गोरखपुर (ब्यूरो)। 300 बेड वाले जिला अस्पताल में टिटनेस पेशेंट्स का ट्रीटमेंट होता है। 10 बेड वाले वार्ड में औसत 3 से 4 टिटनेस पेशेेंट भर्ती हैं। इन पेशेंट्स का सर्जरी के डॉक्टर इलाज करते हैं। इन पेशेंट्स की देखरेख की जिम्मेदारी प्राइवेट वार्ड के हेल्थ कर्मियों की है, लेकिन वार्ड के गेट में ताला बंद कर लापता हो जाते हैं। उन्हें पानी से लेकर दवाएं देने वाला कोई नहीं रहता। जबकि जिम्मेदार भी इन पेशेंट्स की तरफ ध्यान नहीं देते। आलम यह है कि गेट के अंदर ताले में बंद मरीज रास्ते से गुजरने वाले लोगों को देखते रहते हैं।

जानलेवा है टिटनेस

टिटनेस एक संक्रामक रोग हैं। मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका-कोशिकाएं प्रभावित हो जाती हैं। यह जानलेवा होता है। यह रोग मिट्टी में रहने वाले बैक्टीरिया से घावों के संक्रमित होने के कारण होता है। इस बैक्टीरिया को बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम कहा जाता है। यह दीमक के समान मिट्टी में लंबे समय तक रह सकता है। घाव इस बैक्टीरिया से संपर्क में आकर टिटनेस में तब्दील हो जाता है। यह बैक्टीरिया जंग लगी कीलों, धातु के टुकड़ों या कीड़ों के काटने, जलने या त्वचा के फटने से भी शरीर में प्रवेश करता है।

टिटनेस पेशेंट के लिए टीकाकरण जरूरी

- चोट लगने के बाद टिटनेस का इंजेक्शन जरूर लगवाएं।

- व्यस्क चार से छह सप्ताह के अंतराल पर लगवाएं टिटनेस का टीका।

- गर्म व नम वातावरण वाले बाहरी देशों में जाने वाले को बूस्टर का टीका जरूर लगवाना चाहिए।

- धूल या गोबर की खाद के बीच काम करने वाले खेतिहर मजदूर को विशेष ध्यान देना चाहिए।

- प्रसव के दौरान महिलाएं टिटनेस का टीका जरूर लगवाएं।

- कहीं भी चोट लग जाने पर घाव को हाइड्रोजन पैराक्साइड या डेटॉल आदि से धोना चाहिए।

- टिटनेस का इंजेक्शन 24 घंटे के अंदर लगवाएं।

टिटनेस वार्ड में मानसिक विक्षिप्त मरीज भर्ती हैं। वार्ड में इसलिए ताला लगा दिया जाता है कि वह बाहर ना भागें। डॉक्टर्स और स्टाफ नर्स की देखरेख में उनका इलाज होता है। साफ-सफाई पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।

डॉ। राजेंद्र ठाकुर, एसआईसी जिला अस्पताल

ताला नहीं लगाना चाहिए

रिटायर्ड एसआईसी डॉ। दिवाकर प्रसाद ने कहा, नियमत: जिस वार्ड में मरीज भर्ती होते हैं। उसमें ताला नहीं लगना चाहिए। स्टाफ नर्स की ड्यूटी होनी चाहिए। ताकि उनकी देखभाल सही तरीके से की जा सके। यह नियम विरुद्ध है और पेशेंट्स के अधिकारों का हनन है।