गोरखपुर (ब्यूरो)। एक माह में करीब 250 से ज्यादा शिकायतें सिर्फ महिला थाने पहुंच रही हैं। ऐसे में गल्र्स ने मोबाइल को भी अपनी सिक्योरिटी का हथियार बनाया है। इसके जरिए न सिर्फ वह खुद को सेफ कर रही हैं, बल्कि पेरेंट्स और गार्जियंस की टेंशन को भी कम कर रही हैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ऐसे ही गैजेट्स को लेकर आपके बीच है, जिसका इस्तेमाल कर आप खुद को सेफ और सिक्योर रख सकते हैं।

स्टे सिक्योर एप

स्टे सिक्योर एप को गूगल प्ले स्टोर की मदद से मोबाइल में पहले इंस्टॉल कर लें। इसके बाद जब भी कहीं सुरक्षा की जरूरत पड़े। पांच बार पॉवर बटन प्रेस करें। इससे इमरजेंसी नंबर पर ऑटोमेटिक हेल्प का मैसेज पहुंच जाएगा। साथ ही इस में एसओएस मैसेज की सुविधा भी है, जो पहले से सेव पांच लोगों के नंबर्स पर पहुंच जाएगा। इंटरनेट कनेक्शन न होने पर भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

वॉच ओवर मी

कोई भी हेल्प तभी कर सकता है, जब उन्हें हेल्प मांगने वाले की सही समय पर सही लोकेशन मिल जाए। ज्यादातर घटनाएं सही लोकेशन ना पता चल पाने की वजह घटती हैं। ऐसे में वॉच ओवर मी ऐप काफी मददगार साबित हो सकता है। इस एप की मदद से यूजर की लोकेशन को आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। वहीं, गूगल मैप भी लोकेशन भेजने का एक जरिया है।

वुमेंस सिक्योरिटी

हर रोज बाहर आने जाने वाली फीमेल्स में काफी तादाद ऐसी महिलाओं की भी है, जो कुछ पढऩा-लिखना नहीं जानती हैं। ऐसे लोगों की सुरक्षा के लिए वुमेंस सिक्योरिटी एप भी गूगल प्ले स्टोर पर अवेलेबल है। इस में यूजर 45 सेकेंड्स की रिकॉर्डिंग कर इमरजेंंसी नंबर्स पर भेज सकते हैं। साथ ही इंटरनेट के थ्रू इमरजेंसी नंबर्स पर भी इन्हें भेजा जा सकता है।

निर्भया बी फीयरलेस

इस ऐप से वुमन को हेल्प की जरूरत होने पर कॉन्टैक्ट नंबर पर कॉल या मैसेज भेज सकती हैै । इसके लिए युजर को एसओएस टाइप करना होता है। अगर घबराहट या जल्दबाजी में फोन लॉक हो जाए तो इमरजेंसी मैसेज सेंड करने के लिए मोबाइल को शेक करना (हिलाना) होता है। 2012 में हुए निर्भया कांड को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। यह एप यूजर को इनसिक्योर प्लेसेज के बारे में नोटिफिकेशन भी देता है।

एप के अलावा इन सेफ्टी गैजेट्स का भी इस्तेमाल

- पेप्पर स्प्रे : पेप्पर स्प्रे सेल्फ डिफेंस के लिए गल्र्स की सबसे पहली चॉयस है। इस गैजेट से हमलावार के शरीर के किसी भी हिस्से पर स्प्रे करने से उस जगह पर तेज जलन होने लगती है। जिससे फीमेल्स को वहां से भागने और दूसरों से हेल्प मांगने का टाइम मिल जाता है।

- टच विथ शॉक : यह गैजेट देखने में एक छोटे टॉच जैसा होता है। जिसे रोजाना कैरी किया जा सकता है। यह गैजेट उस समय काम में आ सकता हैै। जब कोई छेडख़ानी या अश्लील हरकत करने की कोशिश कर रहा हो। तो आप हमलावर के शरीर में गैजेट पर लगे तीर को चुभोएंगे तो इससे हमलवार को 23 वोल्ट का करंट लगेगा और दूर जाकर गिरेगा। जिससे महिला को वहां से भागने का टाइम मिल जाएगा।

- साउंड ग्रेनेड : साउंड ग्रेनेड का वेट 20 ग्राम होता है। जिस से किसी भी चीज में रख कर साथ में ले जाया जा सकता है। इस गैजेट में एक पिन लगा होता है, जिसे खींचने पर 120 डेसिबल ïवॉल्यूम का एक सायरन बजने लगता है, जो 100 मीटर तक आसानी से सुनाई देगा।

- सेफलेट बे्रसलेट : बे्रसलेट के जैसे फ्लैशलाइट गैजेट को मोबाइल से कनेक्ट किया जा सकता है। जिसे जरूरत के समय बटन दबाते ही ऑडियो रिकॉड होने लग जाता है। साथ ही इमरजेंसी नंबर्स पर कॉल लग जाती है।

1090 का सहारा, लेकिन टाइमटेकिंग

अभी तक स्कूल गोइंग गल्र्स या फिर कॉलेज जाने वाली छात्राएं 1090 का सहारा लेती आ रही हैैं। महिला पुलिस इन्हें अवेयर किया जाता है। अब गल्र्स और वूमेंस अपने घर से निकलने के बाद खुद को सेफ महसूस करने लगी हैैं। इसके अलावा विमंस सिक्योरिटी के लिए जारी हेल्पलाइन नंबर्स भी काफी मददगार बने हैं।

'कोरोना की वजह से कॉलेज अभी कम ही आना जाना होता है। जब भी कॉलेज जाना होता है पेप्पर स्प्रे साथ लेकर जाती हूं। हर जगह साथ ले जाना संभव नहीं है, इस लिए वुमेन सेफ्टी एप्स इंस्टॉल कर रखा है।'

- सौम्या सिंह, स्टूडेंट

'कॉलेज फिर से ओपेन हो गए हैं। कॉलेज जाने की सारी प्रिपरेशन हो गई है। बाहर का माहौल देखते हुए मम्मी ने सेफलेट बे्रसलेट खरीद कर दिया है। मैैंने भी वुमेन सेफ्टी एप्स इंस्टॉल किया गया है।'

- श्रृष्टि, स्टूडेंट

'हमारा शहर पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित हो रहा है, जहां महिलाओं की सुरक्षा काफी जरूरी है। आने वाले दिनों में गोरखपुर एक मिनी मेट्रो सिटी के रूप उभर कर सामने आएगा। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए गल्र्स और फीमेल्स भी खुद को सिक्योर करने के लिए तमाम तरह के एप्स का इस्तेमाल कर रही हैं, जो उनके लिए काफी मददगार है।'

- अनीता अग्रवाल, लॉयर, फैमिली कोर्ट

'महिलाएं पहले से ज्यादा जागरूक हो चुकी हैैं। पहले भी इस तरह की घटनाएं होती रही हैैंं, लेकिन लोक लज्जा के कारण महिलाएं खुलकर अपनी बातें नहीं रख पाती थीं, लेकिन आज वक्त बदल गया है। अब जिसके साथ भी कोई घटना होती है, वह अपनी शिकायत लेकर महिला थाने आता है, उसकी मदद की जाती है। सेफ्टी एप्स अब चलन में हैं और काफी कारगर भी हैं।'

- अर्चना सिंह, महिला थाना प्रभारी

Statistics

- 250 से ज्यादा कंप्लेन महिला थाने हर माह आती हैं।

- 100 से 125 कंप्लेन का होता है निराकरण

- 20 मर्डर

- 84 दुष्कर्म

- 2 छेड़छाड़

- 265 उत्पीडऩ

- 118 शीलभंग

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