गोरखपुर (ब्यूरो)।नगर निगम के मेयर पद पर होने वाले चुनाव के लिए आरक्षण सूची 5 नवंबर की जारी की गई थी। आरक्षण सूची जारी होने के बाद ही सामान्य सीट होने पर जहां सभी वर्ग के लोग चुनाव लड़ सकने की जीत जाहिर किए तो वहीं ओबीसी और एससी आरक्षित सीट होने पर सामान्य वर्ग के लोग मायूस हो गए। वह अपने वार्ड के आपत्ति दर्ज करा रहे हैैं। वहीं, इससे पूर्व 2 दिसंबर को नगर निगम के 80 वार्ड व 11 नगर पंचायत के आरक्षण सूची की जारी की गई थी। वहीं, नगर विकास अनुभाग की तरफ से जारी किए गए अधिसूचना के बाद से आरक्षण की स्थिति पर आपत्तियां दर्ज कराने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के पास सिटी के वार्ड की आपत्तियां दर्ज कराई जा रही है। वहीं, एडीएम (ई) के दफ्तर में नगर पंचायत अध्यक्ष व सदस्यों के आपत्तियों को दर्ज किया जा रहा है। डीएम कृष्णा करुणेश ने बताया कि अधिसूचना के प्रकाशन की तिथि से सात दिनों के भीतर दर्ज कराना है। उन्होंने बताया कि जितनी भी आपत्तियां आ रही हैैं। उसे नगर आयुक्त के पास भेज दिए जाएंगे। आपत्तियों को जांच कर उसे डिस्पोज किया जाएगा। फिर डीएम आफिस में आएंगे। उसे शासन को भेजा जाएगा।

- 5 दिसंबर को जारी हुआ था मेयर पद आरक्षण के लिए अधिसूचना - 11 दिसंबर है अंतिम दिन

- 2 दिसंबर को जारी हुआ था नगर निगम के 80 वार्ड और 11 नगर पंचायतों के आरक्षण सूची - 8 दिसंबर है अंतिम दिन

1. वार्ड आरक्षण में की गई मनमानी

वार्ड-13 शिवपुर सहबाजगंज के पार्षद अफरोज उर्फ गब्बर ने वार्ड आरक्षण को लेकर आपत्ति दर्ज कराई गई है। डीएम ऑफिस में दी गई आपत्ति के जरिए उन्होंने बताया कि उनके वार्ड के कई हिस्से को दूसरे वार्डों में शामिल कर दिया गया। अनुसूचित जाति की बड़ी आबादी को उनके वार्ड में जोड़ दिया गया, जिसके कारण वार्ड सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हो गई। बताया कि पिछड़ी जाति के सर्वे में मेरा घर ही छोड़ दिया गया। उनके वार्ड में 60 प्रतिशत आबादी पिछड़ी जाति की है, लेकिन सर्वे में मात्र 2898 की आबादी की रिपोर्ट आई। उन्होंने मनमानी का आरोप लगाया है।

2. गठन के बाद आज तक आरक्षित रहा वार्ड

वार्ड-66 नेताजी सुभाष चंद्र बोस नगर के राहुल त्रिपाठी ने डीएम कार्यालय में आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि वार्ड आरक्षण में मनमानी की गई है। बताया कि वर्ष 2006 में वार्ड का गठन हुआ तब से आज तक यह सीट सदैव आरक्षित ही रहीं, जबकि वार्ड में सवर्ण आबादी 70 प्रतिशत है। बताया कि वार्ड के परिसीमन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। रैपिड सर्वे पूरी तरह से फर्जी आंकड़ा नगर निगम कर्मचारियों की ओर से किया गया।