- श्रावस मास शुरू, पहला सोमवार आज, मंदिरों में उमड़ेगी भक्तों की भीड़, - श्रावण मास में श्रद्धालु बाबा का करते हैं जलाभिषेक

GORAKHPUR : आयुष्मान संयोग में शुरू हुए श्रावण माह का श्रीगणेश रविवार को हो गया। शहर के प्राचीन महादेव झारखंडी मंदिर, गोरखनाथ मंदिर, मुक्तेश्वर शिव मंदिर, तिवारीपुर स्थित शिवाला, मानसरोवर शिव मंदिर अंधियारीबाग, शिव मंदिर मेडिकल रोड में श्रद्धालु भोले की भक्ति करने पहुंचे। पुष्प अर्पित कर भगवान शिव का अभिषेक किया। 26 जुलाई को श्रावण मास के पहले सोमवार को शिव मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ेगा। सिटी के पुराने मंदिरों की बात करें तो सिटी के कूड़ाघाट एरिया में स्थित महादेव झारखंडी शिव मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। श्रावण मास में यहां पूर्वाचल के अलग-अलग डिस्ट्रिक्ट से लाखों की संख्या में शिवभक्त जलाभिषेक करने पहुंचते हैं। सावन के सोमवार को यहां पूजन-अर्चन के बाद श्रद्धालु मेले का भी लुत्फ उठाते हैं। इस मंदिर की कहानी बहुत हैरान करने वाली है।

झारखंडी महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी शंभू गिरी गोस्वामी ने बताया, पहले यहां पर चारों तरफ जंगल था। लकड़हारे यहां से लकड़ी काटकर ले जाते थे और अपना जीवकोपार्जन करते थे। पुराने लोग बताते हैं कि 1928 में एक दिन एक लकड़हारा यहां पर पेड़ काट रहा था, तभी उसकी कुल्हाड़ी एक पत्थर से टकराई, जिससे खून की धारा फूट पड़ी। इसके बाद वह लकड़हारा जितनी बार उस शिवलिंग को ऊपर लाने की कोशिश करता वो उतना ही नीचे धंसती जाती। लकड़हारे ने भाग कर यह घटना अन्य लोगों को बताई। इसी बीच वहां के जमींदार गब्बू दास को रात में भगवान भोले का सपना आया कि झारखंडी में भोले प्रकट हुए हैं। इसके बाद जमींदार और स्थानीय लोगों ने वहां पहुंचकर शिवलिंग को जमीन से ऊपर करने की कोशिश करने लगे, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हुए, तब शिवलिंग पर दूध का अभिषेक किया जाने लगा और वहां पर पूजा-पाठ शुरू हो गया। इस शिवलिंग पर आज भी कुल्हाड़ी के निशान हैं। मुख्य पुजारी के मुताबिक जंगल होने के कारण ये स्वयंभू (भगवान शिव किसी कारणवश स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट होते हैं.) शिवलिंग हमेशा पत्तों से ढका रहता था। इसलिए मंदिर का नाम महादेव झारखंडी पड़ा।

पीपल के पेड़ पर है शेषनाग की आकृति

महादेव झारखंडी मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष शिवपूजन तिवारी ने बताया कि शिवलिंग के बगल में ही एक पीपल का पेड़ हैं। ये पेड़ पांच पौधों को मिलाकर एक बना है। इस पीपल की जड़ के पास बनी शेषनाग की आकृति लोगों की आस्था का केंद्र है।

असफल रहा शिवलिंग के ऊपर छत डालते का प्रयास

शिवपूजन तिवारी ने बताया, झारखंडी महादेव मंदिर में शिवलिंग खुले आसमान में है। कई बार शिवलिंग के ऊपर छत डालने की कोशिश की गई। लेकिन किसी न किसी कारण से वह पूरी नहीं हुई। उसके बाद शिवलिंग को खुले में ही छोड़ दिया गया है और उसके ऊपर पीपल के पेड़ की छांव ही रहती है।

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शिव मंदिरों में तैयारियां पूरी, कोविड प्रोटोकॉल का होगा पालन फोटो लगाएं

श्रावण मास के पहले सोमवार को शिवालयों में बड़ी संख्या में शिवभक्त पहुंचेंगे। इसलिए विभिन्न मंदिरों के पुजारी ने अपनी तरफ से तैयारियां पूरी कर ली हैं। भक्तों को कोविड प्रोटोकॉल के तहत दर्शन पूजन कराया जाएगा। बिना मॉस्क मंदिर में प्रवेश नहीं मिलेगा। मंदिर परिसर के अंदर लाइन में दो गज की दूरी रखनी होगी और हाथों को सेनेटाइज करना होगा।

देवों के अनुरोध पर शिव ने किया विषपान

पंडित राकेश पांडेय के अनुसार सतयुग में देव-दानवों के मध्य अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन हो रहा था। अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष निकला। उसकी भयंकर लपट न सह सकने के कारण सभी देव गण ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा जी ने अपने तपोबल से कहा, अब तो ब्रह्मांड को केवल शिव जी ही बचा सकते हैं। सभी देवगणों की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी के अनुरोध पर विष की भयानकता से जगत की रक्षा के लिए विष को पी गए और इस प्रकार सृष्टि के विनाश से बच गई। उसी विष को उन्होंने अपने कंठ में अवरूद्ध कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। शिव का एक अर्थ जल भी होता है और यही जल प्राण भी है। शिवलिंग पर जलार्पण का अर्थ है प्राण तत्व का विसर्जन परम ब्रह्म में समर्पण कर देना। यही श्रावणी जलाभिषेक का संदेश है।

वर्जन फोटो लगाएं

महादेव झारखंडी स्थल शिव मंदिर के पुरारी शंभू गिरी गोस्वामी ने बताया, भीड़ को देखते हुए मंदिर परिसर में बैरिकेडिंग कराई गई हैं। साथ ही पुलिस भी तैनात रहेगी। मंदिर परिसर में जलाभिषेक के लिए चार-चार श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश मिलेगा। उन्होंने श्रद्धालुओं से मास्क लगाने और कोविड गाइडलाइन का पालन करने की अपील की है। मंदिर परिसर में सेनेटाइजर मशीन से लगातार सेनेटाइजेशन कराया जा रहा है।