गोरखपुर (ब्यूरो)।पहले यह माना जाता था कि जो सत्ता के खिलाफ लिखेगा वही विश्वसनीय है, लेकिन अब हमें यह फर्क करना पड़ेगा कि यह धारणा उस समय की बात है जब सत्ता राजा-रानी की कोख से पैदा होती थी। उस समय सत्ताधारी आज की तरह लोकतंत्र से पैदा नहीं होता था। बुनियादी तौर पर टिप्पणी या आलोचना के बगैर लोकतंत्र चल नहीं सकता लेकिन लोकतंत्र में दुराव की भावना नहीं होनी चाहिए। यह बातें वरिष्ठ राजनीतिज्ञ और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहीं, वह गोरखपुर लिट फेस्ट के इनॉगरेशन पर वहां मौजूद लोगों से रूबरू थे।
Arif Mohammed Khan
उन्होंने कहा कि सरकारें हमारी बनाई हुई हैं और यह अधिकार हमारा है कि आने वाले समय में ऐसी सरकारों को बदल दें जो हमारी भावनाओं पर खरी नहीं उतरती हैं। इससे लोकतंत्र में एक आत्मविश्वास पैदा होता है और स्वयं का सशक्तिकरण होता है। चुनौतियां हमारा भविष्य नहीं तय करेंगीं बल्कि हम तय करेंगे कि चुनौतियों के बीच हमारा भविष्य कैसा होगा।
रौशनी से घबराते हंै हम
कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट वक्ता प्रख्यात साहित्यकार मृदुला गर्ग ने कहा कि हमारी संस्कृति उन खूबसूरत संस्कृतियों में से है जो सर्व समाहित है। चूंकि हमें धुंधला देखने की आदत है इस कारण से हम रौशनी से घबराते हैं। हमें समझना होगा कि चुनौती को स्वीकार करने के बाद ही चमक आती है। लोकतंत्र में साहित्य की महत्ता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र स्वतंत्र विचार की निर्भीक अभिव्यक्ति है और साहित्य भी वस्तुत: उसी चरित्र का है। भारतवर्ष ही एकमात्र देश है जहां पर सही अर्थों में लोकतंत्र स्थापित हो सकता है और इसके लिए साहित्य कला और संस्कृति के संस्कारों के पोषण की आवश्यकता है। प्रख्यात पत्रकार व राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अजय कुमार सिंह ने कहा कि आज गीता प्रेस ने साहित्य को व्यापारिक लोकप्रियता दी है। प्रेमचंद्र के पात्र वैश्विक स्तर के पात्र बन जाते हैं। लेखक के पात्रों की सार्वभौमिकता कहीं भी पाई जा सकती है। किसी गांव या नगर से निकले हुए लेखक या कवि किस प्रकार वैश्विक स्तर पर अनुकरणीय होते चले जाते हैं उसका महत्वपूर्ण उदाहरण गोरखपुर है। इस धरती ने फिराक जैसे महान लोगो को जन्म दिया है, उन्होंने उर्दू में ऐसी रचनाएं की जो आज भी प्रासंगिक हैं। संविधान की प्रस्तावना में समाहित लोकतंत्र के आदर्श स्वतंत्रता संग्राम के आदर्श को रिफ्लेक्ट करते हैं और उनमें गोरखपुर तथा प्रेमचंद का विशेष स्थान रहा है।


मीडिया पर प्रतिबंध तानाशाही
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार व साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि राजनीतिक विचारकों का यह मत रहा है कि वही व्यवस्था सर्वोत्तम है जिसमें सबसे कम शासन किया जाए। शासन व्यवस्था के साहित्य पर पडऩे वाले प्रभाव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि तानाशाही शासन में अगर साहित्य की दुर्गति के प्रमाण देखना हो तो कम्युनिस्ट शासन से बेहतर उदाहरण और कोई नहीं हो सकता। साहित्य तथा मीडिया पर प्रतिबंध तानाशाही व्यवस्था का द्योतक है। चीन और रूस इसके उदाहरण हैं। लेखक और साहित्य तानाशाही का शाश्वत विरोधी होता है। तानाशाही भले साहित्य के प्रसार को रोक दे पर वह साहित्य की रचना को नहीं रोक सकता। आखिर में उन्होंने कहा कि लोकतंत्र ऑफ द पीपल बाय द पीपल फॉर द पीपल है। 1789 की फ्र ंच क्रांति के बाद जिस लोकतंत्र की कल्पना की गई थी, वह लोक के महत्व तथा अभिव्यक्ति की आजादी की है। यह राज की कल्पना में नहीं है बल्कि लोक अर्थात जनता की कल्पना में है।
दीप प्रज्ज्वलन से शुरुआत
दो दिवसीय गोरखपुर लिटफेस्ट की शुरुआत लोकतंत्र और साहित्य विषयक सेशन से हुई। इसमें चीफ गेस्ट आरिफ मोहम्मद खान के साथ ही मुख्य वक्ता प्रख्यात साहित्यकार और लेखिका मृदुला गर्ग, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार सिंह मौजूद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार व साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने की। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के संयोजक अचिन्त्य लाहिड़ी ने कहा कि साहित्य संस्कृति के इस वैचारिक महाकुम्भ में शहर का साहित्यप्रेमी बुद्धिजीवी समाज आज इस आयोजन में शरीक हो रहे सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता है। कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ। संजय कुमार श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की भूमिका रखी। आभार ज्ञापन अध्यक्ष डॉ। हर्षवर्धन राय ने किया। सत्र का संचालन डॉ। श्रीभगवान सिंह ने किया।