गोरखपुर (ब्यूरो)।गोरखपुर में भी फिलहाल पानी की कमी नहीं है, लेकिन इसमें इंप्योरिटी बढ़ रही है। एमएमएमयूटी की रिसर्च में यह बात सामने आई है। वहीं , सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के हॉटस्पॉट में भी गोरखपुर के कई एरिया शामिल हैं, जहां आर्सेनिक कॉन्संट्रेशन लिमिट से ज्यादा है और बढ़ रहा है। मगर इसके बाद भी जिम्मेदार न तो आर्सेनिक का कॉन्संट्रेशन जानने की कोशिश कर रहे हैं और न ही इसका लेकर ग्राउंड वॉटर में आर्सेनिक कॉन्संट्रेशन जानने के लिए कोई स्टडी की गई है।

मिलने लगे आर्सेनिक प्वाइजनिंग के केस

पानी में आर्सेनिक की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इसकी वजह से आर्सेनिक प्वाइजनिंग के केस भी डायग्नोज होने लग गए हैं। गोरखपुर की बात की जाए तो गोला ब्लॉक के गोपालपुर गांव में आर्सेनिक प्वाइजनिंग के 6 केस सामने आ चुके हैं। जमालुद्दीन का 15 वर्षीय पुत्र नूरे आलम मानसिक एवं शारीरिक रूप से दिव्यांग है। वहीं, जमालुद्दीन के घर से 500 मीटर दूर स्व। झिनकू के पुत्र सुधीर व सत्यम भी फिजिकली के साथ मेंटली दिव्यांग हैं। इसके अलावा संतोष व लुटावन के परिवार के एक-एक मेंबर भी इसका शिकार हो चुके हैं।

बैलेंस बिगडऩे से मुसीबत

वॉटर में आर्सेनिक कॉन्संट्रेशन बढऩे की मुख्य वजह वॉटर का ओवर एक्सप्लॉयटेशन और रिचार्ज का बैलेंस न होना है। जब तक अंडर ग्राउंड वॉटर मौजूद रहता है तब तक आसपास की चट्टानों में मौजूद आर्सेनो पाइराइट अघुलनशील होने के चलते उसमें नहीं मिलते, लेकिन एक्सप्लॉयटेशन की वजह से खाली हुई जगह पर हवा भर जाती है, जिससे हवा का ऑक्सीजन आर्सेनो पाइराइट को पीटीसाइट में बदल देते हैं। पीटीसाइट बनते ही आर्सेनिक पानी में घुलने लगता है। यही वजह है कि बीते कुछ सालों में गोरखपुर के अंडर ग्राउंड वॉटर में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ रही है।

बॉडी में एंट्री तो बढ़ेगी परेशानी

प्रोफेसर गोविंद पांडेय की मानें तो आर्सेनिक एक ऐसा एलिमेंट है, जो ह्यूमन बॉडी के लिए काफी हार्मफुल है और इससे कैंसर की सबसे ज्यादा संभावना रहती है। बॉडी में अगर यह एक बार एंट्री पा गया, तो लोगों की परेशानी बढऩा तय है। एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि यह सिर्फ दो रास्तों से बॉडी के बाहर आ सकता है, पहला नाखून और दूसरा बाल। यानि बॉडी में इनके बढऩे की जा स्पीड होगी, उसके अकॉर्डिंग यह बॉडी से बाहर आएगा, जबकि हम हर घूंट पानी में आर्सेनिक बॉडी के अंदर पहुंचा रहे हैं, जो अंदर ही जमा हो रहा है।

यह हैं सिंप्टम्स

- हाथ पर सफेद धब्बे से होती है शुरुआत

- यह धीरे-धीरे ब्राउन हो जाते हैं और बॉडी पर साफ नजर आने लगते हैं।

- सफेद धब्बे कुछ और बीमारियों में भी होते हैं, लेकिन इसमें उनके कलर चेंज नहीं होते है।

- सही डायग्नोसिस और कंफर्मेशन नाखून और बाल की एनालिसिस के बाद ही किया जा सकता है।

एमएमएमयूटी रिसर्च एक नजर में

- एमटेक एन्वायर्नमेंटल इंजीनियरिंग के स्टूडेंट रहे संजय कुमार ने गोरखपुर के ग्राउंड वॉटर की स्टडी की।

- अप्रैल 2011 से अगस्त 2011 के बीच गोरखपुर के डिफरेंट 248 स्पॉट से सैंपल कलेक्ट किए।

- इसमें 29.84 परसेंट सैंपल्स में आर्सेनिक कॉन्संट्रेशन 10 से 50 पाट्र्स पर बिलियन (पीपीबी) पाए गए।

- वहीं 6.45 परसेंट सैंपल्स में 6.45 पीपीबी कॉन्संट्रेशन पाया गया।

- 36 परसेंट टोटल आर्सेनिक अफेक्टड सैंपल्स पाए गए।

- इसमें सबसे अधिक 91 पीपीबी कॉन्संट्रेशन खोराबार ब्लॉक में पाया गया।

- खोराबार, पिपरौली, बड़हलगंज और जंगलकौडिय़ा में 50 परसेंट से ज्यादा सैंपल्स मानक पर खरे नहीं उतरे।

- आर्सेनिक कॉन्संट्रेशन पर आगे की रिसर्च के लिए प्रपोज किया।

ब्लॉक - 1-10 10-50 50 से ज्यादा

सिटी 88.6 11.4 000

बड़हलगंज 14.3 78.6 7.1

ब्रह्मपुर 60.9 21.7 17.4

कैंपियरगंज 65.0 27.5 7.5

जंगल कौडिय़ा 44.4 55.6 000

कौड़ीराम 75.0 25.0 000

खोराबार 25.0 50.0 25.0

पिपरौली 05.6 77.8 16.6

सहजनवां 100 000 000

सरदारनगर 94.7 5.3 000

यह हैं सीजीडब्लयूबी के हॉटस्पॉट -

बेलघाट

ब्रह्मपुर

चरगांवा

कैंपियरगंज

गगहा

गोरखपुर हेडक्वार्टर

जंगल कौडिय़ा

कौड़ीराम

खजनी

खोराबार

पिपराइच

पिपरौली

सहजनवा

सरदारनगर

उरुवा बाजार

गोरखपुर के ग्राउंड वॉटर में बड़ी मात्रा में आर्सेनिक मौजूद है और इसका कॉन्संट्रेशन लगातार बढ़ रहा है। यह अलार्मिंग सिचुएशन है। अगर हम अब भी नहीं चेते तो गंभीर बीमारियों की चपेट में होंगे। ग्राउंड वॉटर को ज्यादा से ज्यादा रिचार्ज करें और इसके एक्सप्लॉयटेशन को रोकें।

- प्रो। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट

मैंने 2011 में ग्राउंड वॉटर में आर्सेनिक कॉन्संट्रेशन पर स्टडी की थी। इसमें करीब 36 परसेंट सैंपल्स में आर्सेनिक कॉन्संट्रेशन मानक से अधिक मिला था। इसके लिए 248 सैंपल कलेक्ट किए गए थे। 4 ब्लॉक में अलार्मिंग सिचुएशन थी। यहां आगे डीप स्टडी की जरूरत है।

- डॉ। संजय कुमार, सीनियर साइंटिस्ट, सीपीसीबी

शहर में वॉटर क्वालिटी की रेगुलर जांच की जा रही है। 15 दिन पहले ही कुछ इलाकों में पानी में डिफरेंट एलिमेंट जांचे गए हैं। आर्सेनिक को लेकर कोई जांच नहीं हुई है। आगे आर्सेनिक कॉन्संट्रेशन को लेकर भी जांच की जाएगी।

- सौरभ सिंह, सहायक अभियंता, जलकल