- उलेमाओं ने दिया मशवरा, आमतौर पर कैश में दे दी जाती है रकम

- एफडी फ्यूचर में आएगी बेटियों के काम, सरपरस्त तय करें रकम

- दहेज वाले निकाह को बॉयकॉट करने की भी गुजारिश

GORAKHPUR: शहर के उलेमा-ए-किराम ने मुस्लिम समाज के सामने मशवरा पेश किया है कि शौहर अपनी होने वाली बीवी को महर के रूप में अच्छी रकम फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) करके दें। एफडी की रकम भी होने वाली बीवी या सरपरस्त ही तय करें। शौहर महर के रूप में सोना दे तो भी बीवी के लिए मुफीद साबित होगा। अभी तक निकाह के वक्त शौहर नगद धनराशि या चेक के जरिए महर अदा कर रहे हैं। उलेमा-ए-किराम की मानें तो एफडी के रूप में महर मुस्लिम समाज की नई और बढि़या पहल साबित हो सकती है। भविष्य में यह एफडी बेटियों के बहुत काम आ सकती है। उलेमा-ए-किराम ने निकाह पढ़ाने वाले काजियों से दहेज की डिमांड वाले निकाह का बायकॉट करने की गुजारिश की है।

कम से कम दस दिरहम महर

मुफ्ती खुर्शीद अहमद मिस्बाही ने मशवरा पेश करते हुए कहा कि मां-बाप अपनी बेटी का निकाह करने से पहले लड़के के सामने महर के रूप में बेटी के नाम से एफडी का प्रस्ताव रख सकते हैं और रकम भी तय कर सकते हैं। यह एफडी भविष्य में बेटियों के बहुत काम आएगी। इसके अलावा महर के रूप में सोना देना भी फायदेमंद साबित होगा। उलेमा-ए-किराम जुमा की तकरीरों व जलसों के जरिए निकाह, महर, तलाक आदि विषयों पर मुस्लिम समाज को जागरुक करें। कम से कम महर दस दिरहम है (यानी दो तोला साढ़े सात माशा तकरीबन 30.618 ग्राम चांदी)

रुपयों की सूरत में महर मुकर्रर करना हो तो इस बात का जरूर ख्याल रखें कि यह रकम दस दिरहम की कीमत से कम न हों। महर की तीन किस्में हैं महर-ए-मुअज्जल, महर-ए-मुवज्जल व महर-ए-मुतलक।

नाममात्र का महर बंद हो

मुफ्ती-ए-शहर मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी ने मशवरा दिया कि एफडी के तौर पर महर की धनराशि देने से बेटियों को काफी फायदा होगा। इसे मुस्लिम समाज को अपनाना चाहिए। मुस्लिम समाज को नाममात्र के महर के चलन को बंद करना चाहिए। महर को रुपयों में ना रख कर सोने या अचल संपत्ति, एफडी आदि में रखा जाना चाहिए, क्योंकि सोने एवं अचल संपत्ति की कीमत समय के अनुरूप चलती है। नायब काजी मुफ्ती मो। अजहर शम्सी ने कहा कि महर की धनराशि एफडी में देना या सोना देना सराहनीय कदम साबित हो सकता है। इससे बीवी के हक हकूक की हिफाजत होगी। निकाह, महर, तलाक आदि के प्रति मुस्लिम समाज को जागरुक किया जाना वक्त की अहम जरूरत है। उलेमा-ए-किराम इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं अपनी तकरीरों व तहरीरों के जरिए।

औरत की स्थिति में हो जाएगा सुधार

बुलाकीपुर की मुफ्तिया ताबिंदा खानम अमजदी ने बताया कि महर वह रकम है जो किसी लड़की का होने वाला शौहर लड़की को देता है, लेकिन यह रकम लड़की या उसके वली (सरपरस्त) तय किया करते हैं। अगर लड़की या सरपरस्त द्वारा महर की मुनासिब रकम तय की जाए और शौहर द्वारा एफडी के तौर दिए जाने का सिलसिला शुरु हो तो मुस्लिम औरतों की स्थिति में काफी सुधार हो सकता है। रसूलपुर की मुफ्तिया गाजिया खानम ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में निकाह एक कॉन्ट्रैक्ट है। महर निकाह से पहले तय होता है। महर अगर लड़की चाहे तो निकाह के वक्त या बाद में भी ले सकती है। महर बीवी की कीमत और मूल्य नहीं बल्कि शौहर की ओर से बीवी के प्रति उसकी मोहब्बत व सच्चाई का प्रतीक है। महर बीवी का अधिकार है।