- तीसरे अशरे की है बहुत अहमियत, पांच रातों में मिलेगी शब-ए-कद्र

- इसमें मिलने वाला सवाब, हजार महीने की इबादत से अफजल

GORAKHPUR: 16वां रोजा मुकम्मल हो गया। मुकद्दस रमजान की रौनक बरकरार है। रमजान का पुरकैफ समां चारों ओर है। सहरी व इफ्तार के वक्त नूर की बारिश हो रही है। घरों में इबादत और तिलावत जारी है। गुरुवार को रोजेदारों ने जमकर इबादत की। कोरोना वबा से पूरे मुल्क की हिफाजत की दुआ मांगी। नबी-ए-पाक हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की बारगाह में दरूदो सलाम का नजराना पेश किया। दूसरा अशरा चल रहा है। वहीं आने वाला रमजान का तीसरा अशरा जोकि जहन्नम से आजादी का है, वह बहुत अहम है। आखिर दस दिन की पांच रात यानी 21, 23, 25, 27 व 29 रमजान की रात में से एक शबे कद्र की रात है। जिसमें इबादत का सवाब हजार महीनों की इबादत के सवाब से अफजल है। शबे कद्र में ही कुरआन-ए-पाक नाजिल हुआ।

जिंदगी को सही राह पर लाने का पैगाम

आखिरी दस दिन का एतिकाफ करना नबी-ए-पाक हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की सुन्नत है। नूरी जामा मस्जिद अहमदनगर चक्शा हुसैन में हाफिज जुनैद अख्तर ने तरावीह नमाज के दौरान एक कुरआन-ए-पाक मुकम्मल किया। मौलाना नूरुद्दीन ने बताया कि रूह को पाक करके अल्लाह के करीब जाने का मौका देने वाला रमजान का मुकद्दस महीना हर इंसान को अपनी जिंदगी सही राह पर लाने का पैगाम देता है। भूख-प्यास की तड़प के बीच जबान से रूह तक पहुंचने वाली अल्लाह की इबादत हर मोमिन को उसका खास बना देती है। खुद को हर बुराई से बचाकर अल्लाह के नजदीक ले जाने की यह सख्त कवायद हर मुसलमान के लिये खुद को पाक-साफ करने का सुनहरा मौका होती है।

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महफिल में बयान हुई जंग-ए-बद्र की दास्तान

तंजीम कारवाने अहले सुन्नत की ओर से गुरुवार को ऑनलाइन महफिल सजी। जंग-ए-बद्र की दास्तान बयान की गई। कुरआन-ए-पाक की तिलावत से महफिल का आगाज हुआ। नात-ए-पाक पेश हुई। मुफ्ती मो। अजहर शम्सी (नायब काजी) ने कहा कि 17 रमजान सन 2 हिजरी मुताबिक 17 मार्च 624 ईसवी को जंग-ए-बद्र हक और बातिल के बीच हुई। जिसमें 313 सहाबा-ए-किराम की मदद के लिए फरिश्ते जमीन पर उतरे। जंग-ए-बद्र में दीन-ए-इस्लाम की फतह ने इस्लामी हुकूमत को अरब की एक अजीम कुव्वत बना दिया। इस्लामी इतिहास की सबसे पहली जंग मुसलमानों ने खुद के बचाव (सेल्फ डिफेंस) में लड़ी। जंग-ए-बद्र में मुसलमानों की तादाद 313 थीं। वहीं बातिल कुव्वतों का लश्कर मुसलमानों से तीन गुना से ज्यादा था। इस जंग में कुल 14 सहाबा-ए-किराम (पैगंबर-ए-आजम के साथी) शहीद हुए। इसके मुकाबले में कुफ्फार के 70 आदमी मारे गए। जिनमें से 36 हजरत अली रदियल्लाहु अन्हु के हाथों जहन्नम पहुंचे।

सिर्फ 70 ऊंट और दो घोड़े

कारी मो। अनस रजवी ने कहा कि जंग-ए-बद्र में मुसलमानों की तादाद कुल 313 थी। किसी के पास लड़ने के लिए पूरे हथियार भी न थे। पूरे लश्कर के पास सिर्फ 70 ऊंट और दो घोड़े थे। जिन पर सहाबा बारी-बारी सवारी करते थे। मुसलमानों का हौसला बुलंद था। अल्लाह के फजल से अजीम कामयाबी मिली। जंग-ए-बद्र में मुसलमान कुफ्फार के मुकाबले में एक तिहाई से भी कम थे और कुफ्फार के पास असलहा भी मुसलमानों से ज्यादा था। इसके बावजूद भी नुसरते इलाही की बदौलत कामयाबी ने मुसलमानों के कदम चूमे। मो। फहीम रजा ने कहा कि कुरआन शरीफ में है कि 'और यकीनन अल्लाह ने तुम लोगों की मदद फरमायीं बद्र में, जबकि तुम लोग कमजोर और बे सरोसामां थे पस तुम लोग अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम शुक्रगुजार हो जाओ'। अंत में सलातो सलाम पढ़कर कोरोना संक्रमण से निजात की दुआ मांगी गई।