गोरखपुर (ब्यूरो)।गनीमत रही कि इस हादसे में किसी की जान नहीं गई। यह हादसा जिम्मेदारों की आंख खोलने के लिए काफी है। मगर गोरखपुर में इसके बाद भी जिम्मेदार हरकत में नहीं आए हैं। पुलिस लाइन स्थित जर्जर मकान में सैकड़ों लोग रहते हैं। यहां के लोगों को हमेशा सिर पर छत गिरने का खतरा मंडराता रहता है। इसके बाद भी लोग हिम्मत करके भगवान भरोसे यहां टिके हुए हैं। अगर बरसात से पहले इसे दुरुस्त नहीं कराया गया तो लखनऊ जैसा हादसा यहां भी हो सकता है, लेकिन यहां नुकसान वहां के कई गुना ज्यादा होगा।

जान जोखिम में, रह रहा परिवार

पुलिस लाइन में कई साल से पुलिसकर्मियों का परिवार जान जोखिम में डालकर जर्जर आवासों में रह रहा है। पुलिसकर्मियों के घरवालों ने बताया कि अक्सर अधिकारी मौके का मुआयना करते हैं और तमाम निर्देश भी जारी करते हैं, लेकिन आज तक आवासों की मरम्मत नहीं कराई गई। कई बार हादसे भी हो चुके हैं, मगर मरम्मत और निर्माण की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

छत जर्जर, टपकता है बारिश का पानी

यहां बरसात में तो मुश्किल और बढ़ जाती है। आवास की छत, दीवारों की हालत ऐसी है कि बारिश का पानी सीधे घर के अंदर टपकता है। बारिश का पानी कमरे के अंदर न पहुंच सके। बरसात में कई पुलिसकर्मी छत पर प्लास्टिक बिछाकर काम चलाते हैं। परिवार वाले बताते हैं कि प्राइवेट में मकान महंगे किराए पर मिलते हैं, इसलिए न चाहते हुए भी इन सरकारी आवासों में रहना पड़ता है।

कम आवास पुलिसकर्मी अधिक

पुलिस सूत्रों के अनुसार, पुलिस लाइंस में वर्तमान समय में लगभग 6 से 7 हजार पुलिसकर्मी हैं, वहीं आवासों की संख्या महज 700 है। कई घरों में मकान का प्लास्टर टूट कर गिरने की शिकायत भी आती रहती है। इसके बाद भी पुलिसकर्मी उसमे रहने को मजबूर हैं।

प्रपोजल पास होने का इंतजार

गोरखपुर पुलिस लाइन का हाईटेक बनाने के लिए कई बार प्रपोजल भी बना लेकिन अभी तक पास नहीं हो पाया। बताया तो ये भी जा रहा है कि पूरी पुलिस लाइन गिराकर नए सिरे से इसे बनाने की भी बात चल रही है।

जो भी जर्जर मकान हैं उसे दुरुस्त कराया जाता है। पुलिस के लिए एक बैरक भी बन रही है। जिसमे करीब 50 परिवार रह सकेंगे। इसको लेकर कुछ और भी प्रपोजल तैयार किए गए हैं।

हरिशंकर सिंह, आरआई, पुलिस लाइन