- दस्तक अभियान के दौरान आशा बहुओं को घर-घर जाकर ढूढना था कालाजार के पेशेंट्स

- कालाजार के संभावित मरीज को होनी थी टीबी और एचआईवी की जांच

- डब्ल्यूएचओ और पाथ की मदद से प्रशिक्षित हुए चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी

GORAKHPUR:

गोरखपुर जिले में 16 जुलाई से शुरू हुए दस्तक अभियान में आशा बहुओं के घर-घर जाकर कालाजार के सक्रिय मरीजों के ढूंढने का सिलसिला शुरू तो हुआ नहीं बल्कि यह कोरोना संक्रमण के बढ़ते केसेज के बीच फाइलों में बंद होता हुआ नजर आ रहा है। जबकि कोविड-19 प्रोटोकाल का पालन करते हुए कालाजार के एक्टिव केस डिटेक्शन (एसीडी) अभियान के जरिए जो भी संभावित मरीज ढूंढे जाने थे उनकी कालाजार की आरके-39 जांच के अलावा अनिवार्य तौर पर टीबी और एचआईवी जांच भी कराई जानी थी। लेकिन यह सारे दावे हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। हालांकि इस संबंध में हेल्थ डिपार्टमेंट की तरफ से एक वेबिनार में ट्रेनिंग के दौरान ही सारी जानकारी दे दी गई थी कि इस स्कीम को कैसे आगे बढ़ाना है। वेबिनार में सीएमओ ने जिले के संबंधित चिकित्साधिकारी और स्वास्थ्यकर्मी को इसके लिए ट्रेनिंग भी दिलवाई थी। इस स्कीम में राज्य स्तर पर डब्ल्यूएचओ और पाथ के सहयोग से किया जाना था।

भौवापार में आया था केस, लेकिन नहीं हो सका फेस

बता दें, पिपरौली ब्लॉक के भौवापार गांव में पिछले साल 2019 में कालाजार का एक मामला सामने आया था। इस साल इस गांव में छिड़काव भी कराया गया था। जिस भी गांव में केस निकलता था। वहां साल में दो बार छिड़काव कराया जाता है। कालाजार बालू मक्खी से फैलने वाली बीमारी है। यह मक्खी नमी वाले स्थानों पर अंधेरे में पाई जाती है। यह तीन से छह फुट ही उड़ पाती है। इसके काटने के बाद मरीज बीमार हो जाता है। उसे बुखार होता है और रुक-रुक कर बुखार चढ़ता-उतरता है। लक्षण दिखने पर मरीज का शीघ्र इलाज आवश्यक है। सीएमओ डॉ। श्रीकांत तिवारी के निर्देश पर जिले भर में कालाजार के मरीज ढूंढे जाने थे। इसके लिए सभी सीएचसी व पीएचसी के आशा बहुओं की मदद से इस स्कीम को सफल बनाना था। इसके लिए सभी प्रशिक्षुओं को उनके सीएचसी-पीएचसी से जुड़ी आशा कार्यकर्ता को कालाजार के संबंध में जानकारी भी दी गई थी। लेकिन कोरोना के बढ़ते केसेज और हॉट स्पॉट होने की वजह से आशा बहुओं ने भी गंभीरता नहीं दिखाई और एक जगह इसके सफल बनाने के बजाय फाइलों में ही बंद कर दीं। हेल्थ डिपार्टमेंट की तरफ से सभी आशा बहुओं को कोविड काल में एसीडी को सफल बनाने के तौर तरीके बताए गए थे। राज्य स्तर पर वेक्टर बार्न प्रोग्राम के एडी डॉ। वीपी सिंह की तरफ से ट्रेनिंग दी गई थी। लेकिन कोरोना के बढ़ते केसेज के आगे सब कुछ बेकार होता हुआ नजर आ रहा है। ट्रेनिंग में डब्ल्यूएचओ की तरफ से डॉ। तनुज और पाथ संस्था की ओर से डॉ। ज्ञान और डॉ। अर्पित ने जो भी तकनीकी जानकारियां दी थी। उसका लाभ आशा कार्यकताओं के माध्यम से समुदाय तक पहुंचाया जाना था। लेकिन वह भी फाइलों तक ही सिमट कर रह गया।

ट्रेनिंग में दी गई थी जानकारी

- समय से इलाज न मिलने पर 95 फीसदी मामलों में मृत्यु का खतरा रहता है।

- अगर किसी व्यक्ति को दो सप्ताह से अधिक समय से बुखार आ रहा हो, पेट में सूजन हो, वजन कम हो रहा हो और भूख में कमी जैसे लक्षण हैं तो वह कालाजार का संभावित मरीज हो सकता है।

- एसीडी के दौरान ऐसे संभावित मरीजों को सीएचसी-पीएचसी और जिला अस्पताल भेज कर आरके-39 जांच करवानी है।

- जांच में कालाजार की पुष्टी होने पर 48 घंटे के भीतर इलाज शुरू कर देना है।

- चर्म रोग संबंधित कालाजार मरीजों में केस हिस्ट्री पर भी नजर रखनी है।

- इस कालाजार का प्रमुख लक्षण शरीर में सफेद दाग, चकत्ते और गाठें हैं।

- आशा कार्यकर्ता दस्तक अभियान के दौरान इन लक्षण वाले मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए प्रयास करेंगी और ऐसे मरीजों की रिपोर्टिग ब्लॉक पर करेंगी।

वर्जन

कालाजार को लेकर पहले ही दिशा निर्देश जारी कर दिया गया था। चूंकि कोरोना के केसेज बढ़ रहे हैं तो जिन इलाके में हॉट स्पॉट होगा। वहां नहीं जा पा रही होंगी। लेकिन जहां नहीं है। वहां जा रही होंगी। कुछ जगहों से कंप्लेन मिल रही थी। लेकिन उन सीएचसी के अधिकारियों को निर्देशित कर सख्ती से निपटने को कहा गया है।

डॉ। श्रीकांत तिवारी, सीएमओ