- पहले लॉकडाउन फिर धागा न मिलने से हालत हुई खराब

- एक पखवारे से खामोश है पावरलूम

GORAKHPUR: कभी गोरखपुर और संत कबीरनगर के बुनकरों के बनाए कपड़ों की अपनी पहचान होती थी। यहां बड़ी संख्या में हथकरघे रहते थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण पावरलूम का खर्च उठा पाने में कठिनाई के कारण बहुत से बुनकरों ने यह काम छोड़ दिया। जो इस कारोबार से अभी जुड़े हैं, उनकी हालत भी पहले लॉकडाउन के बाद महाराष्ट्र, गुजरात, हैदराबाद से कच्चा माल (धागा) न मिलने से खराब हो गई है। बहुत से पावरलूमों पर ताला लग गया है और दिहाड़ी कारीगर फाकाकशी को मजबूर हैं।

तीन दशक पहले तक हथकरघा पर तैयार यहां की चादरों, लुंगी, तौलियों, गमछों की भारी मांग रहती थी। बंगाल और बिहार से भी यहां काम करने श्रमिक आते थे। कोलकाता से व्यापारी पहुंचते थे। वर्तमान में गोरखपुर में 3192 पावरलूम, 15,000 बुनकर और संतकबीरनगर में 4242 पावरलूम, 19,231 बुनकर हैं। कभी अकेले गोरखपुर में 8500 पावरलूम, 30,000 बुनकर थे। बुनकर मोइन अख्तर कहते हैं कि वही लोग अब इस पेशे में हैं जिनके पास कोई और विकल्प नहीं रह गया।

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हैंडलूम कारपोरेशन बंद होने से लगा धक्का

बुनकरों को सबसे बड़ा धक्का 1990 में लगा जब उत्तर प्रदेश की नौ कताई मिलों के साथ यूपी स्टेट हैंडलूम कॉरपोरेशन बंद कर दिया गया। इससे बुनकरों को सूत और उत्पादित कपड़ों के विक्रय के लिए बाजार पर निर्भर होना पड़ा। कॉरपोरेशन से बुनकरों को न सिर्फ सस्ता सूत मिलता था बल्कि तैयार कपड़े खरीद लिए जाते थे। अब बुनकर महाजनों के मोहताज हो गए। उन्हें सस्ता सूत मिलना बंद हो गया। महाजन वजन कर धागा देते और बुनकर बुनाई कर उतने ही वजन का कपड़ा वापस देते हैं। इसके एवज में बुनकर को मीटर के हिसाब से मजदूरी मिलती है। 1995 में चार रुपये 10 पैसे प्रति मीटर के हिसाब से मजदूरी मिलती थी, अब तीन रुपये 80 पैसे रह गई है। लगातार 12 घंटे लूम चलने पर करीब 36 मीटर कपड़ा तैयार होता है।

कच्चे माल की आपूर्ति बाधित होने से बुनकरों का काम काफी प्रभावित हुआ है। बहुत से पावरलूम धागे के इंतजार में बंद चल रहे हैं।

रामबड़ाई, सहायक आयुक्त हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग