- अवैध निर्माण का मामला सामने आने के बाद शुरू हुई जांच

- सदर तहसील से जिम्मेदारों ने मांगी है रिपोर्ट

- गलत तरह से नक्शा पास होने की कंडीशन में निरस्त होगा नक्शा

GORAKHPUR: सुमेर सागर ताल में हुए अवैध निर्माण का मामला सामने आने के बाद अब यहां नक्शा पास कराकर घर बनाने वाले लोग भी संदेह के घेरे में आ गए हैं। गोरखपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीडीए) भी अब सवालों के घेरे में है। इसके बाद अब अथॉरिटी के जिम्मेदारों ने सुमेर सागर व जटेपुर एरिया में पास किए गए सभी नक्शों की जांच कराने का फैसला किया है। इस संबंध में सदर तहसील से रिपोर्ट भी मंगाई गई है। किसी के भूखंड में अगर कमी मिली तो उसका नक्शे को निरस्त कर दिया जाएगा। मानचित्र पास करने में जो शामिल होंगे, उनकी जांच कर कार्रवाई की भी तैयारी है।

प्रशासन की जांच में अवैध निर्माण

डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से लगातार सुमेर सागर ताल में एनक्रोचमेंट के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सदर गौरव सिंह सोगरवाल ने बारीकी से जांच कर ताल की जमीन पर हुए निर्माण को अवैध बताया। इन्हें ध्वस्त कराने की प्रॉसेस चल रही है। वहां कुछ ऐसे मकान भी बने पाए गए हैं, जिनका नक्शा जीडीए से पास है। यह बात सामने आने के बाद प्राधिकरण पर सवाल उठने लगे। जिस पर जीडीए उपाध्यक्ष ने सभी मानचित्रों की नए सिरे से जांच कराने को कहा।

2001 में नक्शा पास

ताल सुमेर सागर में अतिक्रमण के खिलाफ चलाए गए अभियान में यह बात सामने आई थी कि एक केस में तथ्यों को छिपाकर सन 2001 में मकान का मानचित्र पास करा लिया। बुधवार देर शाम तहसील सदर प्रशासन की ओर से इस सबन्ध में जीडीए को पत्र भी लिखा गया। लेटर में यह साफ किया गया है कि मानचित्र पास कराने में जीडीए के तत्कालीन अधिकारियों व कर्मचारियों की भी मिलीभगत होगी। कोई मौके पर जांच करने नहीं गया और मानचित्र पास हो गया।

गलत मिले हैं नक्शे

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सदर गौरव सिंह सोगरवाल ने ऐसे जिम्मेदारों के खिलाफ जांच कर कार्रवाई करने की अपील की है। जीडीए ने भी जांच की है और मानचित्र गलत मिले हैं। जीडीए के सचिव रामसिंह गौतम ने बताया कि ये मानचित्र गलत हैं, इन्हें निरस्त किया जा रहा है। जीडीए की ओर से गूगल मैप के आधार पर जुटाई गई, जानकारी के अनुसार इस जमीन पर 2002 में मिट्टी गिराई गई और 2003 में निर्माण शुरू हो गया। जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई भी होगी।

तहसील से मांगी जानकारी

जीडीए में इस काम को प्राथमिकता के आधार पर किया जा रहा है। अब तक करीब सात फाइलें मिल चुकी हैं, और की भी तलाश है। अधिकतर में बैनामा का पेपर न होने से गाटा नम्बर पता नहीं चल पा रहा है। जिसके चलते तहसील से ताल के सभी गाटा नम्बर की जानकारी मांगी गई है। उसी के आधार पर मानचित्र निकाल कर जांच की जाएगी। अनुमान है कि जितनी फाइलें दाखिल की गई हैं, उन सभी ने मकान बनवा लिए होंगे।

वर्जन

सुमेर सागर ताल में मानचित्र पास होने की जांच की जा रही है। सुमेर सागर के साथ जटेपुर का विवरण भी तहसील से मंगाया गया है। फाइल की खोज जारी है। जिसकी भी जमीन में कमी होगी, उसका मानचित्र निरस्त होगा।

अनुज सिंह, उपाध्यक्ष, जीडीए