कानपुर(ब्यूरो)। इन दिनों बिजनेसमैन नवरात्रि, धनतेरस, दीपावली और सहालग की तैयारी में जुटे हुए हैं। इसी तरह चौक सर्राफा बाजार भी फेस्टिवल्स और सहालग की तैयारी में जुटा है. 100 साल पुराना कानपुर का सर्राफा बाजार कभी होलसेल मार्केट कही जाती थी। यहां के लोगों की माने तो डेली कई केजी गोल्ड व सिल्वर और इनकी ज्वेलरी का बिजनेस होता था। सिटी ही नहीं कई डिस्ट्रिक्ट के ज्वेलर्स इसी बाजार से सोना-चांदी व ज्वेलरी ले जाते थे, देखते ही देखते यह मार्केट और डेवलप हुआ। इसके बाद ज्वेलर्स ने सिटी के अलग-अलग एरिया में शॉप व शोरूम खोल लिए। अब भी यहां होलसेल से रिटेल तक गोल्ड-सिल्वर व ज्वेलरी का बिजनेस होता है। यहां के बिजनेसमैन ने इस बार स्पेशल बंगाली डिजाइन के हार तैयार कराए हैैं।

विश्वसनीयता है यहां की पहचान
इस बाजार की एक खासियत है कि यहां से अगर आपने दस साल पहले कोई जेवर खरीदा है और उसे बेचना है तो इस बाजार की उसी दुकान में आइए। यहां आपसे पर्चा नहीं मांगा जाएगा बल्कि आपसे वर्तमान दाम पर सामान खरीद लिया जाएगा। यही वजह है कि यहां से जुड़े पुराने लोग आज भी इस बाजार में ही खरीदारी करने आते हैैं। यहां के कारोबारियों का कहना है कि जो कहा जाता है, बाजार में वही दिया जाता है। शादी हो या बर्थडे, हर तरह के लोगों के लिए गोल्ड और सिल्वर का गिफ्ट चाहिए तो आसानी से मिल जाएगी। दीपावली पर कारोबारियों ने यहां सिल्वर क्वाइन की तैयारी करनी शुरू कर दी है।

ज्वेलरी खरीदने आते थे अंग्र्रेज
सर्राफा बाजार के प्रवक्ता नीरज दीक्षित ने बताया कि उनके पिता बताते थे कि 100 पहले दुकानें एक ही लाइन में थीं, अंग्रेजों की पत्नियां इस बाजार में ज्वेलरी खरीदने आती थीं। यहां के पुराने डिजाइन की ज्वेलरी पसंद आने पर दूसरे देश से कानपुर घूमने आने वाली अंग्रेज महिलाएं भी यहां शॉपिंग करती थीं। देश आजाद हुआ, उसके बाद बाजार का और डेवलप हुई। दूसरी साइड में दुकानें शुरू हो गईं। 15 दुकानों से 168 रजिस्टर्ड दुकानेें बनाई गईं। देखते ही देखते धोबी मोहाल, बंगाली मोहाल, नारियल बाजार और इटावा बाजार तक दुकानें खुल गईं। एक-एक बिल्डिंग में 11-11 दुकानें हैैं। कोई कारीगरी कर रहा है तो कोई माला बना रहा है। कोई मोती का काम कर रहा है, तो कोई चांदी के सिक्के की ढलाई और डिजाइनिंग कर रहा है।


रात होते ही बंद हो जाता था कारोबार
शॉपकीपर्स ने अपने यहां बड़े तहखाने बनवा लिए थे, जो बदलते समय के साथ ही वॉल्ट में बदल गए। यहां के लोग बताते हैैं कि अगर बदमाश दुकान में आ जाता था तो कारोबारी अपने माल को हटाकर तहखाने में फेंक देता था। पहले शॉपकीपर की कुर्सी तहखानों के पास थी और अब वॉल्ट के पास। इस बाजार की संकरी सीढिय़ां देखकर कतई हैरान मत होइएगा, इसके पीछे भी एक लॉजिक है, जी हां सोना-चांदी लेकर अगर कोई भागना चाहे तो इन सीढिय़ों में फंसकर गिर जाता है।

दूसरे डिस्ट्रिक्ट से आते हैं कस्टमर
ज्वेलर्स बताते हैैं कि इस मार्केट में बड़ी संख्या में अन्य डिस्ट्रिक्ट से कस्टमर्स आते थे। इसके लिए ज्वेलर्स साथ कुछ अन्य डिस्ट्रिक्ट के भरोसेमंद लोग जुड़े होते थे। वह उनकी ब्रांडिंग करते थे.उनके ही मार्फत अन्य डिस्ट्रिक्ट में कारोबार होता था, वह कुछ साल बीते थे कि शहर के तमाम इलाकों में दुकानें खुलने लगीं, और अब ऑन लाइन का जमाना है।

कानपुर की सबसे पुरानी बाजार से एक चौक सर्राफा है, यहां दुकानों के अंदर बड़ी-बड़ी तिजोरियां हैैं, जिसमें कुछ भी रखा जा सकता है। पहले दूसरे प्रदेशों से लोग आते थे, अब उनका बिखराव हो गया, हालांकि इससे कारोबार पर कोई असर नहीं पड़ा है।
राजेंद्र मिश्रा बब्बू , अध्यक्ष कानपुर सर्राफा कमेटी

  • बाजार में धनतेरस, दीपावली की पूरी तैयारी हो चुकी है। यूं तो इस बाजार में पैर रखने की जगह नहीं होती है। पितृ पक्ष समाप्त होने के बाद से दुकानों में बड़ी संख्या में लोगों का आना जाना शुरू हो जाएग, पैर रखने की जगह भी नहीं मिलेगी।
    नीरज दीक्षित, प्रवक्ता कानपुर सर्राफा मार्केट
  • बंगाली कारीगरों के साथ विदेशी कारीगरों की डिजाइनों पर भी बाजार में काम हो रहा है। दीपावली और सहालग में महिलाएं इसे खरीदेंगी। इसके अलावा धनतेरस के लिए सिल्वर क्वाइंस की तैयारी भी कर ली गई है।
    रावेंद्र अवस्थी (कार्यकारिणी सदस्य)

    एक नजर में सर्राफा बाजार
    दुकानें (रजिस्टर्ड) : 168
    दुकानें (शोरूम) : 232
    रोज होता है : 1 करोड़ से ज्यादा का कारोबार

    ये है खासियत
    - विश्वसनीयता आज भी कायम है।
    - बाजार में कोई घटना नहीं होती है।
    - एक तरफ शहर कोतवाली है।
    - दूसरी तरफ मूलगंज कोतवाली है।
    - खाने-पीने का सामान भी मिलता है।