-मुकद्दस रमजान

GORAKHPUR: रोजा केवल भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है। शरीर के दूसरे हिस्सों का भी रोजा है। आंख का रोजा इस तरह रखना चाहिए कि आंखें जब उठे तो सिर्फ और सिर्फ जायज चीज को ही देखने की तरफ उठे। कानों का रोजा यह है कि सिर्फ जायज बातें सुने। जबान का रोजा यह है कि जबान सिर्फ और सिर्फ नेक व जायज बातों के लिए ही हरकत में आए। यह बातें हाफिज आसिफ रजा ने कहीं। उन्होंने बताया कि अल्लाह का जिक्र कीजिए। नबी और आले नबी पर दरूदो-सलाम भेजिए। नात शरीफ पढि़ए। सुन्नतों का बयान कीजिए। हाथों का रोजा यह है कि जब भी हाथ उठे तो सिर्फ नेक कामों के लिए उठे। हाथों से किसी अंधे की मदद कीजिए। यतीमों पर शफ़कत का हाथ फेरिए। गरीब की मदद कीजिए। पावं का रोजा यह है कि पांव उठे तो नेक कामों के लिए। असल रोजा तो वह है जिससे अल्लाह व नबी-ए-पाक राजी हो जाएं।

रोजा पिछली उम्मतों में भी था : हाफिज सद्दाम

हाफिज सद्दाम हुसैन ने बताया कि दीन-ए-इस्लाम में अक्सर आमाल किसी ना किसी रूह परवर वाकया की याद ताजा करने के लिए मुकर्रर किए गए हैं। रमजान में से कुछ दिन नबी-ए-पाक हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने गारे हिरा में गुजारे थे। इन दिनों में आप दिन को खाने से परहेज करते थे और रात को इबादत में मशगूल रहते थे। तो अल्लाह ने उन दिनों की याद ताजा करने के लिए रोजे फर्ज किए ताकि उसके नबी की सुन्नत कायम रहे। रोजा पिछली उम्मतों में भी था। मगर उसकी सूरत हमारे रोजों से जुदा थी। विभिन्न रिवायतों से पता चलता है कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम हर माह 13, 14, 15 को रोजा रखते थे। हजरत नूह अलैहिस्सलाम हमेशा रोजादार रहते थे। हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम एक दिन छोड़कर एक रोजा रखते थे। हजरत ईसा अलैहिस्सलाम एक दिन रोजा रखते और दो दिन न रखते थे।

रोजा सिखाता है शिष्टाचार : हाफिज महमूद

हाफिज महमूद रजा ने बताया कि रमजान के मुकद्दस माह में रोजा रखने से नसों में खून का दबाव बैलेंस रहता है। रोजा शिष्टाचार सिखाता है। रोजा के दौरान ब्लड प्रेशर सामान्य रहने से भलाई, सुव्यवस्था, आज्ञापालन, धैर्य और नि:स्वार्थता का अभ्यास भी होता है। रमजान के पाक माह में रोजा रखने से पाचन क्रिया और अमाशय को आराम मिलता है। सालों-साल लगातार काम कारने के कष्ट से शरीर की इन मशीनरियों को कुछ दिनों तक आराम मिलता है। इस दौरान आमाशय शरीर के भीतर फालतू चीजों को गला देता है। यह लंबे समय तक रोगों से बचे रहने का एक कारगर नुस्खा भी है।

अल्लाह की इबादत में बीता आठवां रोजा

बुधवार को मुकद्दस रमजान का आठवां रोजा अल्लाह की हम्द व सना में बीता। मस्जिदों में सीमित तादाद में लोग पांचों वक्त की फर्ज नमाज व तरावीह की नमाज अदा कर रहे हैं। नमाजियों के सज्दों से घर आबाद है। घरों में इबादतों का दौर जारी है। कुरआन शरीफ की तिलावत हो रही है। कसरत से कलमा पढ़ा जा रहा है। नबी-ए-पाक हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की बारगाह में दरूदो सलाम का नजराना पेश किया जा रहा है। अल्लाह के बंदे दिन में रोजा रख कर व रात में तरावीह की नमाज पढ़कर अल्लाह की नेमतों का शुक्र अदा कर रहे हैं। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में शाम तक चहल पहल रह रही है। कोरोना वॉयरस से निजात की दुआ घर व मस्जिद में मांगी जा रही है।