- शमसुद्दीन से छोटे भाई ने रूंदे गले से कहा भाई जान, पूरा परिवार कर रहा है इंतजार

- खुशी में निकल आए आंसू तो गले मिलकर काफी देर तक रोते रहे दोनों, सुरक्षा में लाए जाएंगे कानपुर

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KANPUR : पाकिस्तान की जेल में जुल्म की हर इंतहा को सहकर लौटे शमसुद्दीन को लेने उनके भाई अमृतसर पहुंचे। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो लब खामोश थे लेकिन दोनों ओर से आंसुओं का सैलाब बह रहा था। कांस्टेबल मनिंदर भी भावुक हो गए। फहीमुद्दीन ने कहा कि भाई मैं सारे डॉक्यूमेंट्स ले आया हूं। अब तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगा। हम सभी पूरे परिवार के साथ खुशी से रहेंगे। फहीमुद्दीन ने आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और पासपोर्ट मौजूद पुलिस कर्मियों को दिखाया। उन्होंने अपने क्षेत्रीय पार्षद हाजी अमीम खान से भी लिखी हुई चिट्ठी भी पुलिस कर्मियों को दी, जिसमें शमसुद्दीन के कानपुर में रहने का प्रमाण है। इसके बाद दोनों भाइयों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हुआ।

क्या अभी भी घर वैसा ही है?

वो गलियां कैसी हैं? क्या घर अभी भी वैसा ही है? घर के लोग कैसे हैं? क्या अब भी मजार वहीं है? उर्स अभी भी वहीं होता है? बच्चे तो बड़े हो गए होंगे। अम्मी अब्बू का इंतकाल कैसे हुआ? न जाने कितने सवाल शमसुद्दीन के मन में थे। उनकी सभी सवालों के जवाब फहीमुद्दीन ने दिए।

परिवार में त्योहार का माहौल

रूपम टाकीज के सामने वाली गली के एक परिवार में त्योहार सा माहौल है। और हो भी क्यों न पाकिस्तान के जुल्मों की वजह से जिनके आने की उम्मीद छोड़ दी थी। 28 साल बाद घर का वो शख्स लौट रहा है। फहीमुद्दीन ने परिवार वालों से उनकी बात कराई। हालांकि दो दिन से शमसुद्दीन की परिवार वालों से बात हो रही थी। जिसकी वजह से परिवार वालों में खुशी का माहौल है।

13 साल बाद अब्बू से मिलेंगी

दोनों बेटियां जहां अपने अब्बू से 13 साल बाद मिलेंगी। वहीं बहने और दूसरे परिवार वाले 28 साल बाद देखेंगे। शमसुद्दीन बेचैन है उनका कहना है कि आधी जिंदगी तो पाकिस्तान से मिले कभी न भूलने वाले गमों में ही चली गई। घर के मेंबर्स के लिए कुछ कर नहीं सका.कैसे उन्हें फेस करूंगा।

भारतीय जवानों से मिली हेल्प

सुरक्षा में लगे भारतीय जवानों ने उनका पूरा सहयोग किया। उन्हें नियमों के मुताबिक अमृतसर के एक अस्पताल में क्वारंटीन किया गया। शमसुद्दीन ने बताया कि आज उन्हें दो खुशियां एक साथ मिली हैं। पहली उनका क्वारंटीन पूरा हुआ दूसरी उनका भाई उनके साथ है। पाकिस्तान के दिन याद करते हुए शमसुद्दीन बताते हैं कि वहां की पुलिस और भारत की पुलिस में बहुत अंतर हैं। वहां की पुलिस कॉपरेट नहीं करती है। बस जुल्म देना जानती है। जबकि यहां की पुलिस ने उनका बहुत साथ दिया है।

जुल्म की हर दास्तां है याद

भारत से पाकिस्तान पहुंचने और वहां से लाहौर जेल पहुंचने, उसके बाद उन्हें जबरन भारतीय जासूस बताकर किस तरह यातनाएं दी गईं? क्या-क्या किया गया? शमसुद्दीन बताते हैं कि उन्हें पाकिस्तान का हर जुल्म याद है।