- 'महफिल-ए-सीरतुन्नबी' दर्स का 9वां दिन - सूद लेना और देना दोनों हराम, हलाल रिज्क कमाएं - मौलाना मकसूद GORAKHPUR: जिंदगी का ऐसा कोई पहलू नहीं है जिसे बेहतर बनाने, अच्छाई को स्वीकार करने के लिए पैगंबर-ए-इस्लाम ने कोई पैगाम न दिया हो। कायनात का जर्रा-जर्रा मोहम्मद साहब को आखिरी नबी मानता है। पैगंबर-ए-इस्लाम की बातें इंसानों को सच की राह दिखाती हैं। यह बातें मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने बुधवार को नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद पर कहीं। वह 12 दिवसीय 'महफिल-ए-सीरतुन्नबी' में दर्स के दौरान लोगों को खिताब कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि इस्लाम में सूद को हराम माना गया है। इस्लाम के मुताबिक सूद एक ऐसी व्यवस्था है, जो अमीर को और अमीर बनाती है और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है। हराम रिज्क से बचें मोमिन उन्होंने कहा कि इस्लाम सूद को किसी भी हाल में एक्सेप्ट नहीं करता है। रिश्वतखोरी वगैरह गुनाह है। अगर आपके पास माल है तो जरूरतमंद लोगों को कर्ज दें। उन्हें वापसी के लिए इतना समय दे कि कर्जदार इंसान उसे आसानी से वापस लौटा सकें। हलाल रिच्क कमाएं, हराम से सख्ती के साथ बचें। उन्होंने 2 दिसंबर को निकलने वाले जुलूस-ए-मोहम्मदी को अदबो एहतराम से निकालने की अपील की है। साथ ही यह भी हिदायत दी है कि वह जुलूस में किसी तरह की आतिशबाजी न करें। दिया वतन से मोहब्बत का पैगाम इस मौके पर मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि इस्लाम का असली मिशन अमन व शांति है। इस्लाम हमें अपने वतन से मोहब्बत का पैगाम देता है। पैगंबर-ए- इस्लाम का फरमान है कि अपने वतन से मोहब्बत करना ईमान की पहचान है। किसी भी मुल्क की तरक्की अमन, भाईचारा व आपसी प्रेम के माहौल में ही हो सकती है। पैगंबर-ए-इस्लाम के बताए राह पर चलकर ही मुल्क, कौम और समाज को खुशहाल बनाया जा सकता है। खुदा का सच्चा फरमाबरदार होने में ही इंसान की भलाई है। अर्श से फर्श तक मनती है खुशियां ईद मिलादुन्नबी की खुशियों में सबको शामिल कीजिए। ईद मिलादुन्नबी पर अर्श से लेकर फर्श तक खुशियां मनाई जाती है। जुलूस-ए-मोहम्मदी के दौरान ऐसा कोई काम न करें, जिससे किसी को भी जर्रा बराबर तकलीफ हो। इस मौके पर शाहनवाज अहमद, अहमद फराज, दरगाह सदर इकरार अहमद, सचिव मंजूर आलम, अब्दुल अजीज, सैफ अली, मो। इब्राहीम, कारी महबूब आलम, शाह आलम, शहादत हुसैन, रमजान, कुतबुद्दीन, मो। अजीम, कैश रजा सहित तमाम लोग मौजूद रहे।