- जिले में आठ हजार रुपए का बजट, निराश करती मामूली रकम

- थानेदार की हर कार्रवाई में मुखबिर की अहमियत, सर्विलांस से घटा कद

GORAKHPUR: एसओ अपने हमराह के साथ क्षेत्र में मामूर थे तभी बाजरिए मुखबिर से अपराधियों के बारे में सूचना मिली। मुखबिर खास ने बताया कि शातिर बदमाश किसी वारदात को अंजाम देने के लिए निकले हैं। उनके पास असलहे भी हैं। मुखबिर की सूचना पर जब घेराबंदी की गई तो बदमाशों ने पुलिस पर फायर झोंक दिया। फिर बहादुरी दिखाते हुए टीम ने अभियुक्तों को गिरफ्तार किया। कुछ इस तरह की फर्द तब बनती है जब किसी शातिर बदमाश, उसके गैंग के सदस्यों को पुलिस गिरफ्तार करती है। अभियुक्तों के बारे में पुलिस को सूचना कैसे मिली। बार-बार इसका जिक्र प्रमुखता से किया जाता है। लेकिन जिले में पुलिस के मुखबिर बेहद ही खस्ताहाल हो चुके हैं। कई साल से पुलिस के लिए काम कर रहे मुखबिरों के लिए न तो सरकारी बजट बढ़ा। न ही थानों के फंड में कोई बढ़ोत्तरी की गई। जिले के थानों पर महज 28 रुपए में पुलिस के मुखबिर साल भर काम करते हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि थानेदार अपनी तरफ से भी मुखबिरों को मैनेज करते हैं।

सर्विलांस ने घटाया कद, नहीं मिलती अहमियत

पुलिस के लिए मुखबिर काफी अहमियत रखते हैं। इनकी गोपनीय सूचना पर पुलिस कार्रवाई करती है। क्षेत्र में किसी भी तरह की घटना होने पर पुलिस मुखबिरों का सहारा लेती रहती है। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस की वजह से मुखबिरों का कद कम हो गया। इसलिए पुलिस भी मुखबिरों को खास अहमियत नहीं देती। लेकिन क्षेत्र के अपराधियों में गहरी पैठ बनाने के लिए समझदार थाना प्रभारी मुखबिरों को प्रोत्साहित करते रहते हैं।

हर छोटी से बड़ी सूचना के लिए जरूरी

इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस का दायरा बढ़ने की वजह से कई बार क्रिमिनल मोबाइल फोन यूज नहीं करते। ऐसे में किसी घटना का पर्दाफाश करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर हो जाता है। जहां पर इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस काम नहीं आता। वहां मुखबिर ही पुलिस के मददगार बनते हैं। ऐसे में हर छोटी से लेकर बड़ी सूचना में मुखबिरों को इस्तेमाल किया जाता है। मुखबिरों पर निर्भर थाना प्रभारी अपने एरिया में हुई घटनाओं को ओपन करने में ज्यादा कामयाब रहते हैं।

जिले को एक साल में महज आठ हजार

पुलिस से जुड़े लोगों का कहना है कि गवर्नमेंट ने मुखबिरों का फंड नहीं बढ़ाया है। जिले में करीब आठ हजार रुपए की सरकारी मदद मिलती है। इसको लेकर पुलिस अधिकारी सही जानकारी नहीं देते। लेकिन आठ हजार रुपए के बजट को यदि सभी थानों को दिया जाए तो हर थाने को बमुश्किल 24 रुपए मिल पाएंगे। ऐसे में किसी मुखबिर की मदद ले पाना संभव नहीं है।

मुखबिरों का ध्यान रखते थानेदार, पूरी होती जरूरतें

पुलिस के मुखबिरों का कोई अलग चेहरा-मोहरा नहीं होता है। बल्कि सभी की तरह होते हैं। उनका काम यह होता है कि किसी तरह की आपराधिक सूचना मिलने पर वह अपने परिचित पुलिस कर्मचारियों को बता देते हैं। उनकी बात पर अमल करते हुए पुलिस टीम कार्रवाई करती है तो बदमाशों को पकड़ने में मदद मिलती है। अपराधियों से लेकर हर तरह के अवैध कारोबार की सूचना देने वाले मुखबिरों का खास ख्याल भी थानेदार रखते हैं। इसके लिए अपने पास से रुपए देने के साथ-साथ उनकी छोटी-मोटी आवश्यकताओं, पैरवी को भी ध्यान में रखा जाता है। एसटीएफ, क्राइम ब्रांच, थानों की पुलिस के साथ-साथ खुफिया विंग के लोग मुखबिर जोड़कर रखते हैं।

यह काम करते मुखबिर

किसी अपराध में शामिल बदमाशों के बारे में सूचना देना।

एरिया में एक्टिव बदमाश, उससे जुड़े लोगों की जानकारी जुटाना।

क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बारे में सही सूचना लेकर एसओ को बताना।

थाना, चौकी क्षेत्र में होने वाले किसी तरह के अवैध कारोबार की सूचना।

पुलिस के खिलाफ होने वाली गतिविधियों की जानकारी संबंधित को मुहैया कराना।

सूचना देने पर मुखबिर खास को लाभ देने की परंपरा है। उनकी पैरवी भी सुनी जाती है।

पुलिस के ज्यादातर मुखबिर अपराध से जुड़े रहते हैं। उनकी छोटी-मोटी गलती पुलिस नजरअंदाज करती है।

वर्जन

मुखबिरों पर खर्च की जाने वाली रकम गोपनीय होती है। मुखबिरों से सूचना लेने वाले संबंधित लोग इसे अपने हिसाब से खर्च करते हैं। यह बेहद ही सीक्रेट होता है। इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा सकती है।

- डॉ। सुनील गुप्ता, एसएसपी