- रेलवे हॉस्पिटल की व्यवस्थाओं से खुश कोरोना को मात देकर लौटे चैंपियंस

GORAKHPUR: पिपरौली ब्लॉक के कालाबाग गांव की रहने वाली शकुंतला देवी व उनकी दो बेटियां शिवानी व रिचा कोरोना को मात देकर घर पहुंच चुकी हैं। लेकिन रेलवे हॉस्पिटल के आईसोलेशन वार्ड की बढि़या व्यवस्था और वहां तैनात मेंडिकल स्टाफ के अपनेपन को अभी भी भूली नहीं हैं। इन तीनों कोरोना चैंपियंस ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए जहां डॉक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ की तारीफ की, वहीं व्यवस्थाओं में रह गईं कुछ खामियों को भी उजागर किया।

प्रॉपर टाइमिंग से मिलता था खाना, दवाई

शिवानी (21) बताती हैं कि रेलवे हॉस्पिटल के आईसोलेशन वार्ड में एडमिट रहने के दौरान महसूस ही नहीं हुआ कि घर से दूर हूं। डॉक्टर से लेकर मेडिकल स्टाफ 24 घंटे पूरी तत्परता से सेवा में जुटे रहते थे। मैं बेड नंबर नंबर 100 पर एडमिट थी। वहीं बहन रिचा (13) 98 नंबर बेड पर एडमिट थी। जबकि मां शकुंतला देवी 99 नंबर बेड पर एडमिट थीं। तीनों के बेड के डिस्टेंस एक मीटर की दूरी पर थे। सभी मेडिकल स्टाफ बेहद अच्छे थे। चूंकि मेरी मम्मी डायबिटीज पेशेंट हैं, उन पर सभी स्टाफ ध्यान देते थे। हॉस्पिटल की तरफ से डायबिटीज पेसेंट्स के लिए स्पेश्यली अलग खाना आता था। डॉक्टर बीच में गैप लेकर आते थे। दवा के रूप में हमें फीवर के लिए रेगा मॉल दिया जाता था। कुल चार मेडिसिन दी जाती थीं और इंफेक्शन और वोमिटिंग के लिए भी दवा दी जाती थी। मम्मी के लिए भी सेम मेडिसिन देते थे। सुबह में चाय बिस्कुट, जलेबी, पेटीज, लंच में रोटी, सब्जी चावल दाल देते थे। टी टाइम में चाय, फ्रूटी मिलता था। डिनर में रोटी-सब्जी, चावल दाल मिलता था।

कॉमन बॉक्स से खुद निकालनी थी दवा

शिवानी ने ये भी बताया कि वहां जो कमी महसूस की वह यह कि दवा हैंड टू हैंड देते थे। सेपेरेट नहीं देते थे। हर मरीज खुद ही एक कॉमन बॉक्स से दवा निकालता था। डिस्चार्ज होने से पहले कोरोना का कोई टेस्ट नहीं हुआ।

पति को खो चुकी हैं शकुंतला

शकुंतला देवी के पति राजदीपक की मुंबई में बीमारी के कारण मौत हो गई थी। शकुंतला पति की मौत के गम को भुला भी नहीं सकी थीं कि वह खुद ही कोरोना की चपेट में आ गईं। उनके देवर हरिओम बताते हैं कि भाई के मरने के बाद खुद के साथ पूरी फैमिली का कोरोना टेस्ट मुंबई में ही करवाया था। उसमें रिपोर्ट निगेटिव आई। उसके बाद प्राइवेट गाड़ी से गोरखपुर के लिए निकल गांव पहुंचे। उसके बाद होम क्वारंटीन किए गए। छह जून को गांव पहुंच गए थे। गांव पहुंचने के बाद खुद पूरी फैमिली के 12 सदस्यों का कोरोना टेस्ट सैंपल के लिए दिया। सैंपल 10 जून को गया लेकिन उसकी रिपोर्ट की कॉपी नहीं दी गई। सीएचसी से कोरोना जांच के लिए सैंपल भेजा गया था। 17 जून को ग्राम प्रधान शिव प्रकाश शाही दलबल के साथ आए। उल्टी-सीधी बातें करते हुए कहा कि आपके परिवार से तीन लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। शकुंतला देवी, रिचा व शिवानी को ग्राम प्रधान के साथ आई पुलिस व स्वास्थ्य विभाग की टीम रेलवे के आईसोलेशन वार्ड लेती गई। लेकिन हैरान करने वाली बात है कि 22 जून को डिस्चार्ज से पहले कोरोना की कोई जांच भी नहीं की गई।

एसिम्टोमैटिक इसलिए जल्दी हुए डिस्चार्ज

वहीं सिटी के बेतियाहाता के रहने वाले अमित कुमार को भी कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर रेलवे हॉस्पिटल के आईसोलेशन वार्ड में एडमिट किया गया था। जहां उन्हें बेहतर इलाज के साथ-साथ देखभाल मिली। उन्हें 12 जून को एडमिट किया गया था। उन्हें काजू-बादाम के साथ 22 जून को रेलवे के आईसोलेशन वार्ड से डिस्चार्ज किया गया। इसी प्रकार उरवा बाजार के सुमित को 18 जून को एडमिट किया गया था और 23 जून को डिस्चार्ज किया गया। बेलघाट के रहने वाले ऋषिकांत जायसवाल को 18 जून को रेलवे के आईसोलेशन वार्ड में एडमिट किया गया। 23 जून को डिस्चार्ज किया गया। इलाज करने वाले डॉक्टर्स की मानें तो ये सभी कोरोना के एसिम्टोमैटिक मरीज थे। इसलिए इन्हें 6 से 7 दिन में ही डिस्चार्ज कर दिया गया।

रेलवे आईसोलेशन वार्ड एक नजर

- अब तक 143 मरीज एडमिट हो चुके हैं।

- 23 मई से रेलवे हॉस्पिटल में कोरोना मरीजों को एडमिट किया जा रहा है।

- 143 मरीजों में 92 मरीज स्वस्थ होकर घर जा चुके हैं।

- सीएमओ की एक्टिव टीम 20 जून से रेलवे हॉस्पिटल में कर रही काम।

रेलवे हॉस्पिटल में डॉक्टर्स की टीम

- कुल 6 डॉक्टर की टीम

- कुल 6 स्टाफ नर्स

- कुल 6 सपोर्ट मेडिकल स्टाफ

नोट - 14 दिन के लिए डॉक्टर की टीम की ड्यूटी लगाई जाती है। फिर बाद में चेंज कर दी जाती है।

वर्जन

रेलवे हॉस्पिटल के आईसोलेशन वार्ड में एडमिट मरीजों का प्रॉपर इलाज हो रहा है। उनकी देखभाल से लगाए खानपान का पूरा ख्याल रखा जाता है। किसी को भी कोई दिक्कत नहीं होने दी जाती है।

डॉ। श्रीकांत तिवारी, सीएमओ