- चौरी चौरा में पहले दिन आर्गनाइज हुआ कवि सम्मेलन

GORAKHPUR: चौरी चौरा महोत्सव के पहले दिन कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दौरान कवियों ने देशभक्ति एवं सामाजिक मुद्दों पर खुद की बनाई रचनाएं सुनाकर दर्शकों से खूब वाहवाही लूटी। कवि सम्मेलन की शुरुआत कवि वसीम मजहर ने अपनी रचना 'चलो अब सर पे अपने हम तिरंगा बांध कर निकलें, हमें हिन्दोस्तां की सरहदें आवाज देती है' से की। इसके बाद कावियत्री आकृति विज्ञा 'अर्पण' ने 'सुनो बसंती हील उतारो, अपने मन की कील उतारो, नंगे पांव चलों धरती पर, बंजर पथ पर झील उतारो' पढ़ा तो दर्शकों ने खूब तालियां बजाई।

कविता से शहीदों की याद दिलाई

कावियत्री डॉ। चेतना पांडेय ने अपनी कविता 'अधूरे-अधूरे सपन ले के लौटे, न पूरे हुए जो वचन ले के लौटे, लुटे रंग सारे मेरी ओढ़नी के, पिया तो तिरंगा कफन ले के लौटे' का पाठ किया तो हर किसी ने देश की सीमा पर शहीद होने वाले जवानों की विधवाओं के दर्द को महसूस किया। कवि विनीत चौहान अलवर राज ने अपनी कविता 'सीमा नही खिंचा करती हैं, कागज बिछी लकीरों से, सीमाएं घटती बढ़ती हैं वीरों की शमशीरों से' का पाठ किया तो लोगों में देशभक्ति हिलोरे मारने लगी।

दर्शकों की खूब बटोरी वाहवाही

देश के मशहूर कवि डॉ। हरिओम पवार ने अपनी रचना 'मैं ताजों के लिए समर्गीपण वंदन गीत नहीं गाता, दरबारों के लिए कभी अभिनंदन गीत नहीं गाता, गौण भले हो जाऊं लेकिन मौन नही हो सकता मैं, पुत्रमोह में शस्त्र त्यागकर द्रोण नहीं हो सकता मैं, मैं शब्दों की क्रांति ज्वाल हूं वर्तमान को गाऊंगा, जिस दिन मेरी आग बुझेगी मैं उस दिन मर जाऊंगा' पढ़ा तो पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। गोरखपुर के मशहूर शायर डॉ। कलीम कैसर ने 'युगों-युगों गूंजे ये नारा, केवल इक दो सदी नहीं, भारत जैसा देश नहीं और गंगा जैसी नदी नहीं पढ़ दर्शकों की खूब वाहवाही बटोरी। अर्चना मालवीय ने कवि सम्मेलन की अंतिम कविता 'ललकार मांगती हूं, झनकार मांगती हूं, दिनकर की वंशजा हूं, श्रृंगार मांगती हूं' पढ़ी। सम्मेलन का संचालन कवि राजेश राज ने किया।