768 बसें हैं गोरखपुर रीजन में

176 बसें हैं गोरखपुर डिपो में

184 बसें हैं राप्तीनगर डिपो में

5000 है डेली पैसेंजर्स की औसत संख्या

-कुछ की खिड़कियों के कांच टूटे हैं तो कुछ के जाम

-बार-बार कंप्लेंट करने के बाद भी नहीं होती है सुनवाई

GORAKHPUR: रामधारी सिंह दिनकर जी की मशहूर कविता है चांद का कुर्ता। कविता में चांद कड़ाके की ठंड के चलते खुले आसमान के सफर में परेशान है। लेकिन आज के दौर में रोडवेज बसों के पैसेंजर्स कुछ ऐसे ही हालात से गुजर रहे हैं। कविता की कुछ पंक्तियां बदल जरूर गई हैं, लेकिन परेशानियां कमोबेश वैसी ही हैं। आलम यह है कि कई बसों की विंडो के शीशे टूटे हुए हैं। जिन बसों में शीशे हैं भी वो ठीक से बंद नहीं होते हैं। ऐसे में पैसेंजर्स को ठिठुरते हुए सफर तय करना पड़ रहा है। इन सारी परेशानियों के बीच पैसेंजर्स का दर्द यह है कि उनकी परेशानी सुनने वाला भी कोई नहीं है।

सर्द हवा से मुश्किल हुआ सफर

ठंड के मौसम में रोडवेज बसों के पैसेंजर्स का क्या हाल है, यह जानने के लिए रिपोर्टर पहुंचा रेलवे स्टेशन बस अड्डे पर। यहां पर कुछ बसें आकर खड़ी हुई थीं। वहीं कुछ बसें जाने के लिए तैयार थीं। रिपोर्टर ने यात्रा पूरी करके आए पैसेंजर्स से उनका अनुभव जानना चाहा। इसपर कुछ पैसेंजर्स ने बताया कि बहुत ही खस्ता हाल है। इतनी कड़ाके की ठंड में भी बसों के शीशे बंद नहीं हो रहे हैं। जिनकी सीटिंग पोजीशन बीच की थी, उनके लिए तो थोड़ी गनीमत रही। लेकिन जिन लोगों को विंडो सीट मिली थी, उनकी तो हालत मत पूछिए।

यह बसें तो बीमार बना देंगी

इन बसों से कुछ ओल्ड एज पैसेंजर्स भी उतरे थे। रिपोर्टर ने जब उनसे बात की तो उन्होंने भी बसों की हालत पर नाराजगी जताई। बस्ती से आ रहे एक पैसेंजर्स ने बताया कि तबियत पहले से ही खराब है। ऐसे में रोडवेज बसों का सफर तो और ज्यादा बीमार बना देगा। किसी-किसी खिड़की में एक ही तरफ कांच लगे हुए हैं। उचित देखभाल नहीं होने से खिड़की बंद भी नहीं होती है। सर्द हवाएं सीधे कान और शरीर पर लगती हैं। इससे परेशानी बढ़ जाती है।

बॉक्स

फॉग से निपटने के इंतजाम भी नहीं

-कई बसों में वाइपर गायब है। कुछ बसों में लगे हुए भी हैं, तो उसके रबर पूरी तरह से घिस चुके हैं।

-इसके चलते कांच को साफ कर पाना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में ओस की बूंद कांच को पूरी तरह से ढंक लेती है।

-ड्राइवर्स को सड़क पर कुछ साफ दिखाई नहीं देता है। सफर के दौरान बार-बार बस रोक कपड़े से कांच को साफ करना पड़ता है।

-कई बसों में बसों में वेदर लाइट भी नहीं लगी हैं। इससे ड्राइवर्स को सामने से आ रहे वाहनों को देख पाने में काफी मुश्किल होती है।

कोट

मैं गोरखपुर डिपो की बस में पीछे बैठा था। सीट की बगल में लगा कांच टूटा था। इसके चलते हवा अंदर आ रही थी और ठंड लग रही थी।

-सूर्या कुमार, सलेमपुर

रोडवेज की बसें भगवान भरोसे ही चल रही है। कांच तो टूटे ही हैं, जाम भी हैं। ऐसे में इन्हें बंद करना भी मुश्किल हो गया है। सीट भी बैठने लायक नहीं होती है।

-तैयब अली, दिल्ली

मैं लखनऊ से आ रहा हूं। बस की खिड़की में सिर्फ एक ही कांच लगा था। दूसरा गायब होने की वजह से सर्द हवा सीधे अंदर आ रही थी।

-निखिल त्रिपाठी, महराजगंज

खिड़की में लगा कांच जाम था। खींचने पर भी नहीं बंद हो रहा था। ठंड इतनी अधिक है और उस पर से बसों की बदहाली मुश्किल और बढ़ा रही है।

-प्रदीप सिंह, महराजगंज

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वर्जन

बसों की वंडो में लगे शीशे चेक किए जाते हैं। यदि शीशे जाम हैं या टूट चुके हैं तो उन्हें दिखवाकर बदलवाया जाएगा।

-केके तिवारी, एआरएम गोरखपुर