अब मिïट्टी में नहीं होते गेम

स्पोट्र्समैन पूरा दिन मिïट्टी में ही रहता है। मिïट्टी में खेलता है और मिïट्टी में ही बैठता है। यही कारण था कि किसी स्पोट्र्समैन का प्रदर्शन जैसा उसके सिटी में रहता था, वैसा ही नेशनल और इंटरनेशनल गेम में। क्योंकि मिïट्टी हर जगह की एक होती है। मगर टाइम के साथ गेम खेलने का तरीका बदल गया। अब गेम मिïट्टी में नहीं बल्कि मैट, उडन और एस्ट्रोटर्फ में खेले जाते हैं। जिससे सिटी में मेडल पर मेडल जीतने वाला खिलाड़ी नेशनल टूर्नामेंट में जाकर अपने से कमजोर खिलाड़ी के सामने भी हार जाता है।

मिïट्टी में प्रैक्टिस और मैट में गेम

सिटी में टैलेंट की कमी नहीं है। मगर गेम में आए बदलाव से प्लेयर का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप नहीं होता है। प्रैक्टिस से ही मैच जीता जाता है, मगर प्रैक्टिस और गेम के ग्राउंड में फर्क आने से खिलाड़ी परेशान हैं। वह परडे प्रैक्टिस मिïट्टी में करते हैं मगर मैच उन्हें मैट पर खेलना पड़ता है। इससे उसका प्रदर्शन अचानक गिर जाता है।

खिलाड़ी सभी अच्छे होते हैं, मगर अचानक मिïट्टी और मैट में बदलाव आने से उसका प्रदर्शन कुछ देर के लिए थम जाता है। यही कुछ सेकेंड उसकी जीत और हार का फैसला कर देते हैं। नेशनल तथा इंटरनेशनल गेम की भांति प्रैक्टिस के लिए भी वही सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए।

सुशील यादव, कोच, कबड्डी

हैंडबाल न सिर्फ इनडोर गेम है बल्कि उडन पर खेला जाता है। जबकि गोरखपुर में यह गेम आउटडोर और मिïट्टी पर खेला जाता है। ऐसे में अच्छी परफॉर्मेंस करने वाला खिलाड़ी भी जब वहां खेलने जाता है तो उसका प्रदर्शन डाउन हो जाता है।

नफीस अहमद, कोच हैैंडबाल

ग्राउंड चेंज होने से काफी फर्क पड़ता है। मिïट्टी में प्रैक्टिस कर नेशनल या इंटरनेशनल गेम में पहुंचा प्लेयर मैट पर खेलने में खुद को असहज महसूस करता है। इससे उसके ओरिजनल गेम पर इफेक्ट पड़ता है। जिसका फायदा अपोजिट टीम उठा ले जाती है। गोरखपुर में अधिकांश गेम मिïट्टी में ही खेले जाते हैं।

अश्विनी कुमार सिंह, रीजनल स्पोट्र्स अफसर

अब नहीं होते ये गेम मिïट्टी में

हॉकी - एस्ट्रोटर्फ

वॉलीबाल - उडन

कबड्डी - मैट

हैंडबाल - उडन

रेसलिंग - मैट

एथलेटिक्स - सिंथेटिक ट्रैक

जूडो - मैट

जिम्नास्ट - मैट