भूलने की हुई डिज़ीज

- पेशेंट्स को दी जा रही मेंटल एक्सरसाइज की सलाह

GORAKHPUR:

कोरोना संक्रमण से उबर चुके पेशेंट्स को अभी भी उनके अटेंडेंट लेकर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं। वजह पोस्ट कोविड पर ब्रेन फॉग का अटैक। ब्रेन फॉग में लोगों को भूलने की बीमारी हो रही है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के पोस्ट कोविड सेंटर में साइकेट्रिस्ट के पास ब्रेन फॉग के पेशेंट्स तेजी के साथ आ रहे हैं। ये वह पेशेंट हैं, जो लंबे समय तक अस्पताल में इलाज, ऑक्सीजन और दवा पर रहे, लेकिन वहां से निकलने के बाद अब जब वह अपनों के बीच हैं तो उन्हें ब्रेन फॉग से जूझना पड़ रहा है। इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन जिला अस्पताल में आने वाले ऐसे मरीजों के लिए साइकेट्रिस्ट मेंटल एक्सरसाइज ही बेहतर उपाय मान रहे हैं।

डेली आ रहे 15-20 केस

कोरोना की सेकेंड वेव में डेल्टा वैरिएंट की चपेट में आने से जहां इलाज के दौरान हॉस्पिटल या घर में लंबे समय तक ऑक्सीजन पर रहे। स्टेरायड का सेवन किया। बदन दर्द, फीवर आदि की समस्याओं से जूझते रहे। वहीं, पोस्ट कोविड पेशेंट के लिए डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की न्यू बिल्डिंग में बनाए गए पोस्ट कोविड सेंटर में सांस संबंधी रोगियों से ज्यादा ब्रेन फॉग वाले पेशेंट इन दिनों आ रहे हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के पोस्ट कोविड सेंटर में तैनात साइक्रेटिस्ट डॉ। अमित शाही बताते हैं कि ब्रेन फॉग वाले केसेज ज्यादा आ रहे हैं। करीब डेली 15-20 मरीज ऐसे हैं, जिन्हें यह समस्या आ रही हैं। इन्हें भूलने की बीमारी है, सुबह अगर किसी काम के लिए आप टारगेट देते हैं तो वह अपने टारगेट को भूल जाते हैं, पोस्ट कोविड में प्रीवलेंस वाले केसेज आ रहे हैं। खासतौर पर यह एग्जीक्यूटिव क्लास फैमिली में देखी जा रही है। इनके इलाज के लिए मेंटल एक्सरसाइज बताई जा रही हैं। ताकि वह स्वस्थ हो सकें। चूंकि, इसकी कोई खास दवा नहीं है। ऐसे में दवा देना भी साइड इफेक्ट को न्यौता देने के बराबर होगा। ज्यादातर युवा व बुजुर्ग दोनों में देखे जा रहे हैं। डॉ। शाही ने बताया कि कोरोना संक्रमण में बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द व खांसी जैसी समस्याएं होती हैं, लेकिन अब एक जटिल समस्या भी सामने आने लगी है। जो ब्रेन फॉग है। कोरोना संक्रमण के ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक चलने वाली यह बीमारी लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव छोड़ रही है।

क्या है ब्रेन फॉग

यह एक गंभीर चिकित्सकीय अवस्था है, जिसमें सेंट्रल नर्वस सिस्टम सही तरीके से काम नहीं करता। चेतना बाधित होती है, जिसकी वजह से थकना व दुविधा की स्थितियां पैदा होती हैं। इसके अलावा ब्रेन फॉग ध्यान और याददाश्त को भी प्रभावित करती है। प्रभावित व्यक्ति उचित निर्णय नहीं ले पाता है।

बात रखने में भी होती है कठिनाई

-अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका मेडरिक्सिव में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के करीब 58 फीसदी मरीजों ने ब्रेन फॉग या मानसिक दुविधा के लक्षण दिखाई दिए।

- इस प्रकार कोविड-19 के अहम लक्षणों में ब्रेन फॉग भी शामिल हो गया।

- कोरोना पेशेंट बताते हैं कि उन्हें अपने विचारों को व्यक्त करने अथवा संदेश देने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

- यहां तक कि बोलने के दौरान प्रवाह भी बाधित होता है।

पेशेंट्स जिन्हें हुई भूलने की बीमारी

केस-1: रामजानकी नगर निवासी विनय अपने 32 वर्ष के बेटे को लेकर बेहद परेशान हैं। वह नोएडा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता है, लेकिन कोरोना पॉजिटिव होने के बाद वह अब ब्रेन फॉग का शिकार हो गया है। डाक्टर से इलाज के लिए संपर्क किया तो डॉक्टर ने दवा के बजाय मेंटल एक्सरसाइज की सलाह दी।

केस-2: नौसढ़ निवासी सविता देवी के पति की उम्र 56 वर्ष है, वह मुंबई में नौकरी करते हैं, लेकिन कोविड पॉजिटिव होने के बाद घर आकर इलाज कराया। ऑक्सीजन सेचुरेशन कम होने पर उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था, लेकिन उनकी हालत सीरियस हुई तो उन्हें वेंटिलेटर पर भी रखना पड़ा। फिलहाल वह कोरोना से जंग तो जीत लिए, लेकिन अब उन्हें भूलने की बीमारी हो गई है। डॉक्टर उन्हें ब्रेन फॉग बता रहे हैं।

साइकेट्रिस्ट के टिप्स

- ब्रेन फॉग से बचने के लिए शारीरिक व मानसिक सक्रियता है जरूरी।

- अपने डेली रूटीन में रुचिकर क्रियाकलापों को शामिल करें।

- घर में रहते हुए बच्चों को पढ़ाएं। सुडूको गेम खेलें। अंतर ढूंढने वाले गेम खेलने का प्रयास करें।

- मंत्र याद करने की कोशिश करें।

- फ्रेंड्स के साथ अपने व्यूज शेयर करें। ठहाका लगाकर हंसने का प्रयास करें। कोविड प्रोटोकॉल का पालन जरूर करें।

एक्सपर्ट ओपिनियन

दिमाग पर असर डालता है हाइपोक्सिया

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग के एसोसिएट प्रो। डॉ। आमिल हयात खान ने बताया कि जिन संक्रमितों के शरीर में ऑक्सीजन की कमी हुई। उसका दिमाग पर बेहद असर पड़ा है। इसे हाइपरक्सिया ब्रेन इंजरी कहते हैं। 40 साल से अधिक उम्र के गंभीर संक्रमित इसके अधिक शिकार हैं। इसके कारण दिमाग के न्यूरल नेटवर्क में गड़बड़ी हो जाती है।

एकाग्रता की हो रही कमी

डॉ। आमिल हयात ने बताया कि हाइपोक्सिया ब्रेन इंजरी का सबसे ज्यादा असर एकाग्रता पर पड़ रहा है। पोस्ट कोविड मरीजों में एकाग्रता की कमी दिख मिली है। इसका सीधा असर याददाश्त पर भी पड़ रहा है। एकाग्रता में कमी की वजह से लोग जल्दी चीजों को भूल जा रहे हैं। ऐसे में मरीजों को अपनी याददाश्त कमजोर होने का अहसास हो रहा है। बीमारी में दिमाग में सूचना संचार की तंत्रिकाएं भी बिगड़ जा रही हैं। इलेक्ट्रॉनिक और केमिकल इंपल्शन में सर्किट गड़बड़ा रहा है। इससे दिमाग की तंत्रिकाओं को सही सूचना नहीं मिल पा रही।

ये हैं सिम्पटंस

- याददाश्त की कमी होना।

- ध्यान लगाने में दिक्कत होना।

- चीज़ों को समझने में दिक्कत होना।

- सीखने में दिक्कत होना।

- चिड़चिड़ापन।

- रुचि का अभाव।

- जल्दी थकान होना।

- भ्रम की स्थिति में रहना।

- निर्णय न ले पाना।