कानपुर (ब्यूरो) इस तकनीक को 'ए वेसल एंड ए मेथड फार प्यूरीफाइंग वाटर एंड मानीटङ्क्षरग क्वालिटी आफ वाटरÓ नाम दिया गया है। आईआईटी में पृथ्वी विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ। इंद्र शेखर सेन व संस्थान की इन्क्यूबेटेड कंपनी कृत्सनम टेक्नोलाजीज के संस्थापक के। श्रीहर्षा ने एमआईटी टाटा सेंटर के एमिली बैरेट हैनहासर, एमआइटी में मैकेनिकल इंजीनियङ्क्षरग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा। रोहित एन। कार्णिक, प्रो। अनास्तासियोस जान हार्ट, माइकल बोनो और वरिष्ठ प्रवक्ता ङ्क्षचतन एच। वैष्णव ने मिलकर इसे डेवलप किया है।

2025 तक स्थिति बदतर होगी
डॉ। इंद्रशेखर ने बताया किच् स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता देश की प्रमुख समस्या है। 844 मिलियन लोगों के पास पानी के बेहतर स्रोत नहीं हैं। वर्ष 2025 में यह स्थिति और बद्तर हो सकती है। यही नहीं, दुनिया में जल प्रणालियों के सभी स्रोतों में ट्रेस प्रदूषक पाए गए हैं। यह कैंसर, यकृत और गुर्दे की क्षति के साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसी समस्या को हल करने के लिए यह उपकरण विकसित किया गया है। निदेशक प्रो। अभय करंदीकर ने कहा कि इस उपकरण से पानी की गुणवत्ता की निगरानी और शुद्धिकरण में मदद मिलेगी।

इस तरह काम करेगी डिवाइस
डिवाइस के शुद्धिकरण जार में आयन एक्सचेंज रेजिन युक्त द्रव्य होता है, जो अशुद्धियों को सोखता है और अकार्बनिक प्रदूषण मुक्त पानी का उत्पादन होता है। इसके रखरखाव की लागत शून्य है। डिवाइस का उपयोग पीने के पानी के अलावा खाद्य और पेय उद्योग, अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग, विआयनीकृत पानी के उत्पादन और कृषि जल निगरानी में भी किया जा सकता है।