कानपुर (ब्यूरो)। आईआईटी कानपुर ने रैनसमवेयर साइबर अटैक से सिस्टम को सेफ रखने के लिए एक टेक्नोलॉजी को डेवलप किया है। कंप्यूटर में रैनसमवेयर साइबर अटैक्स को रोकने, पता लगाने और टर्मिनेट करने के लिए कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसई) डिपार्टमेंट ने एक सिस्टम तैयार किया है। यह सिस्टम रैनसमवेयर को अर्ली स्टेज में ही डिटेक्ट करने के बाद उसको टर्मिनेट करने का काम करेगा। आईआईटी की यह टेक्नोलॉजी लाइसेंसिग के लिए तैयार है। आईआईटी ने अपने इस इनोवेशन को टेक ट्रांसफर आईआईटी नाम के एक्स अकाउंट में शेयर की है। साथ ही टेक्नोलॉजी की विशेषताओं के बारे में भी बताया है।

यह है नई टेक्नोलॉजी
यह टेक्नोलॉजी रैनसमवेयर को उसके शुरुआती स्टेज में ही पहचान लेती है। इसके अलावा मजबूत साइबर सिक्योरिटी के उपायों और समय पर एक्शन की आवश्यकता पर जोर देकर अर्ली स्टेज में ही डिटेक्ट करके सिस्टम को सिक्योर करने का काम शुरू कर देता है। अन्य तरीकों के विपरीत, हम रजिस्ट्री स्तर पर इसके महत्वपूर्ण संकेतकों को पहचानकर रैनसमवेयर के प्री-एन्क्रिप्शन व्यवहार को प्राथमिकता देते हैं।

ऐसे करेगी काम
आईआईटी की नई टेक्नोलॉजी मार्केट में अवेलेबल टेक्निक्स से कहीं आगे है। यह इंफैक्टेड सिस्टम्स में अटैक के प्रभाव को कम करके तुरंत अटैक को टर्मिनेट करने का काम शुरू कर देता है। इसके अलावा ऑपरेटिंग डिस्ट्रप्शन, डैमेज और डाउनटाइम के ड्यूरेशन को कम करने का काम करती है। इस सिस्टम में अर्ली स्टेज में ही रैनसमवेयर का पता लगाने के लिए विंडोज, रजिस्ट्री मानिटरिंग और ट्रैप फाइल मानिटरिंग का पावरफुल कांबिनेशन है।

डिटेक्ट करना था चैलेंज
रैनसमवेयर के विक्टिम के सामने सबसे बड़ी प्राब्लम यह होती थी कि वह उसको डिटेक्ट नहीं कर पाते थे। जब तक रैनसमवेयर के होने का पता चलता था, उसके पहले फाइन इनक्रिप्ट और डाटा चोरी जैसे काम हो चुके होते थे। आईआईटी की इस न्यू टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह अर्ली स्टेज में ही रैनसमवेयर को डिटेक्ट करके टर्मिनेट कर देती है, जिससे विक्टिम को होने वाला नुकसान बच सकता है। यह आर्गेनाइजेशंस और बिजनेस कंपनी आदि के लिए काफी इंपार्टेंट है।

रिलायबल सोर्स से मिलता जुलता होता है ईमेल
रैंसमवेयर अटैक आमतौर पर फिशिंग ईमेल से शुरू होते हैं। अटैक करने वाला एक ईमेल भेजेगा जो किसी विश्वसनीय स्रोत, जैसे बैंक या सरकारी संगठन से प्रतीत होता है। इस ईमेल में एक अटैचमेंट या लिंक होगा, जिस पर क्लिक करने पर, विक्टिम के कंप्यूटर पर रैंसमवेयर डाउनलोड और इंस्टॉल हो जाएगा। एक बार रैंसमवेयर इंस्टॉल हो जाने के बाद, यह फाइलों को एन्क्रिप्ट करेगा और उन्हें डिक्रिप्ट करने के लिए फिरौती की मांग करेगा। अटैक करने वाले अक्सर फिरौती के लिए पसंदीदा मुद्रा के रूप में बिटकॉइन का उपयोग करते हैं, क्योंकि इसका पता लगाना मुश्किल होता है। रैंसमवेयर से प्रभावित व्यवसायों को वित्तीय हानि, डेटा हानि और प्रतिष्ठा क्षति सहित कई जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है। कुछ मामलों में, व्यवसायों को पूरी तरह से बंद भी करना पड़ा है।

यह है इंवेंटर्स की टीम
इस टेक्नोलॉजी को सीएसई डिपार्टमेंट के प्रोफेसर संदीप के शुक्ला के नेतृत्व में डेवलप किया गया है। प्रो। शुक्ला की टीम में चार और लोग भी शामिल रहे हैैं। टेक्नोलॉजी को पेटेंट कराने के लिए एप्लीकेशन किया गया है।