गोरखपुर (प्रांजल साहू)।जिला अस्पताल, एम्स और बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आग बुझाने के लिए लगाए गए फायर एक्सटिंग्विशर्स एक्सपायर हो जाने की वजह से रोजाना आने वाले सैकड़ों मरीजों की जान खतरे में है। अस्पताल में प्रत्येक वार्ड के बाहर व अंदर आग फायर इंस्टिग्यूशर लगाए तो गए हैं, लेकिन इनके इस्तेमाल की समयावधि समाप्त हो चुकी है। क्योंकि सिलेंडर में जो गैस होती है उसकी क्षमता आग पर काबू पाने की बहुत कम हो जाती है। अस्पताल प्रशासन यह जानते हुए भी गहरी नींद से जाग नहीं रहा है। गर्मी आने वाली है। ऐसे में शॉर्ट सर्किट होने के कारण आग भी लग सकती है। क्योंकि इस दौरान बिजली उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ जाता है और शॉर्ट सर्किट का खतरा बना रहता है।

जिला अस्पताल मेें हो सकती है आफत

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के रियलिटी चेक में जिला अस्पताल के इमरजेंंसी में लगे फायर इंस्टिग्यूशर एक्सपायर मिले। जबकि इससे सटे इमरजेंसी, मेल आर्थो और फीमेल वार्ड में अमूमन 200 से अधिक पेशेंट भर्ती रहते हैं। इमरजेंसी के अंदर डेली 50 से 60 की संख्या में गंभीर पेशेंट इलाज के लिए आते हैं। आलम यह है कि जिम्मेदार अफसर यहां लगे अग्निशमन यंत्रों की जांच तक नहीं कराते हैैं।

बीआरडी मेडिकल कॉलेज

बीआरडी मेडिकल कॉलेज 1000 से अधिक बेड की क्षमता वाला अस्पताल हैं। यहां इससे पहले मेडिसिन और सर्जिकल स्टोर में आग लग चुकी है। इसकी हकीकत जानने के लिए टीम ने लगे र्अिग्नशमन यंत्रों को चेक किया। डिपार्टमेंट से लगाकर ऑपरेशन थिएटर, ब्लड बैंक, ट्रामा सेंटर, ओपीडी, वार्ड और स्टोर के कई स्थानों पर अग्निशमन यंत्र एक्सपायर मिले। आलम यह है कि मेडिकल कॉलेज के जिम्मेदार अफसर अग्निशमन यंत्रों की ओर ध्यान ही नहीं देते हैं।

एम्स में भी व्यवस्था बदहाल

एम्स में ओपीडी, रजिस्ट्रेशन काउंटर, सीटी स्केन और एमआरआई के बगल में लगे सभी अग्निशमन एक्सपायर कर चुके हैं। यहां फायर इंस्टिग्यूशर की डेट एक्सपायर हो चुकी है। जबकि इसकी जांच करने की जिम्मेदारी एम्स प्रशासन की है लेकिन जिम्मेदार ध्यान नहीं देते। यहां डेली 2200 ओपीडी होती है। लेकिन फिर भी एम्स में आग से निपटने के लिए प्रशासन गंभीर नहीं दिख रहा है। ऐसे में अगर बड़ी घटना होती है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। इससे अस्पताल का स्टाफ, मरीज व मरीजों के साथ आने वाले परिजनों की जान भी खतरे में रहेगी।

यह गैस होती है सिलेंडर में

अस्पताल में जो फायर इंस्टिग्यूशर दीवारों पर लटकाए गए हैं। उनमें दो प्रकार की गैस होती है। एक सीओ-टू कार्बन डाई आक्साइड व दूसरी एबीसी नाम की गैस होती है। कार्बन डाई आक्साइड गैस शॉर्ट सर्किट जैसी आग पर काबू पाती है। एबीसी नाम वाली गैस कपड़े, सोफे, फर्नीचर जैसी वस्तु को लगी आग पर काबू पाती है।

सिलेंडर की गैस एक साल तक रहती प्रभावी

फायर इंस्टिग्यूशर में भरी गैस में एक साल तक अच्छा काम कर सकती है। कई सिलेंडर साल खत्म होने के बाद दो माह भी चल जाते हैं और कइयों को भरवाने के चार माह बाद ही लीकेज शुरू हो जाता है। इसलिए लोगों को चाहिए कि वह एक साल का समय खत्म होते ही इसकी दोबारा रिफलिंग करवा लें।

1600 ओपीडी जिला अस्पताल

150 इमरजेंसी

2200 एम्स की ओपीडी

2500 बीआरडी ओपीडी

अग्निशमन यंत्र वाले सिलेंडर में प्रेशर मीटर लगा होता है। जैसे प्रेशर कम होता जाता है। मीटर की सुई नीचे गिर जाती है। इससे पता चलता है कि गैस का प्रेशर कम हो गया है। इसकी जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की होती है कि वह समय से सिलेंडर चेक कर उसकी रिफलिंग करवाएं। जल्द ही अग्निशमन यंत्रों की जांच कराई जाएगी।

डीके सिंह, मुख्य अग्निशमन अधिकारी

अग्निशमन यंत्रों को प्रॉपर चेक किया जाता है। अगर सिलेंडर में गैस खत्म हो गई है तो तत्काल रिफलिंग करवाई जाएगी।

डॉ। राजेंद्र ठाकुर, एसआईसी

प्रतिदिन सुबह अस्पतालों के विभिन्न वार्डो को जायजा लिया जाता है और उपकरणों को भी चेक किया जाता है। अगर अग्निशमन सिलेंडर की डेट एक्सपायर हो गई है तो तत्काल रिफलिंग करवाई जाएगी।

डॉ। राजेश कुमार राय, एसआईसी बीआरडी