-चेन्नई से लौटे प्रवासियों को छलका दर्द

-चेन्नई में नहीं मिला खाना तो पैदल निकल दिए शहर

-रास्ते में कई जगह खाकी ने वसूल लिए पैसे

-कई गाडि़यों में किया पैसा बर्बाद, रास्ते में उतार कर भागा चालक

GORAKHPUR: पांव में छाले माथे पर पसीना दिल में इस बात की खुशी कि ये रास्ता कभी तो घर पहुंचाएगा। हम जिस रास्ते जा रहे हैं वो हमें जरूर बीबी बच्चों से मिलाएगा। मेरा जीवन भी जरूरी है मेरे परिवार के लिए, मैं मेहनत करके कमाता हूं तब परिवार का पेट भरता है। इस लिए इस भयावह बीमारी से दूर मुझे अपने घर किसी भी हाल में पहुंचना है। यहां रहा तो कोरोना से पहले पेट की भूख मुझे मार डालेगी। ये दर्द भरी दास्तां चेन्नई से लौटे प्रवासियों की है। जो मंगलवार को किसी तरह गोरखपुर पहुंचे थे। सभी प्रवासियों ने एक सुर में कहा कि नमक रोटी खाएंगे दूसरे शहर अब नहीं जाएंगे।

कोरोना ने सबकुछ छुड़ाया

गोरखपुर के बांसगांव, गोला, बेलीपार और कौड़ीराम एरिया के रहने वाले 1 दर्जन से अधिक लोग चेन्नई में काम करते थे। जो आज स्टेशन पर एक साथ मिले तो एक दूसरे से अपना दर्द शेयर कर टेंशन दूर किए। ये सभी लोग लॉकडाउन में साधन ना मिलने पर कुछ दूर पैदल तथा कुछ दूर ट्रक में सफर करते हुए गोरखपुर पहुंचे थे। जिसके बाद रेलवे स्टेशन से अपने गांव के लिए रोडवेज बस पकड़ने पहुंचे थे।

सभी ने अब अपना घर ना छोड़ने की खाई कसम

एमपी और चेन्नई से जैसे तैसे 7 दिन बाद गोरखपुर पहुंचे तो सभी प्रवासियों ने कसम खाई कि अब अपना शहर नहीं छोडेंगे। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट टीम से बातचीत में प्रवासियों ने बताया कि नमक रोटी खाएंगे, खेतों में कुदार चलाएंगे, लेकिन शहर नहीं जाएंगे। प्रवासियों ने बताया कि हम लोग अपने परिवार का भविष्य संवारने के लिए दूसरे प्रदेश कमाने गए थे। जब तक सब कुछ ठीक था, तब तो कुछ पैसे मिले और घर की जीविका चलती रही। लेकिन जैसे ही कोरोना महामारी ने कदम रखा, मालिकों ने अपना साया हमारे सर से हटा लिया। पिछले ढाई से 3 महीने से कंपनी मालिकों ने पैसा नहीं दिया था। इसके बाद यह कह कर निकाल दिया गया कि काम बंद हो गया अब तुम्हारा क्या काम है। इसके बाद जान बचाने के लिए मजदूर जैसे-तैसे अपने घर के लिए पैदल ही निकल पडे़।

फर्नीचर का काम करता था सलीम

चेन्नई से लौटे सलीम ने बताया कि परिवार का खर्च निकालने के लिए मैं वहां गया था। चेन्नई में एक फर्नीचर की दुकान पर 8 हजार की नौकरी उसे मिली थी। जिसमें से पैसा बचाकर वो घर भेजता था। लेकिन जब काम बंद हुआ तो मालिक ने काम से निकाल दिया। अब मेरे पास रहने खाने के लिए भी कुछ नहीं था। ऐसे में मैंने घर लौटने का इरादा बनाया। अब तो जो भी करना है वो अपने शहर में रहकर ही करूंगा।

मालिक को कोसता रहा रामकरण

कुछ ऐसी ही कहानी राम करण की है। रामकरण ने बताया कि वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए बाहर कमाने गया था। लेकिन अचानक से कोरोना बीमारी आने से सारे सपने टूट गए। वहीं जो काम भी किया था उसका भी मेहनताना मालिक ने नहीं दिया। रामकरण अपनी कहानी बताने के साथ-साथ अपने मालिक और किस्मत को कोस रहा था। उसने कहा कि 14 से 15 सौ किलोमीटर की दूरी का सफर तय करने के बाद गोरखपुर पहुंचे हैं। जिसे भूलाना बहुत मुश्किल होगा। वहीं घर पर बच्चे पूछेंगे कि पापा क्या लाए तो इसका क्या जवाब दूंगा।

रास्ते में खर्च हो गए पैसे

काम करके लौटे सोनू ने बताया कि अपने परिवार का भविष्य संवारने बडे़ शहर गया था। रास्ते में उसे कई जगह पुलिस ने भी रोका। कई जगह लाठियां भी खाईं। लेकिन इसके बाद भी जैसे तैसे सफर जारी रखा। कुछ पैसे थे जिसे रास्ते में बीच-बीच में साधन मिलने पर खर्च किया।