- अपनी चाहत बच्चों पर न थोपें पेरेंट्स, उनकी पसंदीदा फील्ड चुनने का दें मौका, पॉजिटिव मिलेगा रिजल्ट

- दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के व्हाट फैसिलिटी नीडेड टू इम्प्रूव गेम टॉपिक पर हुए वेबिनार में एक्सप‌र्ट्स ने दिए सजेशन

GORAKHPUR: पिता की चाहत होती है कि बच्चा बड़ा होकर इंजीनियर बने। वहीं, मां उसे डॉक्टर बनाना चाहती है। बच्चा स्पो‌र्ट्समैन बनना चाहता है, लेकिन शुरू से ही मां-बाप के सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान से जुट जाता है। फेवरेट सब्जेक्ट न होने की वजह से जैसे-तैसे पास भी हो जाता है, लेकिन इसके बाद कॅरियर को सही दिशा नहीं मिल पाती। अगर पेरेंट्स अपनी सोच और ख्वाहिश बच्चों पर न थोपें और उसे खुले आसमान में उड़ान भरने के लिए आजाद कर दें, तो निश्चित ही रिजल्ट पॉजिटिव मिलेंगे। उन्हें बच्चे का जगमगाता कॅरियर भी नजर आएगा और जिस पैसे के लिए वह उसे इंजीनियर और डॉक्टर बनाना चाहते हैं। वह खुद ब खुद उसके पास आने लगेगा। यह बातें सामने आई दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के व्हाट फैसिलिटी नीडेड टू इम्प्रूव गेम टॉपिक पर ऑर्गनाइज वेबिनार में। स्पो‌र्ट्स डे पर हुए स्पेशल वेबिनार में फील्ड एक्सप‌र्ट्स ने स्पो‌र्ट्स को और भी बेहतर ऑप्शन बताते हुए उसमें बच्चों को भरपूर समय देने और पेरेंट्स को उन्हें इसके लिए छूट देने की वकालत की। वेबिनार का संचालन दैनिक जागरण आईनेक्स्ट गोरखपुर के एडिटोरियल हेड शिशिर मिश्र ने किया।

स्कूलों में बनाना होगा माहौल

बच्चों को पढ़ाई के साथ ही खेल में इंट्रेस्ट होता है, लेकिन उन्हें खेलने के लिए मौका नहीं मिल पाता। चाहकर भी खेल में आगे नहीं बढ़ पाते और पढ़ाई में उलझकर रह जाते हैं। स्कूलों में भी उनके इंट्रेस्ट को प्लेटफॉर्म नहीं मिलता, जिसकी वजह से उनका टैलेंट धीरे-धीरे दम तोड़ देता है। इसको बदलने की जरूरत है। बच्चों को पेरेंट्स खेल गतिविधियों में बढ़-चढ़कर शामिल कराएं। अगर उसका किसी गेम में इंट्रेस्ट है, तो वह उसे उसके लिए जरूर मोटीवेट करें। घर के साथ ही स्कूल में भी उन्हें ऐसा माहौल मिले, जिससे कि वह अपने टैलेंट को यूं ही न बर्बाद होने दे। स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन को भी इस ऑप्शन के बजाय रेगुलर सब्जेक्ट के तौर पर पढ़वाना होगा और इसमें पास न होने वाले स्टूडेंट्स का रिजल्ट होल्ड कर देना होगा। जब तक स्टूडेंट्स को माहौल नहीं मिलेगा, उनका इंट्रेस्ट नहीं दिखेगा और जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक मेडल के बारे में सोचना भी बेमानी होगा।

कॅरियर के लिए भी बेहतर ऑप्शन

खेलों में कॅरियर के ढेरों ऑप्शन हैं। मेडल लाने वाले खिलाडि़यों को तो सरकारें खुद ब खुद प्रमोट करती हैं। वहीं, जो नेशनल लेवल पर पहुंचने में कामयाब हो जाते हैं, उन्हें भी स्कूल-कॉलेज में जॉब का बेहतर मौका मिलता है। मगर इसके लिए जरूरी है कि उनकी नींव मजबूत रहे। स्कूल लेवल से ही उन्हें इसके लिए मेहनत करनी होगी। स्कूल्स में अगर उन्हें किसी तरह के कोई गेम से जुड़े सामान की जरूरत पड़ रही है तो वह अपने स्कूल के गेम टीचर को जरूर बताएं। अगर वहां सुनवाई नहीं हो रही है तो प्रिंसिपल तक इस बात को पहुंचाएं। स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन प्रतिभावान खिलाडि़यों के लिए खुद आगे आता है। वह जरूर व्यवस्था कराएगा, जिससे न सिर्फ खिलाड़ी का नाम होगा, बल्कि स्कूल के नाम की चमक भी दूर-दूर तक फैलेगी।

यह भी आए सजेशन

- स्कूलों में बढ़नी चाहिए स्पो‌र्ट्स एक्टिविटी।

- बच्चों की शुरू से ही प्रॉपर ट्रेनिंग हो।

- रिजल्ट देने वाले और मेडल लाने वाले खिलाडि़यों का एग्जामपल देकर उन्हें मोटीवेट किया जाए।

- गवर्नमेंट खेल को बढ़ावा देने के लिए दे रही है सुविधाएं

- खेलो इंडिया और फिट इंडिया के तहत खेल को किया जा रहा है प्रमोट।

- 5 लाख रुपए तक की दी जा रही है स्कॉलरशिप।

- स्कूलों में खेल का भी एक सब्जेक्ट हो और उसमें पास होना भी जरूरी हो।

- माता-पिता को भी बच्चों पर पाबंदी नहीं लगानी चाहिए।

- नौकरी की चाहत में खेल न खेलें।

- खेल में बेस्ट परफॉर्म करने के लिए आगे बढ़ें, नौकरी खुद ब खुद मिलेगी।

- स्कूल भी पेरेंट्स में विश्वास जगाएं और बच्चों को खेल के लिए मोटीवेट करे।

- स्कूल में ही मुहैया कराई जानी चाहिए खेल से जुड़ी बुनियादी सुविधाएं।

वर्जन

स्टेडियम में बच्चों की कमी है। यह तभी बढ़ेंगे, जब स्कूलों में उनके अंदर इंट्रेस्ट जगाया जाएगा। स्कूल में बेहतर खेल होंगे तो बच्चों का इंट्रेस्ट खुद ब खुद जागेगा। स्कूलों को इस बात की ओर ध्यान देने की जरूरत है।

- संजय राय, इंटरनेशनल हैंडबॉल प्लेयर

पेरेंट्स अपनी ख्वाहिश बच्चों पर थोप देते हैं। वह यह नहीं जानना चाहते कि बच्चा क्या करना चाहता है। उन्हें इस बात का ध्यान देना होगा। अगर वह खेल को पसंद करता है, तो उसे उस फील्ड में भी कॅरियर आजमाने का मौका दें।

- राजेश गुप्ता, प्राध्यापक, जुबिली इंटर कॉलेज

लोगों का यह उद्देश्य होता है कि खेलकूद में भी अगर वह जाएं तो उन्हें जॉब सिक्योरिटी मिले। गवर्नमेंट को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे कि खिलाडि़यों में इंट्रेस्ट पैदा हो और वह पढ़ाई के अलावा भी सोच सकें।

- अभिषेक त्रिपाठी, अपर निदेशक, बीआईटी

काफी दिनों से ट्रेनिंग बंद चल रही है। करीब दो साल से कोविड की वजह से ऐसा हुआ है। अगर बच्चे को प्रॉपर गाइडेंस ही नहीं मिलेगी तो वह चाहकर भी बेहतर परफॉर्म नहीं कर पाएगा। रिजल्ट नहीं आएगा तो खिलाड़ी भी आगे नहीं आएंगे।

- नफीस अहमद, कोच, हैंडबॉल

बचपन में सभी को खेल में इंटरेस्ट होता है। मगर पेरेंट्स के डर की वजह से वह अपने टैलेंट को अंदर ही दबा देते हैं। स्कूलों में अगर इसे प्रमोट किया जाए तो पेरेंट्स भी इसे सपोर्ट करेंगे और टैलेंट पहले ही दम नहीं तोड़ेगा।

- विजय लक्ष्मी सिंह, कोच, कबड्डी

खिलाड़ी का अगर खेल में इंटरेस्ट नहीं होगा तो वह मेडल नहीं ला सकता है। स्कूल लेवल से ही मोटीवेशन और रेगुलर प्रैक्टिस की जरूरत है। स्कूल में इंट्रेस्ट जागेगा, तो वह मैदान में पहुंचकर खुद ही प्रैक्टिस करेंगे।

- सीमा विश्वकर्मा, कोच, एथलेटिक्स