कानपुर(ब्यूरो)। हिंदी मीडियम से 10वीं और 12वीं पास करने वालों के लिए मेडिकल और इंजीनियरिंग का राह कठिन है। इस साल नीट और जेईई एडवांस्ड के नतीजे इसकी तस्दीक कर रहे हैं। नतीजों में सिटी टॉपर और पास होने वाले अन्य स्टूडेंट्स की संख्या की बात करें तो मैक्सिमम स्टूडेंट सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड से हैं। यूपी बोर्ड और हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स इन एग्जाम्स में कुछ खास परफार्मेंस नहीं दे पा रहे हैं। हालांकि कई होनहार ऐसे भी हैं, जिन्होंने यूपी बोर्ड और हिंदी मीडियम से पढ़ाई करके अच्छे नंबरों से नीट और जेईई क्रैक किया है.
कोचिंग में अंग्रेजी का दबदबा
कानपुर में काकादेव एक ऐसा इलाका है, जिसको कोचिंग मंडी के नाम से जाना जाता है। पड़ताल के दौरान पता चला कि कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में अंग्रेजी की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या ज्यादा होने की वजह से दबदबा है। क्लासेज तो दोनों मीडियम में मिक्स चलती हैं लेकिन स्टडी कंटेंट को मैक्सिमम इंग्लिश में ही पढ़ाया जाता है। हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स को टीचर हिंदी भाषा में समझाते हैं लेकिन वह नाकाफी होता है। हालांकि एक से दो कोचिंग वाले हिंदी और अंग्रेजी के अलग-अलग बैच चला रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि एग्जाम प्रीपरेशन की बेस्ट बुक्स अंग्रेजी में ही आती है।
असली लड़ाई एडमिशन के बाद
हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स ने अगर किसी तरह से एंट्रेंस को पास कर लिया तब भी बेड़ा पार नहीं होता है। असली लड़ाई तो कॉलेज में एडमिशन के बाद स्टार्ट होती है। आईआईटी, एचबीटीयू और सीएसजेएमयू समेत इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्टडी इंग्लिश में ही होती है। हिंदी मीडियम वालों को उस दौरान भी परेशानी होती है। कई स्टूडेंट तो डिप्रेशन में चले जाते हैं या फिर स्टडी को छोड़ देते हैं।
प्लेसमेंट में में आती समस्या
इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्टडी के बाद प्लेसमेंट के लिए आने वाली कंपनियां भी इंग्लिश में ही बात करती हैं। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वालों को मोटे पैकेज पर सिलेक्ट किया जाता है। कोर्स को पूरा करके प्लेसमेंट तक पहुंचने तक हिंदी मीडियम वालों का संघर्ष जारी रहता है।
इंप्रूव कर लेते हैं अंग्रेजी
सीएसजेएमयू के मीडिया प्रभारी डॉ। विशाल शर्मा का कहना है कि हिंदी मीडियम वालों को परेशानी जरुर होती है लेकिन कुछ स्टूडेंट अपनी अंग्रेजी को समय निकालकर इंप्रूव भी कर लेते हैं। इंप्रूव करने वालों की अंग्रेजी ऐसी होती है कि वह अंग्रेजी मीडियम वाले को भी पीछे छोड़ देते हैं.
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छोड़ दिया इंजीनियरिंग और मेडिकल का ड्रीम
स्टोरी कवर करते समय काकादेव में हमारी मुलाकात कल्याणपुर के रहने वाले एक स्टूडेंट्स से हुई। उसने जवाहर लाल नेहरू इंटर कॉलेज से 80 परसेंट माक्र्स के साथ 2023 में 12वीं को पास किया है। आईआईटी से बीटेक करने का सपना आंखों में लिए काकादेव की एक कोचिंग में एडमिशन लिया। एक महीने पढ़ाई के बाद उसको लगा कि अंग्रेजी भाषा में उसको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। स्टडी के प्रेशर की वजह से तबीयत भी बिगडऩे लगी है। वहीं फर्रुखाबाद की रहने वाली एक स्टूडेंट एक नीट की तैयारी कराने वाली कोचिंग के बाहर मिली। चेहरे से परेशान पर हमने जब परेशानी पूछी तो बताया कि यूपी बोर्ड से 84 परसेंट माक्र्स के साथ 12वीं को पास किया है। 45 दिन से नीट की कोचिंग पढ़ रही हूं लेकिन कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। दोनों स्टूडेंट्स कोचिंग से फी रिफंड पाने के लिए चक्कर काट रहे हैं।
इन्होंने हिंदी मीडियम से पास किया एग्जाम
अंग्रेजी मीडियम वालों के झंडे गाडऩे के बाद भी हिंदी मीडियम वालों ने अपना स्थान बनाया है। नीट के रिजल्ट में 99.51 परसेंटाइल माक्र्स पाने वाली जुबैदा फातिमा ने हलीम मुस्लिम इंटर कॉलेज से हिंदी मीडियम की पढ़ाई करके 12वीं को पास किया है। वहीं चाचा नेहरु स्मारक इंटर कॉलेज से 12वीं पास करने वाले रौनक आनंद ने जेईई एडवांस्ड में 11535 रैंक लाकर आईआईटी में एडमिशन की दावेदारी को पक्का किया है। इन दोनों के अलावा कई स्टूडेंट्स ऐसे हैं, जिन्होंने नीट और जेईई एडवांस्ड को पास किया है.
बोले एक्सपर्ट
हिंदी मीडियम वालों में कांफीडेंस की कमी होती है। इसके अलावा कोचिंग क्लास में भी अंग्रेजी मीडियम वाले स्टूडेंट्स ज्यादा होते हैं। इसके अलावा इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई भी अंग्रेजी में ही होती है। ऐसे में हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स को पढ़ाई छोडऩी नहीं चाहिए। इसके अलावा 10वीं से ही अंग्रेजी को भी मजबूत करना चाहिए।
मनीष रिछारिया, टीचर
इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई अंग्रेजी में ही होती है। इस वजह से कोचिंग वाले अंग्रेजी को वरीयता देते और कॉम्पटेटिव एग्जाम्स की बुक भी अंग्रेजी में ही आती हैं। अगर किसी तरह एंट्रेंस पास करके एडमिशन मिल भी गया तो पहले सेमेस्टर से ही दिक्कतें स्टार्ट हो जाती हैं।
मनोज पांडेय, टीचर
इंजीनियरिंग का पढ़ाई मोड इंग्लिश है। वहीं विदेशों से आने वाली किताबें भी इंग्लिश में ही आती हैं इसलिए इंग्लिश की नॉलेज होना तो जरूरी है। इसके अलावा क्लासेज तो मिलीजुली लैंग्वेज में चलती हैं। बाकी हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स को अगर कोई संशय होता है तो एक्स्ट्रा क्लास देकर प्राब्लम्स सॉल्व की जाती हैं।
डॉ। बृष्टि मित्रा, डायरेक्टर, यूआईईटी सीएसजेएमयू