नाली में बह गई निगम की मच्छरमुक्ति योजना

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नगर निगम की कारस्तानी, बोल मेरी मछली कितना पानी

- मच्छरों से मुक्ति के लिए नगर निगम ने नालों में डाली थी गंबूजिया और गप्पी मछली

- बहते पानी के साथ मछलियां भी बहीं, 5.50 लाख डूबे लेकिन मच्छर हैं आबाद

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saurabh.upadhyay@inext.co.in

GORAKHPUR:

नगर निगम जो भी करता है खुद ही सवालों के कठघरे में खड़ा हो जाता है। अब ताजा वाकया शहर को मच्छरों से मुक्ति दिलाने के लिए गंबूजिया और गप्पू मछलियों के इस्तेमाल का है। करीब साल भर पहले नगर निगम ने बड़े जोर-शोर से अभियान चलाकर शहर को मच्छरों से मुक्ति दिलाने का अभियान चलाया था। इसके तहत नगर निगम ने 5.50 लाख रुपए खर्च करके शहर के पोखरों, नालों और नालियों में गंबूजिया और गप्पी मछलियां डाली थीं।

पोखरों तक तो बात समझ में आती है कि यहां रुके हुए पानी में मछली मच्छरों के लार्वा को खाकर उसे पनपने नहीं देगी। लेकिन शहर के चौड़े नालों और नालियों में भला मछलियां कैसे रुकेंगी? और हुआ भी यही। मछलियां बहते पानी के साथ बह गई और शहर में मच्छर आज भी मौजूद हैं।

नालों में डाली ही क्यों मछली

यह तो मानी हुई बात है अगर बहते हुए पानी में मछली डाली जाएगी तो भला वह कितने दिन रुकेगी? ऐसे में इस पूरे मामले में नगर निगम की लापरवाही साफ दिखाई देती है। साथ ही इससे कई सवाल भी पैदा होते हैं।

1- क्या नगर निगम ने इस बारे में उचित विशेषज्ञों से बातचीत की थी?

2- आखिर नगर निगम ने इस बारे में क्यों नहीं सोचा कि बहते पानी में मछली कितने दिन तक रुकी रहेगी?

3- जनता की गाढ़ी कमाई के 5.50 लाख रुपए पानी में बह गए, लेकिन मच्छरों की समस्या जस की तस है, इसका जिम्मेदार कौन?

और फैल रही हैं बीमारियां

शहर में शाम में मच्छरों का इतना अधिक आतंक है कि बाहर खड़ा होना मुश्किल हो गया है। मच्छरों के काटने के कारण लोगों को कई तरह की बीमारियां होने लगी है।

-पिछले दो माह में थवईपुल के पास दो मलेरिया के मरीज मिल चुके हैं।

-चौरहिया गोला से नखास जाने वाले रास्ते पर गंदगी के कारण दो संक्रमण के भी मरीज जिला अस्पताल पहुंच चुके हैं।

क्या है गंबूजिया मछली

इस मछली की एक और खासियत है कि यह अंडे नहीं देती है, बल्कि बच्चे ही देती है और यह बच्चे 36 घंटे में तैयार हो जाते हैं और लार्वा खाने लगते हैं। यह मछली अपने भार के कुल 40 प्रतिशत लार्वा 12 घंटे में खा सकती है। भारत में इसके द्वारा मच्छरों के मारने का पहला प्रयोग चेन्नई में 2014 में हुआ था।

मच्छरों से शहर में

- मलेरिया

- डेंगू

- संक्रमण

- चिकुनगुनिया

- हैजा

- डायरिया

- पीलिया

इन नालों में डाली गई थी मछली

- जिला संक्रमण अस्पताल के सामने

- रेलवे स्टेशन

- रेलवे स्टेशन सिंचाई विभाग के सामने

- रेलवे आरक्षण केंद्र के सामने

- कूड़ाघाट महादेव झारखंडी मंदिर नाला

- रुस्तमपुर आजाद चौक नाला

- एचएन सिंह चौराहा

- चारगांवा ब्लाक के सामने नाला

- मेडिकल कालेज के सामने

ये पोखरे

- डिभिया

- जटाश्ाकर

- सूजरकुंड

- तिवारीपुर

- बहरामपुर

- नौसड़

- बशारतपुर

- दिव्यनगर

- खजांची चौराहा

- राप्तीनगर

- मानबेला

कॉलोनियां

- धर्मशाला बाजार

- जटाशंकर

- बेतियाहाता

- गोकुल अपार्टमेंट

- मोहद्दीपुर

- कूड़ाघाट

- तिवारीपुर

- सूरजकुंड

- तिवारीपुर

- पैड़लेगंज

- बिलंदपुर

- घोष कंपनी

- गीता प्रेस

नगर निगम अगर मच्छरों को मारने के लिए गंभीरता से कोई कार्य करता ही नहीं है। इसलिए तो शहर में आज तक मच्छर समाप्त नहीं हो पाएं हैं। गंबूजिया मछली अगर छोड़े थे तो उसकी देख भाल भी करते तो शहर में कुछ तो मच्छर कम जरूर होते।

दीपक मौर्या, सर्विसमैन

नगर निगम लाखों रुपए खर्च करके मछली तो नालों में छोड़ा है, लेकिन नालों से मछलियां ही गायब हो गई है। पोखरे की मछलियां मर गई है और नगर निगम फिर से फॉगिंग के धुएं से मच्छर मारने का कार्य शुरू कर दिया है।

वीरेंद्र गौड़, सर्विसमैन

वर्जन

और साहब ने झाड़ लिया पल्ला

गंबूजिया मछली नाले, नालियां और पोखरे में छोड़ी गई थी। रखरखाव के कारण मछलियां मर गई है। इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग से स्पष्टीकरण की मांग की गई है।

रबीस चंद, प्रभारी नगर आयुक्त व मुख्य कर निर्धारण अधिकारी