17 साल बाद आए और करीब
अनिरुद्ध बताते हैं उनकी फ्रेंडशिप शुरुआत में आम ही थी। नेहरू इंटर कॉलेज में एक साथ पढ़ाई करना, एक साथ खेलना। पढ़ाई के दौरान एक एक दूसरे की प्रॉब्लम्स सॉल्व करना। लेकिन नौकरी में आने के बाद हम दोनों दो शहरों में बंट गए। अनिरुद्ध की बरेली में पोस्टिंग हुई तो बाबूलाल गोरखपुर में थे लेकिन दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए हर साल विथ फैमिली नैनीताल जाते थे। वहीं अनिरुद्ध बाबूलाल से मिलने गोरखपुर आते थे। ये सिलसिला करीब 17 साल तक चलता रहा। लेकिन अनिरुद्ध ने इसी साल 7 फरवरी को गोरखपुर ज्वाइन किया। उसके बाद दोनों के बचपन की दोस्ती ने एक अलग मुकाम हासिल किया।  

एक दूसरे पर छिड़कते हैं जान
अनिरुद्ध और बाबूलाल बताते हैं चाहे बेटी की शादी हो या फिर घर में कोई फंक्शन, सबकुछ एक दूसरे की हेल्प से किया जाता है। कई बार पैसों की जरूरत पड़ी तो एक दूसरे की फाइनेंशियल हेल्प भी करने में पीछे नहीं रहे। हाल ही में हुई शादी के कार्यक्रम में दोनों लोगों की फैमिली ने एक  दूसरे की मदद के लिए दिन-रात एक कर दिया। इनकी दोस्ती के चर्चे पूरे मोहल्ले में है। अनिरुद्ध बताते हैं मुझे आज भी वह दिन याद आता है जब मैंने अपने बेस्ट फ्रेंड बाबूलाल के गांव रहकर पढ़ाई की थी और उन्होंने मुझे काफी मदद की थी।

और चपरासी को बांध दिया पेड़ से
बचपन में हम दोनों को स्विमिंग का बड़ा शौक था। स्विमिंग के लिए हम दोनों रेलवे ऑफिसर्स क्लब के पूल का अक्सर चक्कर लगाया करते थे लेकिन वहां का चपरासी स्विमिंग के लिए एंटर नहीं करने देता था। फिर एक दिन हम दोनों ने प्लान बनाया और चपरासी को पेड़ में रस्सी से बांध दिया। उसके बाद घंटों पूल में स्विमिंग की। मस्ती के वो दिन भुलाए नहीं भूलते। मजा तो तब आया जब हम दोनों ने उस चपरासी को वैसे ही बंधा छोड़ दिया और वहां से भाग निकले।

दोस्ती की खातिर छोड़ दी नौकरी
आज जहां बेरोजगारी का दंश झेल रहे लोग नौकरी की चाह में एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं वहीं बाबूलाल ने अपने बेस्ट फ्रेंड की खातिर आर्मी की नौकरी छोड़ दी। बाबूलाल बताते हैं वे अनिरुद्ध के साथ वाराणसी आर्मी की भर्ती अटेंड करने गए थे। भर्ती के दौरान दोनों दोस्तों ने दौड़ लगाई थी जिसमें अनिरुद्ध चौधरी अंडरएज होने की वजह से बाहर हो गए वहीं बाबूलाल क्वालिफाई कर लिया। लेकिन अनिरुद्ध चौधरी का सेलेक्शन न होने से बाबूलाल ने भी नौकरी ज्वाइन करने से मना कर दिया।

आज भी बरकरार है बैडमिंटन का शौक  
बचपन में हैंडबाल, बैडमिंटन और फुटबाल खेला करते थे और आज भी वो शौक बरकरार है। आज भी हम दोनों शाम के वक्त सैयद मोदी स्टेडियम के बैडमिंटन कोर्ट में बैडमिंटन खेलते हैं। बाबूलाल बताते हैं कि वह अपने पढ़ाई के दौरान यूनिवर्सिटी लेवल पर हैंडबाल के प्लेयर रह चुके हैं।

 

report by : amarendra.pandey@inext.co.in