- साक्ष्यों के अभाव कोर्ट ने दिया दोष मुक्त करार

- मुकदमे को लेकर कचहरी रही गहमा-गहमी

GORAKHPUR: शहर के बहुचर्चित इंजीनियर एमके सिंह हत्याकांड में गुरुवार को कोर्ट का फैसला आया। विशेष न्यायाधीश गैंगेस्टर एक्ट सीताराम वर्मा ने साक्ष्य के अभाव में सभी अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया। मुकदमे को लेकर दोपहर बाद से कचहरी परिसर में गहमा-गहमी बनी रही। प्रतिवादी पक्ष के लोग भी कचहरी पहुंचे थे। लोगों की भीड़ देखते हुए कैंपस में पुलिस-पीएसी और क्राइम ब्रांच की टीम भी मौजूद थी।

कब आैर कैसे हुई थी हत्या

आजमगढ़ जिले के मूल निवासी असिस्टेंट इंजीनियर एमके सिंह की तैनाती कुशीनगर जिले में बाढ़ खंड में थी। वह अपने परिवार के साथ शहर में रहते थे। कैंट एरिया के मोहद्दीपुर, चार फाटक के पास अभियंता वीपी सिंह रहते थे। दो अगस्त 2009 की रात विभागीय काम से वह इंजीनियर से मिलने उनके घर गए। मिलकर वो लौट रहे थे तभी रात करीब पौने नौ बजे गाड़ी में बैठने के दौरान मोहद्दीपुर की ओर से आए बाइक सवार दो युवकों ने एमके सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी। हाई प्रोफाइल मर्डर से शहर में सनसनी फैल गई। इंजीनियर के छोटे भाई अजय कुमार सिंह ने हत्या का मुकदमा दर्ज कराया।

रुपए के लेनदेन में हत्या की साजिश

असिस्टेंट इंजीनियर की हत्या में बाढ़ खंड के सहायक अभियंता एके चौधरी, कैंट एरिया के बेतियाहाता निवासी अजीत शाही, गगहा के राउतपार निवासी सह जिला पंचायत सदस्य पंकज शाही, बेलीपार एरिया के चेरिया निवासी लाल बहादुर यादव, अजय उर्फ गुड्डू यादव, कैंट एरिया के इंदिरा नगर निवासी संजय यादव, शिवपुर सहबाजगंज मोहल्ला निवासी दीपक सिंह उर्फ आशुतोष, पंकज लोचन मिश्र के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। घटना में सहायक अभियंता एके चौधरी का हाथ होने का आरोप लगा। अन्य अभियुक्तों को साजिश में शामिल होना बताया गया। कुशीनगर में बंधों की ठेकेदारी में एक अरब से अधिक के भुगतान को लेकर हत्या की वजह माना गया। विभाग की ओर से करीब 64 करोड़ का भुगतान कर दिया गया था। इसी दौरान इंजीनियर एके चौधरी का तबादला हो गया। एमके सिंह ने पंकज शाही से भी रुपयों का लेनदेन किया था। इसलिए विवेचना में पंकज शाही सहित अन्य को मुल्जिम बनाया गया। कोर्ट में अभियोजन के सभी गवाह पक्षद्रोही हो गए थे।

दो गुटों की वजह से बढ़ी सरगर्मी

इंजीनियर एमके सिंह हत्याकांड में आरोपी बनाए गए अभियुक्त अलग-अलग काम करते हैं। मुकदमे के दौरान लाल बहादुर की मौत होने से उस पर विचारण नहीं हो सका। 20 मई 2014 को यूनिवर्सिटी गेट पर लाल बहादुर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मर्डर में पंकज लोचन सहित अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। फैसले के दौरान सभी गुटों के जुटने की रिपोर्ट एलआईयू ने पुलिस को दी थी। इसलिए दोपहर एक बजे से कचहरी परिसर में पुलिस-पीएसी सक्रिय रही। सादे कपड़ों में क्राइम ब्रांच के दरोगा और सिपाही भी फैसला आने तक कचहरी कैंपस में डटे रहे।