गोरखपुर (ब्यूरो)। आज पंडित नेहरू की जयंती है। ऐसे में उनका स्मरण और ऐसे लोगों की बात जरूरी है, जो चाचा नेहरू से प्रेरित होकर शिक्षा की अलग को जला रहे हैं। बच्चों में आज के चाचा नेहरू भी बहुत लोकप्रिय हैं। चाहे जेलर की पाठशाला की बात हो या फिर कम्पोजिट उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सिक्टौर (खोराबार) अथवा रुस्तमपुर के रत्नेश तिवारी। ज्ञान के दान के सभी आगे हैं। समय और काल कभी का भी हो, पर ज्ञान की अलख जगाने वाले 'चाचा सर्वदा मान्य रहेंगे।

जेलर की पाठशाला में रखी जा रही समृद्ध बचपन की नींव

- महिला बंदियों के बच्चों को पढ़ाते हैं जेलर, देते किताब-कॉपी

मंडलीय कारागार में महिला बंदियों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी जेलर उठा रहे हैं। बच्चों के लिए किताब-कॉपी उपलब्ध कराकर जेलर रोजाना उन्हें पढ़ाते हैं। जेलर का कहना है कि महिला बंदियों के बच्चों के स्कूल जाने की हसरत पूरी नहीं हो पाती। इसलिए जेल में ही उनकी पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम किया गया है।

विभिन्न मामलों में बंद महिला बंदियों के साथ उनके बच्चे रहते हैं। जेल की महिला बंदियों संग फिलहाल 6 बच्चे हैं। जेल में बच्चों के डेवलपमेंट के लिए खेलकूद की व्यवस्था है। जेलर शुक्ला अपनी ड्यूटी से एक घंटा समय बचाकर वह खुद बच्चों को पढ़ाने जाते हैं।

प्ले-वे की कमी हो रही दूर, बाहर निकलकर जा सकेंगे स्कूल

महिला बंदियों के बच्चों के साथ रहने की वजह से उनकी पढ़ाई पर असर पड़ता है। सुरक्षा के लिहाज से कई महिला बंदी अपने बच्चों को किसी रिश्तेदार के पास नहीं छोड़ती हैं। कभी-कभी पूरी फैमिली के जेल में होने के कारण बच्चों की परवरिश का संकट खड़ा हो जाता है। ज्यादातर बच्चे काफी छोटे हैं। इसलिए जेलर प्लेवे और क्लास वन की पढ़ाई कराते हैं ताकि मां की जमानत होने पर जब बच्चे निकलें तो उनको स्कूल जाने में कोई प्रॉब्लम न आए।

मां के साथ रह रहे बच्चों के लिए जेल में व्यवस्था की गई है। मैं खुद एक घंटे का समय निकालकर बच्चों को पढ़ाने जाता हूं। बच्चे तेजी से सीखते हैं। उनको इतनी जानकारी दी जा रही है कि वह आराम से स्कूल जा सकें।

प्रेम सागर शुक्ला, जेलर

तैयारी खोल रही नवोदय की राह, बाल संसद से लेकर न्यूज पेपर तक सबकुछ है यहां

- कम्पोजिट उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सिक्टौर खोराबार में कराई जाती है नवोदय विद्यालय की तैयारी

गोरखपुर। प्राथमिक विद्यालय का नाम आते ही सरकारी स्कूलों की खानापूर्ति भरी तस्वीर जेहन में आने लगती है, लेकिन इन्हीं सरकारी स्कूलों में कुछ ऐसे स्कूल हैं, जो एक नजीर बना रहे हैं। नजीर बनाने वालों में से एक है कम्पोजिट उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सिक्टौर (खोराबार), जहां बच्चों को नवोदय विद्यालय की तैयारी के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की एक्टिविटी कराई जाती है। यहां से सपना श्रीवास्तव का सेलेक्शन नवोदय विद्यालय के लिए हो चुका है।

कम्पोजिट उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सिक्टौर की हेडमास्टर डॉ। शालिनी, टीचर मंजू, अमृता, प्रतिभा, श्वेता और श्रद्धा मिलकर 20 बच्चों से अधिक बच्चों को नवोदय विद्यालय की तैयारियां कराती हैं। टीचर रेणु ने बताया, पिछले साल से बच्चों की तैयारी कराई जा रही है., जिसमें एक का सेलेक्शन नवोदय विद्यालय में हुआ है। विद्यार्थी कृष्णा, रिक्की, सोनालिका और वैष्णवी बताती हैं कि हम लोगों को रिजनिंग, मैथ और लैंग्वेज की तैयारी कराई जाती है। एक्टिविटी में भी टीचर्स बहुत सपोर्ट करते हैं। टीचर्स की मानें तो कम्पोजिट स्कूल सिक्टौर में बाल संसद भी लगती है, जिसमें बच्चे एक विषय पर चर्चा करते हैं। साथ ही बच्चे बाल दैनिक अखबार भी निकालते हैं। अखबार में स्कूल की डेली एक्टिविटी को बच्चे अपने हाथ से लिखते हैं। बच्चे पत्रकार भी बनते हैं और संपादक भी। कचहरी लगने पर बच्चे जज, वकील और गवाह तक बनते हैं। बच्चों के विकास के लिए समय-समय पर हेल्थ चेकअप, सेमिनार, स्पोर्ट गेम और समर कैंप भी होते हैं।

स्कूल में अभी 20 से अधिक बच्चों की नवोदय विद्यालय के लिए तैयारी कराई जा रही है। इस स्कूल से बच्चे निकलकर आज अच्छे-अच्छे सरकारी या प्राइवेट पदों पर हैं। स्कूल के सब्जेक्ट एक्सपर्ट बच्चों को तैयारी में लगाया गया है। उम्मीद है अधिकांश का रिजल्ट अच्छा होगा।

डॉ। शालिनी, कांपोजिट स्कूल सिक्टौर

बच्चों के लिए शिक्षा का ज्ञान जरूरी: रत्नेश

रुस्तमपुर निवासी रत्नेश तिवारी पिछले 5 साल से सिटी के स्लम एरिया सूर्य विहार, मोती जेल और हनुमान गढ़ी में फ्री में शिक्षा दे रहे हैं। रत्नेश का मानना है कि देश की सबसे बड़ी समस्या गरीबी है और इसको दूर करने का रास्ता सिर्फ और सिर्फ शिक्षा है। शिक्षा ना सिर्फ पैसे कमाने का जरिया है। बल्कि शिक्षा से रहने, खाने और जीवन जीने का सलीका आता है। इसलिए शिक्षा दान सबसे बड़ा दान है और एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर होते हुए मैंने फ्री एजुकेशन का रास्ता चुना। प्ले से लेकर कक्षा 6 तक के बच्चों को पढ़ाने से उनकी मौलिकता से एक अलग संतोष मिलता है। जबकि कक्षा 7 से 12 तक के बच्चों को मैथ और साइंस पढ़ाने पर नवाचार भी देखने को मिलते हैं।

ऐसे हुई चिल्ड्रेंस डे की शुरुआत

जानकारों की मानें तो 20 नवंबर, 1954 को बाल दिवस मनाने का ऐलान किया गया था और पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन से पहले 20 नवंबर को ही बाल दिवस मनाया जाता था, लेकिन चाचा नेहरू के निधन के बाद से 14 नवंबर को चाचा नेहरू के जन्मदिवस पर ही बाल दिवस मनाया जाने लगा।

बच्चों के लिए चाचा नेहरू के नेक विचार

1. बच्चे आपस में मतभेद के बारे में नहीं सोचते हैं।

2. आज के बच्चे कल का भारत बनाएंगे। जिस तरह से हम उन्हें लाएंगे। वह देश के भविष्य को निर्धारित करेगा।

3. मेरे पास वयस्कों के लिए समय नहीं हो सकता है, लेकिन मेरे पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय है।