बेरोजगारों को फंसाते हैं जाल में

सिटी में मिलों और कारखानों के बंद होने से बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। सैकड़ोंं परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। छोटी-छोटी जरूरतें पूरी न होने परिवारों में झगड़े हो रहे हैं। कई लोग परेशान होकर आत्महत्या तक का कदम उठा रहे हैं। नक्सली अपनी विचारधारा फैलाने के लिए ऐसे ही हालात को सबसे अनुकूल मानते हैं। वे कर्मचारियों के आन्दोलन में शामिल होकर उनसे नजदीकी बढ़ा लेते हैं फिर उनकी आर्थिक मदद कर उन्हें अपनी विचारधारा से जोड़े लेते हैं। घनी बस्तियों में खासतौर पर नक्सली अपना मूवमेंट चला रहे हैं।

पहले मदद फिर ब्रेन वॉश

सिटी में पकड़े गए नक्सलियों ने पूछताछ में बताया था कि वे बस्तियों में चाय, पान की दुकानों से क्षेत्र के लोगों के बारे जानकारी हासिल करते हैं। इसके बाद आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद कर दोस्ती कर लेते हैं और फिर घर आना-जाना शुरू कर देते है। कुछ दिनों में उनका विश्वास जीतकर उनको गुमराह करना शुरू कर देते है। साथ ही वे चाय, पान, परचून आदि की दुकानों पर लोगों को पार्टी के नाम पर घर पर बुलाते है। जहां पर वे उनको माओवादियों के इतिहास और नीतियों के बारे में लोगों को बताकर उनको अपने जाल में फंसाते हैं।

बदलते रहते हैं ठिकाना

सिटी में पकड़े गए नक्सली पहचान छुपाने के लिए नाम बदल कर रहते थे.वे घनी बस्ती में किराये के मकान पर रहते हैं, ताकि जल्दी और ज्यादा-ज्यादा से लोगों से जुड़ सकें। रणनीति के तहत एक जगह पर दो-तीन महीने रहने के बाद घर भी बदल देते है, ताकि पुलिस की गिरफ्त में न आएं। आम आदमियों के तरह पहनावे, बोलचाल, उठने-बैठने के ढंग के चलते जल्दी उनपर कोई शक नहीं करता। पकड़े गए नक्सलियों के पास से अलग-अलग नाम और पते से आईडी बरामद हुई थी। इसके अलावा वे ऐसा मकान तलाशते हैं, जहां उन पर किसी तरह की पाबन्दी न लगाई जाए। वे मुंह मांगे किराए पर मकान लेते हैं।

ये नक्सली पकड़े गए थे

एसटीएफ ने नौबस्ता और किदवईनगर पुलिस की मदद से 8 फरवरी 2010 को बसन्ती नगर और जूही में छापा मारकर आठ नक्सलियों पकड़ा था। जिसमें किदवईनगर क्षेत्र से शिवराज सिंह उर्फ बगदावल और कृपा शंकर उर्फ मनोज उर्फ उदित पकड़े गए थे, जबकि नौबस्ता इलाके से अमरीश उर्फ राजेंद्र दास, नवीन प्रसाद सिंह उर्फ अशोक, दीपकराम, बंशीघर उर्फ चिन्तक, राजेंद्र उर्फ अरविन्द और बच्चा प्रसाद उर्फ बलराज को पकड़ा था। इनके केस की सुनवाई सेशन कोर्ट में चल रही है।

बंशीधर उर्फ चिंतन है थिंक टैंक

सिटी में पकड़े गए नक्सली में सबसे उम्रदराज 75 वर्षीय बंशीधर उर्फ चिंतन है। इसी के इशारे पर नक्सलवादी सिटी में मूवेंट कर रहे थे। इसको हाई सिक्योरिटी बैरक नंबर 27 में रखा गया है। पुलिस के मुताबिक, बंशी बातों में काफी एक्सपर्ट है.  थोड़ी देर बात करते ही वो किसी को भी शीशे में उतार लेता है। बंशी को नक्सलियों को थिंक टैंक भी कहा जाता है। पकड़े गए नक्सलियों में बंशीधर के बाद शिवराज उर्फ बगदावल का नाम आता है। 61 साल का बगदावल माओवादी विचारधारा फैलाने के लिए भडक़ाउ साहित्य व अन्य सामग्री उपलब्ध कराता था।

शामिल कर लेते हैं दल में

बसन्त बिहार में पकड़े गए नक्सली दीपकराम की उम्र 36 साल है। उसके पिता योगेंद्रराम हैं। वह एक किराये के कमरे में नवीन प्रसाद सिंह उर्फ अशोक (32) के साथ रहता था। दोनों आर्थिक रूप से कमजोर लोगों से दोस्ती कर उनको जाल में फंसा लेते थे। इसके बाद वे उनको बंशीधर से मिलवाते थे, जो उन्हें अपनी बातों से संगठन से जुडऩे के लिए लिए प्रेरित करता था।

दूसरे प्रदेशों में भी दर्ज हैं मामले

नक्सलियों के पास से आपत्तिजनक साहित्य समेत कई कागजात बरामद हुए थे। इनके खिलाफ दूसरे सिटी में भी केस दर्ज हैं। इसमें बच्चा प्रसाद उर्फ बलराज के खिलाफ आंध्रप्रदेश में केस दर्ज है। जिसे पेशी के बी वारंट पर वहां भेजा गया है, जबकि राजेंद्र उर्फ अरविन्द को 18 मार्च 2010 को बी वारंट पर तिहाड़ जेल भेजा गया था। जिसके बाद से उसको वापस नहीं लाया गया है।

जेल में भी सक्रिय

जेल में हाई सिक्योरिटी बैरक फुल हैं। इसमें सिर्फ सबसे खतरनाक माने जाने वाले नक्सलियों के थिंक टैंक बंशीधर उर्फ चिन्तन को रखा गया है। बाकी को साधारण बैरक में रखा गया है। जेल प्रशासन ने उनकी निगरानी के लिए लम्बरदार और बंदी रक्षक लगाए हैं, लेकिन वे उनसे नजर चुराकर बंदियों से बात करने लगते हैं। जिसके चलते कई बंदी उनकी विचारधारा से प्रभावित हो जाते हैं।

Naxalites in KANPUR jail

नाम                                   बैरक

बंधीधर उर्फ चिन्तन                हाई सिक्योरिटी बैरक

शिवराज सिंह उर्फ बगदावल             09

कृपा शंकर उर्फ मनोज उर्फ उदित        13

अमरीश उर्फ राजेंद्र दास उर्फ संतोष      23 सी

नवीन प्रसाद सिंह उर्फ अशोक            22 सी

दीपकराम                                 10

"जेल में हाई सिक्योरिटी बैरक सीमित हैं। इसलिए सभी नक्सलियों को वहां पर नहीं रखा जा सकता है। बैरक में लम्बरदार और बंदी रक्षक इनकी निगरानी करते है। दूसरे बंदियों को उनसे दूर रखा जाता है। "

-पीडी सलोनिया, जेल अधीक्षक

"छत्तीसगढ़ की घटना के बाद जोन के सभी पुलिस अधिकारियों के साथ बैठकर उन्हें अलर्ट कर दिया गया है। घनी बस्ती वाले इलाकों में भी खुफिया एजेंसीज के लोग नजर रखे हुए हैं."

सुनील गुप्ता, आईजी

कारतूस की भी होती है सप्लाई

सिटी में एक साल पहले रामादेवी चौराहे के पास आम्र्स की दुकान पर लखनऊ की टीम ने छापा मारा गया था। यहां पर टीम ने कारतूसों की बिक्री का खेल पकड़ा था। जांच में खुलासा हुआ था कि यहां से 0.32 बोर, 315 बोर समेत प्रतिबंधित बोर के कारतूसों को नक्सली क्षेत्र में सप्लाई की जाती है। जिससे पता चलता है कि नक्सलियों के तार कानपुर से जुड़े है।

आखिर क्या है ये नक्सलवाद

नक्सल, नक्सलवादी किसी धर्म, जाति या व्यक्ति विशेष से निकला शब्द नहीं है। वेस्ट बंगाल के सिलीगुड़ी डिस्ट्रिक्ट में एक छोटा सा गांव है नक्सलबाड़ी। 60 के दशक में माक्र्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी(सीपीएम) के स्थानीय नेता कानू सान्याल और जनगल संथाल ने जमीदारों से जमीन लेकर भूमिहीन लोगों को दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। दोनों ही नेता जनजाति समुदाय से बिलांग करते थे। 18 मई 1967 को आयोजित एक किसान सभा का नेतृत्व करते हुए जनगल संथाल ने कानू सान्याल के आंदोलन को सफल बनाने के लिए शस्त्र उठाने का ऐलान किया। इसी चंद दिन बाद भूमि विवाद में लैंडलॉर्ड के आदमी ने किसान पर हमला बोल दिया। मामले में 24 मई को पुलिस टीम किसानों के नेता कानू को गिरफ्तार करने पहुंची तो ट्राइबल्स उग्र हो उठे। जगनल की अगुवाई में ट्राइबल्स के ग्रुप ने पुलिस टीम पर तीरों से हमला बोल दिया। जिसमें इंस्पेक्टर की मौत हो गई। इसके बाद हजारों की संख्या में गरीब और आदिवासी आंदोलन से जुड़ गए और जमीदारों को निशाना बनाने लगे। आंदोलन को चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओ ने अपना समर्थन दिया। इसके साथ ही माओ ने किसानों, गरीबों से आह्वान किया कि वो सरकार और अमीरों से हथियार के बल पर अपना हक छीन लें। इसके बाद से आंदोलन और उग्र होता गया और धीरे-धीरे देश के कई प्रदेशों में फैल गया। माओ की इस विचारधारा को मानने वाले माओवादी या नक्सलवादी कहलाने लगे।