- दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के वेबिनार में एक्सप‌र्ट्स ने दिए सजेशन

- नई टेक्नोलॉजी को अडॉप्ट करने और खुद को ट्रेंड कर आगे बढ़ने पर रहा फोकस

- मोबाइल से होने वाले साइड इफेक्ट पर भी चर्चा

GORAKHPUR: कोविड-19 का दौर चल रहा है। धीरे-धीरे हालात कम्युनिटी स्प्रेड की ओर बढ़ रहे हैं। हर मोहल्ले में संक्रमित नजर आने लगे हैं। ऐसे में स्टूडेंट्स की एजुकेशन पेरेंट्स के लिए बड़ा चैलेंज बनकर सामने आई है। जहां ऑनलाइन एजुकेशन के जरिए स्कूल पढ़ाई की भरपाई की कोशिश कर रहे हैं, तो वहीं पेरेंट्स भी 'कुछ नहीं से हां' के बारे में सोचकर बच्चों पर पढ़ाई करने के लिए दबाव भी बना रहे हैं। इससे सिटी के रिनाउंड एरियाज में रहने वाले स्टूडेंट्स पर तो कोई खास इफेक्ट नहीं आ रहा है, लेकिन जो ऐसे इलाकों में हैं, जो थोड़ा आउटर में हैं और जहां नेटवर्क कनेक्टिविटी की प्रॉब्लम बनी हुई है, वहां स्टूडेंट्स की पढ़ाई, सिर्फ कोरम पूरा करने जैसी होकर रह गई है। कुछ समझ में आया, कुछ नहीं, कुछ सुनाई दिया, कुछ मिस कर गया, जैसी ढेरों प्रॉब्लम उन्हें फेस करनी पड़ रही हैं। वहीं इन सबके बीच फीस, इक्विपमेंट्स, स्टडी मैटरियल्स तैयार करने के साथ कई ऐसे चैलेंज हैं, जिनको लेकर स्कूल, टीचर्स, स्टूडेंट्स रोज जद्दोजहद कर रहे हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इन्हीं मुद्दों को लेकर एक्प‌र्ट्स की मौजूदगी में वेबिनार ऑर्गनाइज किया। 'कोविड-19 के दौर में शिक्षा' टॉपिक पर ऑर्गनाइज इस वेबिनार में सिटी के एक्सप‌र्ट्स ने न सिर्फ उन प्रॉब्लम्स को प्वॉइंट आउट किया, जो इस दौर में वह डेली फेस कर रहे हैं, बल्कि इससे कैसे निपटा जा सकता है और कैसे-कैसे हमें खुद को अपग्रेड करना होगा, जिससे कि कोविड के चैलेंज से निपटकर एजुकेशन की गाड़ी को ट्रैक पर लाया जा सके।

टीचर्स को मिला है अपग्रेड होने का मौका

डिस्कशन के दौरान यह बातें सामने आईं कि कोविड के इस दौर में जहां बेशुमार प्रॉब्लम और चैलेंजेज हैं, वहीं इसके काफी फायदे भी हैं, जिन्हें ग्रैब कर लेने की जरूरत है। सबसे खास बात यह कि इस दौर में टीचर्स के सामने खुद को अपग्रेड कर ऐसे एजुकेशन सिस्टम को अडॉप्ट करने की चुनौती है, अगर उन्होंने इसे अडॉप्ट कर लिया, तो उनका डेवलपमेंट कोई रोक नहीं सकता है। वहीं जो इससे डर गए और खुद को पीछे खींच लिया, तो वह कभी आगे नहीं बढ़ सकेंगे। इस दौर में टीचर मल्टीपरपज होने जा रहे हैं। वह वीडियो लेक्चर, ऑडियो लेक्चर के जरिए स्टूडेंट्स को एजुकेट तो कर ही रहे हैं, वहीं इसे वह सोशल मीडिया और दूसरे प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर स्टूडेंट्स का मार्ग दर्शन भी कर सकते हैं।

हाईलाइट्स

- ऑनलाइन एजुकेशन जरूरी, इसके अलावा नहीं है कोई दूसरा ऑप्शन।

- बच्चों को सीरियस होकर करनी होगी स्टडी, खुद प्रॉब्लम सॉल्व कर पूछने होंगे सवाल।

- पेरेंट्स को भी देना होगा बच्चों का ध्यान, रेग्युलर करनी होगी क्लासेस की मॉनीटरिंग।

- टीचर्स और स्कूल से भी लेना होगा फीडबैक।

- स्कूल्स को भी करनी होगी क्वालिटी कंटेंट की मॉनीटरिंग।

- टीचर्स को देनी होगी ट्रेनिंग, जिससे वह दे सकें बेहतर ऑनलाइन एजुकेशन।

- लोअर इनकम और मीडियम इनकम ग्रुप को ध्यान में रखकर करनी होगी प्लानिंग।

- ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक हो रीच, इसे लेकर करनी होगी व्यवस्था।

- किसी घर में तीन बच्चे हो सकते हैं, इसलिए इसके अकॉर्डिग भी सोचकर तय करना होगा क्लास शेड्यूल।

- स्टूडेंट्स ड्रॉपआउट न हों, इसका भी रखना होगा ख्याल।

- डिजिटल क्लास में इंटरैक्शन को देना होगा बढ़ावा।

- रिकॉर्डेड वीडियो और ऑडियो कंटेंट का भी रखना होगा ख्याल।

कोट्स

लॉक डाउन की वजह से सिस्टम कोलैप्स कर गया है। ऑनलाइन फैसिलिटी ने बच्चों को काफी राहत दी है। इस वक्त एजुकेशन सिस्टम रियल व‌र्ल्ड से वर्चुअल व‌र्ल्ड की ओर शिफ्ट कर रहा है। यह सभी के लिए फायदेमंद है। हायर एजुकेशन में भी काफी बदलाव आए हैं। यूजीसी ने स्वयं प्रभा, दीक्षा, ई-पीजी पाठशाला जैसे प्लेटफॉर्म दिए हैं, जिससे स्टूडेंट्स को पढ़ाई में काफी सहूलियत हुई है।

- प्रो। अजय कुमार शुक्ला, प्रोफेसर, गोरखपुर यूनिवर्सिटी

सारा एजुकेशन सिस्टम कोविड से प्रभावित हुआ है। वर्चुअल क्लास में जहां प्रैक्टिकल पॉसिबल नहीं है, तो वहीं इसमें काफी चैलेंज भी हैं। कोविड में सबसे ज्यादा प्रभाव मिडिल और लोअर इनकम ग्रुप पर पड़ा है। टेक्नोलॉजी, इंटरनेट, लैपटॉप जैसे इशु इनके लिए सबसे ज्यादा प्रॉब्लम क्रिएट कर रहे हैं। स्कूल और अथॉरिटी को यह देखना होगा कि उनकी रीच मैक्सिमम हो सके, जिससे कि ड्रॉपआउट की संख्या कम हो सके।

- आचिंत्य लाहिड़ी, इंटरप्रिन्योर

इस दौर में पढ़ाई तो वर्चुअल हो गई है, लेकिन इसमें काफी चैलेंज भी सामने आ रहे हैं। न्यूमेरिकल है, इसमें काफी मुश्किलें हो रही हैं। बच्चों को कई बार समझाने के बाद भी वह उस तरह नहीं समझ पा रहे हैं, जैसा कि वह फिजिकली प्रेजेंट होकर समझ पाते थे। घर से पढ़ाई की वजह से स्टूडेंट्स भी बिल्कुल कैजुअल हो चुके हैं, जिसकी वजह से वह घर पर एक्स्ट्रा पढ़ाई नहीं कर रहे हैं। अगर पढ़ाई होती, तो सवाल आते, लेकिन ऑनलाइन क्लास में इसकी बहुत कमी है। पेरेंट्स को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।

- मानवेंद्र प्रताप सिंह, शिक्षक, कार्मल स्कूल

ऑनलाइन एजुकेशन के अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नहीं है। 5वीं तक के बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। यह सिर्फ इनगेजमेंट के लेवल तक जाकर रह गया है। स्कूल का कोई सामान इस्तेमाल नहीं हो रहा है और सिर्फ ट्यूशन दिया जा रहा है। इसके बाद भी वह पूरी फीस वसूल रहे हैं। उन्हें भी सोचना होगा कि कोविड के पीरियड में कई ऐसे लोग भी हैं, जिनकी जॉब नहीं है। ऐसे में वह फीस कैसे जमा कर सकेंगे। टीचर्स की सैलरी के लिए वह ट्यूशन फीस लें, बाकी में उन्हें भी थोड़ा कॉम्प्रोमाइज करना ही पड़ेगा।

- नितिन जायसवाल, प्रोफेशनल

कोविड के दौर में सिवाए ऑनलाइन एजुकेशन के कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है। सभी के पास इस दौरान में स्मार्टफोन मौजूद है, इसलिए उन्हें पढ़ाई करने में कोई प्रॉब्लम नहीं फेस करनी पड़ेगी। मगर जो ऐसे एरियाज में हैं, जहां नेटवर्क कनेक्टिविटी नहीं है, या फिर उनके पास 4जी हैंडसेट नहीं है, तो ऐसे में वहां के स्टूडेंट्स को पढ़ाई करने में प्रॉब्लम आ रही है। जिम्मेदारों को इस पीरियड में यह इनश्योर करना चाहिए कि कम से कम नेटवर्क कनेक्टिविटी बेहतर हो और सभी तक एजुकेशन पहुंच सके।

- शाहनवाज अहमद, प्रोफेशनल

अभी दिसंबर तक हमें ऐसे ही पढ़ाई जारी रखनी है। बच्चों को नया सिस्टम मिला है, तो उन्होंने उसे एडॉप्ट किया है। वह टेक फ्रेंडली हैं, इसलिए इसे एडॉप्ट करने में उन्हें किसी तरह की प्रॉब्लम नहीं फेस करनी पड़ी है। मगर टीचर्स को इससे प्रॉब्लम जरूर हो रही है। वह तो पुराने हैं, लेकिन डिजिटल एजुकेशन उनके लिए बिल्कुल नई है। उन्हें एबीसीडी से सीखना है। कुछ ने शुरुआत कर दी है, लेकिन अब भी काफी लोग हैं, जिन्हें प्रॉब्लम हो रही है। नया सिस्टम है, धीरे-धीरे ही इंप्रूवमेंट हो पाएगा। इसलिए लोगों को बजाए इस पर सवाल उठाने के इसको एडॉप्ट करने में इंटरेस्ट रखना चाहिए। हमारे पास इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

- प्रमोद शुक्ला, शिक्षक, गोरखपुर यूनिवर्सिटी

टीचर्स की अच्छी कोशिश है कि सब कुछ नया होने के बाद भी उन्होंने इसको एडॉप्ट किया है। जो प्लेटफॉर्म उन्हें मिला है, तो काफी अच्छा है। अब हमें जो कुछ भी नया है, उसे सीखने की जरूरत है। हमारी कोशिश यह रहनी चाहिए कि जो भी नई चीजें आ रही हैं, उसके प्रति लोगों को अवेयर करें। इसके लिए प्लेटफॉर्म चाहे जो भी इस्तेमाल करें, लेकिन अवेयरनेस मस्ट है। वेबिनार्स, लेक्चर, ऑनलाइन वीडियो, सोशल मीडिया के जरिए इसको बढ़ाया जा सकता है और लोगों तक अवेयरनेस पहुंचाई जा सकती है।

- डॉ। शोभित श्रीवास्तव, प्रोफेशनल

कोविड के दौर में आगे की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है। परीक्षा होगी या नहीं, असको लेकर अभी तक असमंजस बरकरार है। संसाधनों और सुविधाओं की कमी है, लेकिन इसके बाद भी हमें आगे बढ़ना है। टीचर्स कंटेंट बना सकें, इसके लिए जहां संसाधनों की जरूरत होगी, तो वहीं टीचर्स को भी पढ़ना होगा, सीखना होगा। वहीं क्वालिटी कंटेंट कैसे बनाएं, इसके लिए जिम्मेदारों को, गवर्नमेंट और स्कूल मैनेजमेंट को सोचना होगा और अपने टीचर्स को उसी के अकॉर्डिग सुविधाएं मुहैया करानी होंगी। सभी जब तक एक-दूसरे की मदद के लिए नहीं आगे आएंगे, तब तक राह आसान नहीं होगी।

- डॉ। नितिन बक्शी, शिक्षक, इस्लामियां कॉलेज ऑफ कॉमर्स

कोई निश्चित नहीं है कि यह महामारी का दौर कब तक चलेगा। सभी खुद को इसके बीच रहते हुए तैयार करें। कैसे एजुकेशन दी जाए, कैसे इसे कॉन्टीन्यू रख सकें, इस पर मंथन की जरूरत है। डिस्टेंस लर्निग काफी पहले से है, फेस टू फेस हुए बिना पहले भी पढ़ाई हो रही थी, उसी के हिसाब से खुद को तैयार करने की जरूरत है। तकनीक पूरी तरह से अपग्रेड नहीं है, मगर इसका कोई अल्टरनेटिव भी नहीं है। टीचर्स भी अपग्रेड नहीं हैं। जो व्यवस्था है, वह भी पर्याप्त नहीं है। 20 परसेंट स्कूल ही टेक्नीक से लैस हो पाए हैं। इसलिए अभी सभी को अपग्रेड करने की जरूरत होगी।

- डॉ। राजेश गुप्ता, शिक्षक, जुबिली इंटर कॉलेज

कोविड के दौर में ऑनलाइन सिस्टम एजुकेशन की बैक बोन बना है। मैं पर्सनली क्लास लेता हूं, अभी तक कोई प्रॉब्लम नहीं आ रही है। बस सिर्फ एक प्रॉब्लम जो है, वह है नेट की पुअर कनेक्टिविटी। कुछ एरियाज में थ्रीजी भी बेहतर नहीं है, इसे और बेहतर करने की जरूरत है। पढ़ाई न होने के बजाए ऑनलाइन पढ़ाई होने से भी स्टूडेंट्स की एजुकेशन जारी रहेगी। इससे टीचर्स और स्टूडेंट्स के बीच बॉन्डिंग बनी रहेगी। छोटे बच्चों के साथ थोड़ी प्रॉब्लम है। पेरेंट्स को चाहिए कि वह भी बच्चों के साथ इनवॉल्व हों, जिससे कि उनकी पढ़ाई भी बेहतर हो सके।

- आरके श्रीवास्तव, प्रिंसिपल, रैंपस

एजुकेशन सिस्टम में काफी बदलाव हो रहा है। कोविड इफेक्ट एक बैक आया है। जिसकी वजह से अब बच्चों को पढ़ाने में टीचर्स, मैनेजमेंट और पेरेंट्स का रोल अहम होगा। कंप्यूटर जोकि बरसों से पढ़ाया जा रहा है, लेकिन यह सिर्फ एक प्रैक्टिकल सब्जेक्ट बनकर रह गया है। अगर इसकी प्रॉपर वे में ट्रेनिंग होती, तो आज किसी को प्रॉब्लम नहीं होती। अब जरूरत है कि स्कूल मैनेजमेंट अपने टीचर्स को इस तरह से तैयार करे कि अगर आगे भी इस तरह की प्रॉब्लम आए, तो उन्हें कुछ सोचना न पड़े। उनके पास स्ट्रॉन्ग वर्चुअल मीडियम मौजूद रहे, जिससे कि पढ़ाई पर कोई इफेक्ट न आए।

- सुनीत कोहली, डायरेक्टर, सृजन लर्निग

कोविड का सबसे ज्यादा इफेक्ट प्लेवे स्कूल के बच्चों पर पड़ा है। उनके पास न तो ऑनलाइन एजुकेशन का कोई सेंस ही डेवलप है और न ही इसके जरिए उन्हें सिखाए जाने से कोई फायदा ही है। छोटे बच्चे स्कूल में सिर्फ इसलिए जाते थे कि वहां जाकर वह उठने-बैठने का तरीका सीख सकें। स्कूल के माहौल में ढल सकें, लेकिन कोविड पीरियड में स्कूल आना पॉसिबल नहीं है। ऐसे में उनकी एजुकेशन पर फुलस्टॉप लग गया है।

- सिल्की अग्रवाल, प्रोफेशनल

बेसिक एजुकेशन के स्टूडेंट्स भी बड़े सफरर हैं। इस पेंडमिक के लिए कोई तैयार नहीं था, लेकिन जब यह सामने आई तो इसे सभी को फेस करना पड़ रहा है। जो टीचर्स जानते थे, वह अपने बच्चों तक पहुंचा रहे हैं। किसी तरह की ट्रेनिंग किए बगैर ही उन्होंने एजुकेशन सिस्टम के अपग्रेडेड मॉड्यूल को अपना लिया है। टीचर्स के पास इस वक्त सुनहरा मौका है। वह फ्यूचर की तैयारी करें। खुद को अपग्रेड करते रहें। टीचर, पेरेंट्स सबको लगना होगा। इसके बाद ही बात बनेगी।

- अनीता श्रीवास्तव, शिक्षक

कोविड के दौर में एजुकेशन सिस्टम को सभी एडॉप्ट कर रहे हैं। सभी को इसे करना भी पड़ेगा, क्योंकि इसके अलावा कोई ऑप्शन नहीं है। स्कूल में स्टूडेंट्स को बुलाने में रिस्क है, इसलिए ऑनलाइन एजुकेशन ही बेस्ट है। थोड़ी प्रॉब्लम लोगों को फेस करनी पड़ेगी। ऑनलाइन प्रैक्टिकल नहीं हो सकते हैं, इसलिए प्रैक्टिकल के लिए उन्हें थोड़ा वेट करना पड़ेगा। वहीं पेरेंट्स को भी बच्चों की मॉनीटरिंग करनी होगी, तभी जाकर ऑनलाइन एजुकेशन का बेहतर रिजल्ट मिलेगा। वरना घर में रहकर बच्चे कब और कितनी पढ़ाई कर रहे हैं, इसकी मॉनीटरिंग टीचर्स नहीं कर पाएंगे। क्योंकि वह पढ़ाने पर फोकस करेंगे, न कि दूसरी चीजों पर। इसलिए पेरेंट्स का इनवॉल्वमेंट भी काफी जरूरी है।

- डॉ। प्रदीप श्रीवास्तव, प्रिंसिपल, मधुसूदन दास डिग्री कॉलेज