गोरखपुर (ब्यूरो)। मंगलवार को खरना के तहत घर में पूजन के बाद सगे संबंधियों व स्वजनों के बीच खरना का प्रसाद वितरण किया जाएगा। बुधवार को अस्ताचलगामी एवं गुरुवार को उदीयमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा। गोरखपुर में भी छठ महापर्व की अलौकिक छटा देखने को मिली। घाटों पर तैयारियों से लेकर दिनभर खरीदी का दौर चलता रहा। सोमवार को सिटी के गोलघर, घंटाघर, अलीनगर, असुरन, राप्तीनगर, बेतियाहाता, पांडेयहाता, विजय चौक, रुस्तमपुर, महेवा थोक मंडी और टीपी नगर सहित विभिन्न बाजार छठ पूजा के सामान से पटे रहे। छठ पूजा को लेकर शहर में जगह-जगह कच्ची हल्दी, अदरक, मूली, सेब, नारंगी, जल सिघाड़ा, नारियल, डाभ नींबू, सहित अन्य सामान की बिक्री हुई। वहीं, गुड़, केला, चावल, आटा-मैदा, चीनी, डालडा, घी, रिफाइंड सहित अन्य वस्तुओं के दुकानों पर खरीदारों की भीड़ लगी रही।

बांस के सामान की जोरदार बिक्री

छठ पूजा को देखते हुए शहर में बांस के सामान में सूप, टोकरी, डगरा, कोनिया आदि की बिक्री खूब हुई। बांस के टोकरी, सूप छठ पूजन सामग्री की बजाय पीतल के सूप, कोनिया, डगरी का प्रयोग करने लगे हैं। बांस से तैयार टोकरी, सूप की कीमत में इस वर्ष मामूली इजाफा देखा जा रहा है। दुकानदार विनोद कुमार ने कहा, बांस की कीमत में इजाफे से इससे निर्मित सामान पर मुनाफे में कमी आई है। बाजार में इन दिनों टोकरी 200 से 250, सूप 60 से 70 रुपए प्रति पीस बिक रहा है।

नए डिजाइन की आकर्षक चूड़ी-लहठी की डिमांड

छठ पूजा को देखते हुए सिटी की चूड़ी दुकानों पर महिलाओं की संख्या अधिक रही। युवतियों व छोटी-छोटी बच्चियों में भी चूड़ी की खरीदारी को लेकर काफी उत्साह देखा गया। महिलाएं नए डिजाइन की आकर्षक चूड़ी-लहठी की मांग करतीं नजर आईं। राजस्थान की लहठी के अलावा स्थानीय स्तर पर तैयार लहठी की मांग काफी बढ़ गई है।

नई साड़ी की खरीदी, कलरफुल धोती ने मोहा मन

छठ पूजा को लेकर व्रतियों के परिजनों ने नई साड़ी सहित अन्य कपड़ों की खरीदारी की। छठ पूजा पर व्रतियों सहित घर की अन्य महिलाओं के लिए नई साड़ी की जरूरत पड़ती है। वहीं छठ पूजा करने वाले पुरुष श्रद्धालुओं ने नई धोती की खरीदारी की। शहर के कपड़ा व्यापारी विनय गुप्ता ने कहा कि छठ पूजा को देखते हुए लाल, पीला रंग की धोती की सप्लाई हो रही है। जिससे लोगों को धोती रंगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। विभिन्न कंपनियों की ओर से लाल व पीले रंग में धोती आ रही है। छठ व्रतियों के लिए आकर्षक वैरायटी की साड़ी सहित अन्य कपड़ा की मांग बढ़ी है।

कृत्रिम पोखरों में भरा गया साफ पानी

बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य और गुरुवार को उगते सूर्य को अघ्र्य के साथ चार दिनों के इस महापर्व का समापन होगा। शहर में मौजूद तालाबों, नदियों एवं पोखरों पर एकत्रित होंगे। सोमवार को शहर के पार्कों में बने कृत्रिम तालाबों सहित विभिन्न जगहों पर लोग ने साफ-सफाई के साथ पानी भरने का भी कार्य पूरा कर लिया। ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पांडेय के अनुसार माताएं चार दिन का छठ का कठोर व्रत पुत्र के लिए करती हैं। इस व्रत में शक्ति अर्थात माता षष्ठी एवं ब्रह्म अर्थात सूर्यदेव दोनों की उपासना होती है। इसलिए इसे सूर्यषष्ठी कहा जाता है। इस व्रत से जहां भगवान भास्कर समस्त वैभव प्रदान करते हैं। वहीं, माता षष्ठी प्रसन्न होकर पुत्र देती हैं, साथ ही पुत्रों की रक्षा भी करती हैं।

व्रत मात्र से मिलता है पूरा फल

ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय ने बताया, सूर्य षष्ठी व्रत पूजन में गन्ना, नारियल, आम का पल्लव, पान, सुपारी, फल, लौंग, इलायची गुण, रुई, चौमुखी दिया, सूप, दउरा, रोली, साठी चावल, अगरबत्ती, कपूर, चूड़ा, सरसों तेल, आलता, नींबू बड़ा व छोटा, आटे का ठेकुआ, मूली, कद्दू, हल्दी, अदरक, सुथनी, पंचमेवा, देसी घी तथा सभी प्रकार के फलों का इस्तेमाल होता है।

खरना: महिलाएं करेंगी उपवास

छठ महापर्व के दूसरे दिन (9 नवंबर) व्रती महिलाएं उपवास करेंगी। शाम को पूजा करने के उपरांत व्रत का पारण करेंगी। व्रत खोलने में नैवेद्य और प्रसाद का उपयोग करेंगी। दिनभर उपवास रखकर शाम तक सूर्य भगवान की पूजा करने के पश्चात खीर पूड़ी का भोग लगाकर हवन किया जाता है।

अस्ताचलगामी सूर्य को देंगी अघ्र्य

महापर्व के तीसरे दिन (10 नवंबर) को व्रती दिनभर व्रत रखकर अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी। शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को तालाब या नदी में अघ्र्य देंगी। आटे का ठेकुआ और विभिन्न प्रकार के फल प्रसाद रखेंगी तथा उसे सूर्य नारायण और छठ माता को अर्पित करेंगी। इस दिन सूप और डलिया में ढोने का पौराणिक महत्व है। इसे ढोने का कार्य व्रती महिला के पति या पुत्र करते हैं। वह इसे जलाशय तक ले जाते हैं। शाम को महिलाएं सूर्य की पूजा करती हैं। उन्हें जल और दूध का अघ्र्य प्रदान करती हैं। इस दिन शाम पांच बजकर 27 मिनट पर व्रती महिलाएं अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देंगी।

उगते सूर्य को दिया जाएगा अघ्र्य

महापर्व के चौथे दिन (11 नवंबर) को व्रती ब्रह्म मुहूर्त में नई अघ्र्य सामग्री लेकर जलाशय में खड़ी होकर अरुणोदय की प्रतीक्षा करेंगी। जैसे ही क्षितिज पर अरुणिमा दिखाई देंगी। वह मंत्रोच्चार के साथ भगवान सूर्य को अघ्र्य देंगी। इसके बाद वह व्रत का पारण करेंगी। इस दिन सूर्य को अघ्र्य सुबह छह बजकर 34 मिनट पर दिया जाएगा।