- मेडिकल कॉलेज में पहले तीमारदारों से मिलने के बजाए जिम्मेदारों के साथ मीटिंग करते हुए स्वास्थ्य मंत्री

- गुणा-गणित करने में मंत्री को लग गया पांच घंटे से ज्यादा का वक्त

- लापरवाही छिपाने के लिए आंकड़ों का गुणा-गणित समझाते रहे स्वास्थ्य मंत्री

GORAKHPUR: उत्तर प्रदेश सरकार और उसके जिम्मेदार कितने संवेदनशील हैं, इसकी पोल शनिवार को ही खुल गई। सरकार के नुमाइंदे के तौर पर गोरखपुर पहुंचे स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन सिर्फ मेडिकल कॉलेज के जिम्मेदारों की पढ़ाई बातें बताकर वापस लौट गए। इस दौरान उन्होंने कार्रवाई का कोरम भी पूरा करते हुए मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल राजीव मिश्रा को निलंबित भी कर दिया। वहीं कोई उनके इस फैसले पर उंगली न उठाए इसके लिए सरकार के इन जिम्मेदारों ने उच्च स्तरीय जांच कमेटी भी गठित कर दी और जांच के बाद कार्रवाई की बात कही।

'होमवर्क' करने में लग गए पांच घंटे

मौत की जांच के मामले में गोरखपुर पहुंचे इन मंत्रियों पर टेंशन साफ झलक रही थी। जनता को क्या जवाब देंगे? उन मौतों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराएंगे? मीडिया को कैसे फेस करेंगे? इसका होमवर्क करने में इन दोनों जिम्मेदारों को पांच घंटे से ज्यादा का वक्त लग गया। इस दौरान उन्होंने मामले की लीपापोती करने के लिए न सिर्फ पुराने मौत के आंकड़े खंगलवा डाले, बल्कि ऑक्सीजन की कमी से मौत नहीं हुई है? इसको प्रूव करने के लिए उन्होंने टाइम और मौत के कारण तक निकलवा डाले। मगर जिम्मेदार अपनी ही बातों में उलझते चले गए और मीडिया के तीखे सवालों से बचकर भाग निकले।

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दिल्ली से लखनऊ हुआ दूर!

लखनऊ से गोरखपुर का रास्ता महज 300 किमी है, जबकि दिल्ली यहां से करीब 800 किमी दूर है। मगर शनिवार को गोरखपुर से दिल्ली करीब आया और लखनऊ दूर दिखा। दरअसल, कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद, राजबब्बर, आरपीएन सिंह दिल्ली से गोरखपुर सुबह 10 बजे ही पहुंच गए, जबकि लखनऊ से गोरखपुर आने में स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन को दोपहर 12 बज गए। जिम्मेदारों के इस रवैये की मेडिकल कॉलेज में काफी चर्चा रही।

मंत्री जी के बातें और उससे उठ रहे कुछ सवाल -

सिद्धार्थ नाथ सिंह - ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई है?

सवाल - 11 अगस्त को जो सात मौतें हुए हैं, उनमें से पांच मौतों के रीजन के साथ 'विद शॉक' भी लिखा हुआ है। यानि कि मौत होने से पहले उन्हें झटका भी आया था। एक्सपर्ट डॉक्टर्स की मानें तो ऐसी कंडीशन तभी होती है जब सांस लेने में परेशानी हो रही हो। तो क्या मौत के दौरान झटका आना यह प्रूव नहीं करता है कि मौत ऑक्सीजन की कमी से ही हुई है।

सिद्धार्थ नाथ सिंह - मेडिकल कॉलेज में 17-18 मौतें हर रोज हो रही हैं।

सवाल - तो क्या स्वास्थ्य मंत्री यह कहना चाहते हैं कि जो 30 मौतें हुई हैं, वह रूटीन प्रॉसेस है, इसमें कोई खास बात नहीं है।

सिद्धार्थ नाथ सिंह - जो भी पेशेंट्स आते हैं वह आखिरी स्टेज में मेडिकल कॉलेज पहुंचते हैं?

सवाल - जो भी मरीज मेडिकल कॉलेज में पहुंचते हैं, वह सीएचसी या पीएचसी से ही रेफर किए जाते हैं। तो क्या मंत्रीजी यह कहना चाहते हैं कि उनके सीएचसी-पीएचसी पर इलाज नहीं होता या लापरवाही की जाती है। आखिरी स्टेज में मरीजों को रेफर कर दिया जाता है।

सिद्धार्थ नाथ सिंह - बच्चों की मौत नियो नेटल, एईएस, इंफेक्शन, लीवर फेल्योर से हुई है।

सवाल - बच्चे भले ही नियो नेटल वार्ड या एईएस वार्ड में भर्ती थे, लेकिन क्या इन वार्ड में मरने वाले बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हो सकती है। क्या इन बच्चों की सांसे सिर्फ नियो नेटर या एईएस ही लेगा।

सिद्धार्थ नाथ सिंह - नियो नेटल और एईएस से मौत में पोस्टमॉर्टम की जरूरत नहीं है।

सवाल - जिस बच्चे की मौत नियो नेटल और एईएस वार्ड में होती है, क्या उनकी मौत की वजह सिर्फ यही वार्ड भर हैं। इनकी मौत का कारण जानने के लिए क्या पोस्टमॉर्टम कराया जाना जरूरी नहीं है। क्योंकि अब तक इंसेफेलाइटिस पेशेंट्स का पोस्टमॉर्टम नहीं होता है, जिससे उनकी मौत की असल वजह नहीं पता चल सकी है।

सिद्धार्थ नाथ सिंह - सरकार ने पांच अगस्त को ही ऑक्सीजन के लिए बजट जारी कर दिया था।

सवाल - अगर सरकार ने पांच अगस्त को ही बजट जारी कर दिया था, तो सप्लायर ने ऑक्सीजन की सप्लाई क्यों रोकी? क्या सरकार ने बजट जारी करने के बाद इसकी सूचना प्रिंसिपल को नहीं दी थी? अगर सात अगस्त को भी बजट मिल गया था, तो क्या प्रिंसिपल ने इसकी सूचना सप्लायर को नहीं दी थी? अगर दी थी, तो सबकुछ जानने के बाद भी सप्लायर ने गैस की सप्लाई क्यों रोकी? कहीं उसके ऊपर इतनी भारी रकम का पेमेंट करने के एवज में कोई दबाव तो नहीं बनाया जा रहा था? कहीं इस मामले में भी कोई कमीशन का खेल तो नहीं है।