- 20 साल में पांच गुना बढ़े लाइलाज लंग्स फाइब्रोसिस के पेशेंट्स

केस 1-कुशीनगर के रहने वाले 60 वर्षीय राम प्रसाद सिंह को लगभग पांच माह पहले बीमारी हो गए। उन्होंने डॉक्टर से संपर्क किया। डॉक्टर ने जांच की सलाह दी। जांच में पता चला कि उन्हें लंग्स फाइब्रोसिस ट्यूबर कुलोसिस है।

केस 2-महेवा की रहने वाली 65 वर्षीय आशा को 15 माह पहले सामान्य कामकाज में भी सांस फूलने की परेशानी होने लगी। एक चेस्ट रोग विशेषज्ञ से इलाज कराने पर लाभ न हुआ तो एम्स गई। जांच से पता चला कि उन्हें लंग फाइब्रोसिस है। अब वह शहर में ही इसका इलाज करा रही है।

केस 3-सिद्धार्थनगर की रहने वाले 65 वर्षीय शांति देवी एक साल पूर्व सांस फूलने की परेशानी हुई। इसके बाद शहर के एक विशेषज्ञ की सलाह पर उन्होंने फेफड़े की जांच कराई। रिपोर्ट में पता चला कि उन्हें लंग फाइबोसिस है। शहर में ही एक डॉक्टर से इलाज करा रही है।

GORAKHPUR: यह तीन केस को एग्जामपल भर हैं। खदानों और फैक्ट्रियों में लोगों को अपनी चपेट में लेने वाली बीमारी अब शहर में भी पांव पसारने लगी है। यह लाइलाज तो है ही वहीं यह किस वजह से हो रही है, इसके बारे में भी अब तक किसी को नहीं मालूम हो सका है। अब यह कोविड से जंग जीत चुके लोगों को भी अपनी चपेट में लेने लग गई है। कई कोविड चैंपियन इस बीमारी का शिकार हुए हैं और मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। डॉक्टर्स की मानें तो लंग्स फाइब्रोसिस नाम की इस बीमारी के मरीज 20 साल में पांच गुना बढ़े हैं। पहले कोयले की खदानों, टाइल्स एवं मार्बल इंडस्ट्री में काम करने वाले ही इसकी चपेट में आते थे, लेकिन अब इसका दायरा बढ़ा है और इधर कोरोना से जंग जीत चुके कई लोगों में भी इसके सिंप्टम्स पाए गए हैं।

सांस फूलने से शुरुआत

इस बीमारी में शुरुआती दिनों में मरीज को सांस फूलने की शिकायत होती है। कुछ ही दिनों में यह समस्या इतनी बढ़ जाती है कि मरीज को चलने-फिरने में भी प्रॉब्लम होने लगती है। डॉक्टर्स की मानें तो इस बीमारी में मरीज के फेफड़े सिकुड़ जाते हैं, जिसकी वजह से ऑक्सीजन धारण करने की क्षमता कम हो जाती है। मेडिकल साइंस अब तक इस बीमारी पर काबू पाने में कामयाब नहीं हो सका है। रोकथाम के लिए बीमारी का जल्द पता लगना जरूरी है। सीटी स्कैन के जरिए बीमारी शुरुआती चरण में ही पहचाना जा सकता है।

कितने तरह के फाइब्रोसिस -

- फेफड़े की फाइब्रोसिस के कई प्रकार होते हैं।

- इन्हें दो प्रमुख भागों में बांटा गया है।

- पहला आईपीएफ इंडियापैथिक पल्मोनरी फाइब्रेसिस है, जो लगभग 50 फीसदी मरीजों में पाया जाता है।

- दूसरा नॉन आईपीएफ जो कि अन्य 50 फीसदी मरीजों में मिलता है।

लक्षण

- इस बीमारी के लक्षण टीबी या दमा के लक्षणों से काफी मिलते हैं।

- सूखी खांसी आना

-लगातार सांस फूलना

- भूख कम लगना

- शरीर का कमजोर हो जाना

जांच

- पीएफटी पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट से दमा और फेफड़े की फाइब्रोसिस में अंतर किया जा सकता है।

- फेफड़े की फाइब्रोसिस का सटीक पता लगाने के लिए सीटी स्कैन कराया जाता है।

इलाज

बीमारी के गंभीर होने पर फेफड़े मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखने लगता है। इस अवस्था में ऑक्सीजन देना ही आखिरी इलाज बचता है।

कोविड-19 के बाद लंग फाइब्रोसिस के काफी केस मिले हैं। कोरोना मरीजों के ठीक होने के बाद 10 से 15 केस सामने आए हैं। हालांकि पिछले साल जनवरी और फरवरी में ज्यादा केस देखने को मिले थे। इसका सटीक कारण और इलाज अज्ञात है। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर शोध किया जा रहा है। इस शोघ में बीआरडी मेडिकल कॉलेज चेस्ट विभाग भी शामिल है। ऐसे मरीजों के आंकड़े और केस स्टडी को रिसर्च के लिहाज से साझा किया जा रहा है। गठिया के मरीजों में इस बीमारी के होने की आशंका अधिक होती है।

- डॉ। अश्रि्वनी मिश्र , एचओडी चेस्ट व टीबी रोग विशेषज्ञ

लंग्स फाइब्रोसिस फेफड़े की बामारी है। कोयले की खदान, टाइल्स, मार्बल इंडस्ट्रीज में काम करने वाले वर्कर्स में ज्यादा बीमारी पाई जाती है। यह बीमारी ठीक नहीं होती है, लेकिन इसे रोका जा सकता है। कोरोना के गंभीर मरीजों को भी फाइब्रोसिस फेफड़े से जुड़ी बीमारी के केस मिले है। ओपीडी करने के दौरान लंग्स फाइबोसिस के गिने चुने मामले देखने को मिलते हैं। शहर में लगभग हर रोज एक दो मरीज मिल रहे हैं। जो बाहर से आए हैं। यदि मरीज शुरूआती समय में इलाज कराए तो बीमारी से बचाया जा सकता है।

- वीएन अग्रवाल, चेस्ट रोग विशेषज्ञ