इस बात का सुबूत मिला है उनके हाथों में मिले बैक्टीरिया से जो मल में पाये जाते हैं। क्वीन मैरी, यूनिवर्सटी ऑफ लंदन के विशेषज्ञों ने अपने शोध में पाया कि ब्रिटेन में 26 प्रतिशत हाथों में ये बैक्टीरिया पाए जाते हैं।

यही हाथ जब क्रेडिट कार्ड जैसी चीजों को छूते हैं तो ये बैक्टीरिया वहां भी पहुंच जाते हैं जिसका प्रमाण 10 प्रतिशत क्रेडिट कार्ड्स पर बैक्टीरिया की मौजूदगी से मिला। इस शोध में लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसन के विशेषज्ञों ने भी सहयोग किया।

ऊपर से झूठ भी बोलते हैं

शोध ने नतीजे हैरान करने वाले हैं जो बताते हैं कि लगभग 11 प्रतिशत हाथों में उतने ही कीटाणु मिले जितने मल में पाए जाते हैं। शोधकर्ताओं के दल में शामिल डॉक्टर रोन कटलर कहते हैं, ''लोग दावा कर सकते हैं कि वो नियमित रूप से हाथ धोते हैं, लेकिन विज्ञान इससे अलग बात बताता है.'' वैसे कई अन्य अध्ययन इस ओर इशारा करते हैं कि इस मामले में ब्रितानी लोगों की आदतें ठीक नहीं होती हैं।

ब्रिटेन में हाल में हुए एक अध्ययन में इस बात का भी प्रमाण मिला। शौचालयों में गए 99 प्रतिशत लोगों ने दावा किया कि उन्होंने हाथ धोए, लेकिन जब वीडियो रिकॉर्डिंग देखी तो हकीकत सामने आ गई। पता चला कि इन लोगों में से सिर्फ 32 प्रतिशत पुरुषों और 64 प्रतिशत महिलाओं ने हाथ धोए थे। यानी बाकी ने साफ झूठ बोला।

हारवर्ड यूनिवर्सिटी के एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि साल 2009 में जब स्वाइन फ्लू महामारी का रूप धारण कर रहा था, तब लोग हाथ धोने के प्रति थोड़े ज्यादा जागरूक हुए थे। तब अध्ययन में शामिल 53 प्रतिशत लोगों में हाथ धोने की आदत पाई गई थी।

हाईजीन ऑडिट सिस्टम्स की सह-संस्थापक डॉक्टर लिज़ा कहती हैं, ''ये बड़ी अजीब बात है लेकिन ब्रिटेन में ज्यादातर लोग सोचते हैं कि वो किसी बीमारी को अपने साथ लेकर नहीं घूम कर रहे हैं। वो एक ऐसे देश में रहते हैं जहां आधुनिक सुविधाएं हैं और वो सोचते हैं कि सब साफ-सुथरा है.''

डॉक्टर रोन कटलर कहते हैं, ''ब्रिटेन में लोग संक्रमण को लेकर बड़े चिंतित रहते हैं। लेकिन उन्हें गंदे हाथों और संक्रमण का रिश्ता तब तक समझ नहीं आता, जब तक संक्रमण हो नहीं जाता। ये और भी अजीब बात है, उन्हें लगता है कि उनके हाथ साफ हैं.''

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