भूटान में जन्मे और बर्लिन से डायरेक्शन के गुर सीख कर आए डायरेक्टर और अब फिल्म  प्रोडयूसर भी ओनीर को जुनून फिल्म ने फिल्मों  के लिए जुनूनी बना दिया। फिल्में देखने की शौकीन उनकी मम्मी उन्हें अपने साथ खूब फिल्में  दिखाती थीं, यहीं से उनके अंदर फिल्मों  के लिए अट्रैक्शफन पैदा हुआ.

ओनीर खुद को अथीस्ट कहते रहे हैं पर जब हमने पूछा कि उनकी फिल्मों में जो एक अंडरकरेंट पेन दौड़ता है उसको वो कैसे जस्टीफाई करते हैं। तो वह बोले दरअसल मेरे लिए प्यार ही गॉड है, वही मुझे ताकत देता है और वही मेरे करेकटर की दर्द से फाइट को जस्टी्फाई कता है.

ओनीर को ईश्वर के नाम पर फैले टेररिज्म और एक दूसरे से बैटर होने के कांपटीशन में रिलिजन के ह्यूमेनिटी से दूर हो जाने के शॉक ने अथीस्ट बना दिया। onir

अपनी फिल्मों  में भी उन्हों ने यही कहा है कि प्यार किसी भी शक्ल  या रिलेशन में हो वैल्युबल है और उसे एकसेप्ट किया ही जाना चाहिए। उनके कैरेक्टर अक्सर होमो सैकसुअल या गे होते हैं जिन को वो नार्मल लोगों से ज्यादा नार्मल मानते हैं

ओनीर कहते हैं कम से कम ऐसे लोगों में कम्युनिटी या कास्ट के नाम पर जान लेने की क्रुएलिटी तो नहीं होती। मेरे कैरेक्टर्स की सेक्सुएलिटी ना सिर्फ नार्मल है बल्कि जेनुइन भी है ऐसा ओनीर का कहना है।

फिल्मों  में सेक्सी और बोल्ड् सीन की वकालत करते हुए ओनीर कहते हैं कि कैसे किसिंग या लव मेकिंग सीन ऑब्सीन हो सकते हैं जबकि क्रुएलिटी और वायलेंस सोशली एक्सेपट कर लिए गए हैं। आप किसी को बेतहाशा मारते हैं और उसे ऑब्सीन नहीं कहते, मर्डर तक कर देते हैं पर पार्क में बैठ कर किसिंग कपल को गलत कहते हैं जो केवल प्यार कर रहे हैं.

ओनीर ने जागरण ‍फिल्म फेस्टिवल जैसे इनीशिएटिव्स की तारीफ करते हुए कहा कि मैं इस से काफी इंप्रेस हूं क्योंकि यह स्माल सिटीज में होते हैं और उनकी वजह से यहां के लोग हमारी फिल्में देख, समझ पाते हैं.  यह वो फिल्में हैं जिनको मॉल्स और बड़े सिनेमाहाल्स के लिए डिस्ट्री ब्यूटर्स यह कह कर नहीं एक्सेप्ट करते कि छोटे सिटीज में लोग यह फिल्में नहीं देखना चाहते।

टेक्निकल इंस्टीट्यूटस में और डिफरेंट प्लेसेज में स्टूडेंट और टीन एजर्स से मिल कर उनसे फिल्मो पर बात करके ओनीर बहुत फ्रेश और सैटिस्फाटइड फील करते हैं क्योंकि इससे उन्हें इस जेनेरेशन से इंटरएक्ट करने और उनके व्यूज को समझने का मौका मिलता है।

ओनीर इस बात से एग्री नहीं करते कि मसाला फिल्में टीन्स और यूथ को ज्यादा पसंद आती हैं और वो इश्यु बेस्ड फिल्मों पर अपनी लिमिटेड पॉकेट मनी स्पेंड नहीं करना चाहते। वह इस फैक्ट भी को डिनाय करते हैं कि हम अपनी रुटीन परेशनियों को भूलने के लिए मूवी जाते हैं इसलिए सीरियस टापिक पर बनी फिल्में  नहीं देखना चाहते हैं।

ऐसी फिल्में पहले भी बनी हैं, आज भी बन रही हैं और हमेशा बनेंगी। ऐसा नहीं है किसी भी दौर में प्राब्ल्म्स कम होती है लेकिन फिर भी लोग सीरियस फिल्मों  को देखते और एपरिसिएट करते रहे हैं तो अब भी करेंगे अगर उन्हें देखने का मौका मिले तो.

                                                                          Interview by Molly Seth for inextlive.com