-शहर के अधिकतर वार्डो में नगर निगम नहीं कराती फागिंग, लोगों ने क्वायल पर खर्च किए रुपए

-नगर निगम के फाइलों में ही भगाए जा रहे मच्छर

-बिजनेसमैन की चांदी, लिक्विड, क्वॉयल और अगरबत्ती का मार्केट गरम

GORAKHPUR: शहर में मच्छर जनित बीमारियों को लेकर हेल्थ विभाग ने अलर्ट जारी किया है। वहीं, नगर निगम की ओर से वार्डो में प्रापर फागिंग नहीं होने से बीमारियों ने पैर पसारना शुरू कर दिया है। इस डर से ही गोरखपुर में मच्छर मारने वाली कंपनियों की चांदी है। आंकड़ों के अनुसार, गोरखपुराइटस ने अपनी सेहत को बचाने के लिए पिछले महीने करीब पांच करोड़ रुपए मच्छर मारने पर खर्च किया हैं।

मार्केट में सबसे ज्यादा डिमांड क्वॉयल और लिक्विडेटर की है। पूजा की अगरबत्तियों की तर्ज पर मच्छर भगाने वाली अरगबत्तियां मार्केट में हैं। मच्छर मारने वाले स्प्रे की भी काफी ि1डमांड है।

बच्चों को रिझा रहा मार्केट

व्यापारियों का कहना है कि कंपनियां व्यापार को बढ़ाने के लिए नए उत्पाद मार्केट में ला रही हैं। एक कंपनी ने मोबाइल जैसी दिखने वाली नई मशीन लांच की है। मैदान में खेलने वाले बच्चों को मच्छरों से बचाने के लिए रोलऑन व लोशन क्रीम भी मार्केट में है। इसी मार्केट में चीन ने भी घुसपैठ की है। चीन की मच्छरदानी की मांग सबसे ज्यादा है। शाहमारूक में 30 व पांडेय मार्केट में आठ थोक विक्रेता है। यहां हर साल करीब 7 से 8 करोड़ का कारोबार हाे रहा है।

पैथोलॉजी सेंटर काट रहे चांदी

मच्छरों के खौफ से पैथोलॉजी सेंटरों की भी चांदी है। रैपिड टेस्ट किट से मलेरिया व डेंगू की जांच कर अपनी जेब गर्म कर रहे हैं। मार्केट में रैपिड टेस्ट किट 60 रुपए से लेकर दो सौ रुपए तक की रेंज में है। लेकिन पैथोलाजी संचालक 600 से लेकर 1500 रुपए तक वसूल रहे हैं। इससे हर महीने करीब दो करोड़ का तक लाभ कमा रहे हैं।

अस्पताल और ब्लड बैंक हो रहे मालामाल

महानगर के करीब 650 प्राइवेट अस्पताल पंजीकृत हैं। इसमें एडमिट होने के लिए प्रति पेसेंट लगभग छह से 15 हजार रुपए चार्ज है। इसके अलावा शहर के सात ब्लड बैंक भी प्लेटलेट्स बेचने के नाम करीब एक करोड़ की आय करते हैं।

मादा एनॉफिलीज मच्छर के काटने से मलेरिया

मलेरिया मादा एनॉफिलीज मच्छरों के काटने से होता है। मच्छरों के डंक के जरिए प्लाज्मोडियम नामक जीवाणु शरीर में पहुंचते हैं। जिसके संक्रमण से बुखार होता है।

अधिकतर एरिया में फागिंग नहीं

नगर निगम शहर में फागिंग के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च करता है। लेकिन नाले के किनारे स्थित इलाकों में फागिंग के नाम पर औपचारिकता भर पूरी की जा रही है। शहर के बाहरी वार्डो शक्ति नगर, जंगल तुलसीराम, जंगल सालीकराम, झारखंडी, इंजीनियरिंग कॉलेज, बिछिया आदि इलाको में फागिंग नहीं हो रही है.

कोट

मानसून की वजह से मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। इसलिए क्वॉयल और लिक्विडेटर का भी कारोबार बढ़ा है। इस बार ज्यादा बिक्री हुई है।

अनुराग अग्रवाल, थोक कारोबारी

कंपनियां मच्छर मारने वाले विभिन्न ब्रांड के क्वॉयल, लिक्विड, अगरबत्ती लांच कर रही है। इन दिनों डिमांड अधिक है।

पवन चौरसिया, थोक कारोबारी

वर्जन

सफाई के साथ वार्डो में फॉगिंग भी कराई जा रही है। बाहरी इलाके में भी टीम काम कर रही है। शहर में बड़ी मशीनों से प्रतिदिन फागिंग हो रही है।

डॉ। मुकेश रस्तोगी, नगर स्वास्थ्य अधिकारी