गोरखपुर (ब्यूरो) गंदगी इस कदर है कि यहां अंदर जाना तो दूर, बगल से गुजरना भी मुश्किल है। बदबू से मुंह भी ढंकना पड़ता है। सोमवार को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम यूनिवर्सिटी के कुछ डिपार्टमेंट में पहुंची तो साफ-सफाई व्यवस्था की पोल खुल गई। स्टूडेंट्स ने बताया कि शिकायत पर भी जिम्मेदारों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।

रोज आते हैं करीब 4 हजार स्टूडेंट्स

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में लगभग 5 से 6 हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। इसमें से करीब 4 हजार स्टूडेंट्स रोजाना आते हैं। यूनिवर्सिटी के सभी डिपार्टमेंट के टॉयलेट की कंडीशन खराब है। इमरजेंसी पर ही स्टूडेंट्स यहां के टॉयलेट यूज करते हैं। उसमें भी तमाम तरह की दिक्कतें हैं। गंदगी से भरा पड़ा है और पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है। विभाग में लगे वॉटर कूलर भी काम नहीं कर रहे और ना ही उसको सही कराया जा रहा है।

सेंट्रल लाइब्रेरी

सेंट्रल लाइब्रेरी में जाने पर टॉयलेट में गंदगी दिखी। नल टूटा हुआ था। फ्लश खराब था। सेनटरी फैसिलिटी नहीं थी। स्टूडेंट्स ने बताया कि वह कभी कभार ही यहां आते हैं। कई बार जिम्मेदारों से शिकायत की गई, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ।

कला संकाय भवन

कला संकाय में जाने पर टॉयलेट पूरी तरह से जर्जर दिखा। इममें लगा फ्लश खराब था। दरवाजे टूटे थे। टॉयलेट में लगी टोटी काम नहीं कर रही थी। स्टूडेंट्स के अनुसार इमरजेंसी न हो तो वे नहीं आते हैं। जिम्मेदारों को भी इसकी जानकारी है लेकिन कुछ नहीं करते हैं।


हिंदी भवन
हिंदी भवन में टॉयलेट के सभी दरवाजे टूटे मिले। कुंडी भी नहीं थी। फ्लश टूटकर जमीन पर गिरा हुआ था। गंदगी का अंबार चारों तरफ था। दीवार की पेंटिंग देखकर लगा कि सालों पहले हुई होगी। इस दौरान टॉयलेट में पहुंचे एक स्टूडेंटस ने बताया कि इमरजेंसी में ही आना पड़ता है।

टॉयलेट गंदा होने कारण कभी-कभार ही इस्तेमाल करते हैं। यूनिवर्सिटी में आने के बाद पानी भी कम पीते हैं। टॉयलेट की सफाई बिल्कुल नहीं होती है, स्टूडेंट्स को फैसिलिटी दी जानी चाहिए।

हेमा विश्वकर्मा

यूनिवर्सिटी में मेल और फीमेल दोनों ही वॉशरूम गंदे हैं। कई बार कंप्लेन करने के बाद भी ध्यान नहीं दिया जाता है। टॉयलेट में गंदगी के कारण इमरजेंसी में ही इस्तेमाल किया जाता है। वरना जल्दी-जल्दी काम निपटाकर यूनिवर्सिटी से निकल जाते हैं।

पूजा चौहान

टॉयलेट में सैनिटरी से रिलेटेड चीजें बिल्कुल नहीं है, फ्लश भी टूटा है और टॉयलेट की कंडीशन का तो बहुत ही बुरा हाल है। मजबूरी में भी टॉयलेट का इस्तेमाल न करना पड़े, इसलिए पानी कम पीते हैं।

सोनाली सिंह

सेंट्रल लाइब्रेरी में देर तक पढऩा चाहते हैं, लेकिन टॉयलेट जाने के डर से ज्यादा समय नहीं देते हैं। टॉयलेट में कोई फैसिलिटी नहीं है और हाईजीन की बहुत कमी है।

वंदना सिंह