जरा इन मामलों पर नजर डालिए

केस-1
किदवईनगर, चालीस दुकान में लडक़ी के साथ छेडख़ानी का विरोध करने पर शोहदों ने जितेंद्र सिंह की  दुकान में तोडफ़ोड़ कर दी। उन्होंने थाने में तहरीर दी लेकिन पुलिस ने उनकी रिपोर्ट तक नहीं लिखी। इस मामले के बाद जितेंद्र ने लोगों की मदद करने से तौबा कर लिया है।

केस-2
अप्सरा टॉकीज के पास रहने वाले रईस बाइक मैकेनिक हैं। वह मुरे कम्पनी पुल के नीचे एक शॉप में काम करता है। करीब दो महीने पहले पुल के नीच झगड़ा कर रहे लडक़ों का बीच-बचाव करने पहुंच गया.  तभी मौके पर पहुंची पुलिस लडक़ों के साथ रईस को भी पकड़ कर थाने ले गई। इसके बाद कई लोगों की सिफारिश के बाद पुलिस ने उसको छोड़ा।

केस-3
हूलागंज रोड में रहन वाले अमन गुप्ता ने घर के बाहर झगड़े की सूचना पुलिस को दी, तो पुलिस ने उनको केस में गवाह बना दिया। इसका पता उन्हें कोर्ट से गवाही के लिए सम्मन जारी होने पर पता चला। जिसके बाद उनको वकील की मदद से गवाही देनी पड़ी।

 
घंटों थाने में बैठाए रखा जाता है
पब्लिक का ये डर बेवजह नहीं है। कई मामलों में ऐसा देखा गया है कि पुलिस पीडि़त की हेल्प करने वाले को ही पूछताछ के बहाने घंटो थाने में बैठाए रखती है। उन पर गवाह बनने या क्रिमिनल की पहचान करने का दबाव बनाती है। वहीं, हॉस्पिटल या नर्सिंग होम में घायल को भर्ती करने में डॉक्टर आनाकानी करते है। जिससे हेल्प करने वाला व्यक्ति मुश्किल में पड़ जाता है। लेकिन हमारा कानून कहता है कि पुलिस, डॉक्टर और पब्लिक सभी को जागरूक होना चाहिए। हर हाल में पीडि़त की मदद करें। तभी अपराध पर अंकुश लगेगा और आप सुरक्षित रहेंगे।

तो डॉक्टर को हो सकती है सजा
सुप्रीम कोर्ट ने 1988 के पंडित परमानन्द कटारा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में कहा है कि अगर कोई भी घायल व्यक्ति रोड पर पड़ा है, तो पब्लिक या पुलिस को उसको तुरन्त हॉस्पिटल या नर्सिंग होम ले जाना चाहिए। घायल का समुचित इलाज करने के बाद जब वह सुरक्षित अवस्था में आ जाए, तभी डॉक्टर उससे फीस ले सकता है। अगर डॉक्टर ऐसा नहीं करते है, तो वे कानून के उल्लघंन करने की श्रेणी में आ जाएंगे जिसके लिए सजा और जुर्माने का भी प्रावधान है।

पहले इलाज बाकी बाद में
रोड एक्सीडेंट या आपराधिक घटना में घायल को कोई आम नागरिक हॉस्पिटल ले जाता है, तो डॉक्टर का फर्ज है कि वह बिना फॉर्मेलिटी के घायल को भर्ती कराकर इलाज करें। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि डॉक्टर को पहले घायल का इलाज करना चाहिए। जब वह सुरक्षित हो जाए, तो उससे फीस और दूसरी औपचारिकताएं पूरी करवाएं। डॉक्टर मदद करने वाले को परेशान नहीं कर सकते हैं और न ही वे उस पर फीस जमा करने का दबाव बना सकते हैं।

हेल्पर का हैरेसमेंट करना जुर्म है
एडवोकेट शिवाकान्त दीक्षित के मुताबिक रोड में एक्सीडेंट से घायल हो या क्रिमिनल वारदात का शिकार हो, उसकी हेल्प करने वाले का हैरेसमेंट करना जुर्म है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रोड में घायल व्यक्ति को देखकर उसकी हेल्प करनी चाहिए, न कि मुंह फेर लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी घायल को हॉस्पिटल ले जाता है, तो पुलिस उस व्यक्ति को परेशान नहीं करेगी और न ही डॉक्टर उसको फीस जमा करने के लिए कहेंगे।

ड्राइवर की भी ड्यूटी है
सुप्रीम कोर्ट ने एनवी एक्ट में सेक्शन 134 के ड्यूटी ऑफ ड्राइवर के बारे में बोला है कि अगर रोड में कोई भी व्यक्ति घायल अवस्था में पड़ा है, तो वहां से गुजरने वाले गाड़ी के ड्राइवर का फर्ज है कि वह घायल को अपनी गाड़ी से हॉस्पिटल ले जाए। एडवोकेट दीक्षित ने बताया कि अगर ड्राइवर ऐसा नहीं करते है, तो उनको सजा सुनाने का भी प्राविधान है। सेक्शन 187 के तहत घायल की हेल्प न करने पर ड्राइवर को अधिकतम तीन महीने के कारावास और 500 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई जा सकती है। इसके बाद भी ड्राइवर दोबारा गलती करता है, तो उनको 6 महीने कारावास और 1 हजार रुपए जुर्माने की सजा का प्राविधान है।

पब्लिक भी बन सकती है पुलिस
आपको सुनने में आश्चर्य होगा कि आम पब्लिक भी पुलिस की तरह कोई भी गलत काम करने वाले क्रिमिनल को गिरफ्तार कर सकती है। यह हक सीआरपीसी की धारा 43 के तहत पब्लिक को मिला है। इसलिए आप डरिए नहीं। आपको कानून में पीडि़त को हेल्प करना का हक मिला है। आपको पुलिस परेशान नहीं कर सकती है। इसलिए डरिए नहीं, बल्कि खुद और पब्लिक को किसी भी पीडि़त की हेल्प करने के लिए जागरूक करिए।

पुलिस घटना की जानकारी करने के लिए पीडि़त की हेल्प करनेवाले से पूछताछ करती है। जरूरत पडऩे पर शिनाख्त के लिए भी बुलाती है। ट्रायल के दौरान कोर्ट भी बुला सकती है। इसे मदद करने वाला हैरेसमेंट न समझे बल्कि न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बनकर एक अच्छे सिटीजन होने का फर्ज अदा करे। पुलिस की मंशा हेल्पर को परेशान करने की नहीं होती है। पुलिस तो हेल्पर को सुरक्षा मुहैया कराती है। इसलिए पब्लिक को अपनी धारणा बदली चाहिए। पुलिस और पब्लिक दोनों के सहयोग से क्रिमिनल पकड़े जा सकते हैं। इसलिए पब्लिक को पुलिस की मदद के लिए आगे आना होगा।
सुनील गुप्ता, आईजी

पुलिस डिपार्टमेंट में निर्देशित किया गया है कि पीडि़त की हेल्प करने वाले को हेल्पर के रूप में देखा जाए, न कि उन पर शक किया जाए। अगर किसी भी हेल्पर को पुलिस का कोई ऑफिसर या कर्मी परेशान करता है, तो वह सीधे उच्च अधिकारियों से उसकी शिकायत कर सकता है। पुलिस और पब्लिक के बीच का गैप कम करने की जरूरत है। पब्लिक को भी पुलिस पर भरोसा करना चाहिए, तभी अपराध में अंकुश लग पाएगा। इसलिए पब्लिक को जागरुक होकर आगे आना होगा।
आरके चतुर्वेदी, डीआईजी

पुलिस और पब्लिक सपोर्ट से ही अपराध पर काबू पाया जा सकता है। रोड पर किसी को घायल देखने पर हमे उसकी हेल्प करनी चाहिए। यह हमारा फर्ज है। पुलिस घटना की सच्चाई जानने के लिए हेल्पर से पूछताछ करती है। इसलिए हेल्पर को भी पुलिस का सहयोग करना चाहिए। पब्लिक को भी पुलिस पर भरोसा करना चाहिए। अगर कोई भी पुलिस कर्मी हेल्पर को परेशान करता है, तो वह उनके समक्ष शिकायत कर सकता है।
यशस्वी यादव, एसएसपी