गोरखपुर (सैयद सायम रऊफ)। जिनमें इस्तेमाल की गई इंजीनियरिंग की मिसालें आज भी दी जाती हैं। 100 साल से पानी में खड़े यह ब्रिज ब्रिटिश पीरियड में लाजवाब इंजीनियरिंग की दास्तान सुनाते हैं। मगर, एक ऐसा पुल भी देश में है, जहां ब्रिटिश इंजीनियरिंग भी पूरी तरह फेल हो गई। लाख कोशिशों और हजारों सर्वे के बाद भी ब्रिटिश इंजीनियर्स ने पुल बनाने में अपने हाथ खड़े कर दिए। हम बात कर रहे हैं नार्थ ईस्टर्न रेलवे हेडक्वार्टर से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर मौजूद पनियहवा में गंडक नदी पर बने ब्रिज की, जिसे अंग्रेजी टेक्निक को छोड़ 71 साल बाद इंडियन इंजीनियर्स ने अपने हुनर से इसे पूरा किया और अब यहां दो दशकों से पानी के ऊपर रेल दौड़ रही है।
सिर्फ 12 साल टिकी ब्रिटिश इंजीनियरिंग
सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह की मानें तो पनियहवा और वाल्मिकी नगर स्टेशन के बीच मौजूद इस ब्रिज के जरिए छितौनी और बगहा के लोगों को अपना पहला रेल लिंक मिला। ब्रिटिश इंजीनियर्स ने इसे पूरा तो कर लिया, लेकिन पानी की धारा के साथ ब्रिज के लेफ्ट स्पैन के तीन खंभे बह गए। इसकी वजह से महज 12 साल में ही ब्रिटिश इंजीनियरिंग का यह नमूना फेल हो गया। इसके बाद अंग्रेजों ने इंडिया में रहने के दौरान कई बार इसे बनाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी।
बहाव में बह गई ब्रिटिश इंजीनियरिंग
गंडक एक ऐसी नदी है, जो काफी कर्व के साथ है और जिसकी धारा समय-समय पर चेंज होती रहती है। पुल बनने के बाद गंडक का धारा प्रवाह बदल गया और उसकी स्पीड 17 फीट प्रति सेकेंड और गहराई 90 के बजाए 100 फीट से अधिक मापी गई। ऐसे में वहां पीयर नंबर 14 बह गया, इसके साथ ही उसे लेफ्ट स्पैन गर्डर गायब हो गए। कुछ समय के बाद करीब 3-4 मील दूर उसके पाट्र्स मिले। इसके बाद नदी ने कभी अपनी धारा पुल की ओर नहीं बदली, जिसकी वजह से यह पुल स्टार्ट नहीं हो सका।
1995 में मिल सका ब्रिज
इसके बाद इंडियंस को आजादी मिली और ब्रिटिश अपने देश लौटे। इसके बाद पुल की फिजिबिल्टी को लेकर दोबारा वर्क शुरू हुआ। करीब 71 साल बाद इंडियन रेलवे के इंजीनियर्स ने नदी में फिजिबिल्टी चेक कर पुल का निर्माण किया। 1995 में यह ऐतिहासिक ब्रिज रिस्टोर हो सका और लोगों को 31 मार्च 1996 में एमजी रेल लिंक मिल पाया। इसके साथ ही गोरखपुर, खड्डा, नरकटियागंज, वाल्मिकी नगर का गेज कनवर्जन भी किया गया। 29 मार्च 1999 में पैसेंजर्स को इस पुल पर ब्रॉड गेज की लाइन भी मिल गई। मई 2002 से इस पर गाडिय़ां दौड़ाई जाने लगीं। ब्रिज पर करीब 165 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े, जिसे रेलवे, बिहार गवर्नमेंट और यूपी गवर्नमेंट ने बियर किया।
108 किमी हो गई दूरी
गोरखपुर से बगहा के बीच रेलवे या किसी दूसरे मीडियम से दूरी करीब 495 किमी थी। लोगों को काफी घूमकर सफर करना पड़ता था, लेकिन ब्रिज बन जाने के बाद यह दूरी महज 108 किमी हो गई। इससे न सिर्फ इंडियन को बड़ी राहत मिली, बल्कि इंडिया और नेपाल के बीच ट्रैफिक फ्लो में भी काफी आसानी हो गई।
ब्रिटिश पीरियड के कुछ ऐतिहासिक ब्रिज

पंबन ब्रिज, तमिलनाडु
निर्माण पूरा हुआ : 1914, लंबाई : 6776 फीट
तमिलनाडु में स्थित पंबन पुल भारत के ऐतिहासिक रेल ब्रिज में से एक है। यह रामेश्वरम को इंडिया से जोडऩे वाला एक मात्र रेल ब्रिज है। 1911 में इस पुल का निर्माण शुरू हुआ और 24 फरवरी 1914 को इसे खोला गया। 2010 में बान्द्रा-वर्ली सी लिंक बनने से पहले यह भारत का सबसे लंबा समुद्र पर बना पुल था। अब इस पर पैरलल ब्रिज बनाया जा रहा है।
पुराना गोदावरी ब्रिज, आंध्र प्रदेश
निर्माण पूरा हुआ : 1900, लंबाई : 2.7 किमी
पुराने गोदावरी ब्रिज को हैवलॉक ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है। लगभग सौ सालों तक इस रेलवे ब्रिज ने मद्रास और हावड़ा को जोड़े रखा। इस ब्रिज का निर्माण 11 नवंबर 1897 में शुरू हुआ और इसका नाम उस दौर में मद्रास के गवर्नर सर आर्थर हैवलॉक के नाम पर पड़ा। बाद में इसे गोदावरी पुल नाम दिया गया। पुराने पुल का लाइफ स्पैन खत्म होने के बाद इसी के पास गोदावरी आर्क ब्रिज बनाया गया, जिसका वर्तमान में उपयोग किया जा रहा है।
कोरोनेशन ब्रिज, पश्चिम बंगाल
निर्माण पूरा हुआ : 1941, लंबाई : 400 फीट
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में कोरोनेशन ब्रिज का निर्माण 1937 में शुरू हुआ था। तिस्ता नदी के ऊपर बना ये ब्रिज दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी शहर को नेशनल हाईवे 31 से जोड़ता है। इतिहासकार बताते हैं किंग जॉर्ज सिक्थ के राज तिलक के दौरान उनके सम्मान में इस ब्रिज को बनाया गया था।
हावड़ा ब्रिज, कोलकाता
निर्माण पूरा हुआ : 1942, लंबाई : 2313 फीट
हावड़ा ब्रिज भारत के सबसे प्रसिद्ध पुलों में से एक है। 1936 में इस ब्रिज का निर्माण शुरू हुआ और 1942 में यह पूरा हुआ था। इसके बाद 1943 में इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया था। उस दौर में यह पुल दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था।
ब्रिज नंबर-541, हिमाचल
निर्माण पूरा हुआ : 1898, लंबाई : 174 फीट
कनोह रेलवे स्टेशन के करीब बना ब्रिज नंबर-541 देश ही नहीं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। कालका-शिमला रेल रूट पर यूं तो दर्जनों पुल ब्रिटिशकाल में बनाए गए पर ब्रिज नंबर-541 की खूबसूरती 124 साल बाद भी देखते ही बनती है। चार मंजिला आर्क गैलरी की तरह बना ये ब्रिज उस दौर में ईंट और गारा से बनाया गया था। इसपर आज भी ट्रेन का संचालन होता है।
गंडक ब्रिज की कहानी काफी रोमांचक है। ब्रिटिश पीरियड में इसे बनाया गया, लेकिन उस समय यह सिर्फ 12 साल ही चल सका। आजादी के बाद इंडियन इंजीनियर्स ने इस पर वर्क शुरू किया। 1995 में इस ब्रिज को कंप्लीट कर लिया गया और 31 मार्च 1996 से इस पर ट्रेनें भी चलने लगीं। इसके बाद 29 मार्च 1999 में इसे ब्रॉड गेज में कनवर्ट कर दिया गया। 2002 से लगातार ट्रेनों का संचालन हो रहा है। इससे नेपाल की दूरी भी काफी कम हो गई है।
- पंकज कुमार सिंह, सीपीआरओ, एनई रेलवे