दुनिया भर में ब्रेन फैक्ट्री के नाम से मशहूर आईआईटी कानपुर शहर की सबसे बड़ी पहचान में एक है। यहां के टेक्नोक्रेट्स अपने हुनर को पूरी दुनिया में लोहा मनवा चुके हैं। रियल टाइम ट्रेन स्टेटस बताने वाला सॉफ्टवेयर सिमरन हो या फिर नैनो सैटेलाइट जुगनू दोनों ही इसी इंस्ट्रीट्यूट के होनहार छात्रों की देन है। कानपुर आईआईटी की कम्प्यूटर साइंस ब्रांच ने दुनिया में अपनी अलग ही धाक जमाई है। यूं तो आईआईटी कानपुर का जन्म 1959 में यूएसए के सहयोग से हुआ था लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने घर में जाने से पहले कई साल तक यह इंस्टीट्यूट एचबीटीआई व यूपीटीटीआई की गोद में खेला था।

----------

KANPUR: आईआईटी का जन्म 2 नवंबर को 1959 को हुआ था। जन्म के करीब दो महीने बाद ही एचबीटीआई की गोद में खेलने के लिए पहुंच गया था। आईआईटी की क्लासेज 1960 से एचबीटीआई व जीसीटीआई(अब यूपीटीटीआई बन गया है) में लगना शुरू हुई थीं। मार्च 1963 में आईआईटी अपने कैंपस में पहुंच गया था। आईआईटी कानपुर ने बहुत से स्टूडेंट्स को सफलता के शिखर पर पहुंचाया है। यहां से पासआउट स्टूडेंट्स देश और दुनिया की कई नामी गिरामी कंपनियों के मुखिया हैं।

पीके केलकर बने फ‌र्स्ट डायरेक्टर

आईआईटी मुंबई के मेंटर रहे प्रो। पुरुषोत्तम काशीनाथ केलकर बने थे। वह करीब दस साल तक संस्थान में रहे और इयर 1970 में आईआईटी मुंबई के डायरेक्टर बन कर वापस मुंबई चले गए थे। एचबीटीआई से जीसीटीआई होते इंस्टीट्यूट अपने कैंपस में प्रो। केलकर की लीडरशिप में ही पहुंचा था। कैंपस में उस टाइम साउथ लैब, हाल वन, गेस्ट हाउस, साइंस ब्लॉक और वर्कशॉप ही बना था। प्रो। केलकर के कार्यकाल में ही इंडो अमेरिकन प्रोग्राम शुरू हुआ था। जो इयर 1972 तक चला था। इसमें अहम भूमिका प्रोग्राम के कोऑर्डिनेटर रहे प्रो। ढाल ने निभाई थी। आज आईआईटी में 13 ब्रांच के साथ विभिन्न यूपी, पीजी और रिसर्च कोर्स चल रहे हैं।

खुद प्लेन उड़ाकर कैंपस पहुंचे थे प्रो। एरिक्सन

करीब दस साल तक अमेरिकन प्रोफेसर्स ने आईआईटी कानपुर में डेरा डालकर स्टूडेंट्स की क्लास ली थी। उस टाइम कम्प्यूटर साइंस ब्रांच इलेक्ट्रिकल के अंडर में आती थी। अमेरिकन प्रोफेसर एरिक्सन खुद प्लेन उड़ाकर अमेरिका से सात समुंदर पार करके आईआईटी पहुंचे थे। उस टाइम एयरोनॉटिकल ब्रांच के स्टूडेंट्स के लिए प्लेन एक सपना हुआ करता था। स्टूडेंट्स ने प्रो। एरिक्सन से मुलाकात करके एयरो प्लेन की बारीकियां समझी थीं। हालांकि इस टाइम एयरो स्पेस इंजीनियरिंग में 5 प्लेन हैं।

1979 में शुरू हुई सीएस ब्रांच

आईआईटी में पहला कम्प्यूटर हाथ के ठेले से रेलवे स्टेशन से लाया गया था। आईबीएम कंपनी के कम्प्यूटर का नंबर 1620 था। सीएस में एमेटक का कोर्स चल रहा था। कम्प्यूटर साइंस ब्रांच में बीटेक का कोर्स इयर 1979 में शुरू हुआ जो कि अब नेशनल व मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए पहली पसंद बनी हुई है। यहां एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की फ‌र्स्ट प्रॉयरिटी सीएस ब्रांच ही होती है। आईआईटी कानपुर की सीएस ब्रांच की धाक पूरी दुनिया में है।

आईआईटी की जमीं पर एलिम्को का जन्म

आईआईटी कैम्पस को 1250 एकड़ का एरिया दिया गया था। जिसमें कि अभी भी आईआईटी के पास एक हजार एकड़ से ज्यादा भूमि है। इयर 1972 में डायरेक्टर एमएस मुथाना के कार्यकाल में एलिम्को को करीब डेढ़ सौ हेक्टेयर भूमि दी गई थी। एलिम्को कैंपस आईआईटी की जमीं पर डेवलप किया गया था।

इन आईआईटियंस का दुनिया में नाम

इन्फोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति आईआईटी कानपुर में पढ़े हैं। इसके अलावा भारत रत्न प्रो। सीएनआर राव का आईआईटी कानपुर से करीबी नाता रहा है। वह आईआईटी में करीब दस साल तक फैकल्टी के रूप में काम करते रहे। इंडिगो एयरलाइंस के राकेश गंगवाल भी आईआईटी कानपुर के ही प्रोडक्ट हैं। पद्मभूषण अनिल अग्रवाल ने भी आईआईटी कानपुर से ही इंजीनियरिंग की शिक्षा ली है। जेके ग्रुप के यदुपत सिंहानिया ने भी आईआईटी कानपुर से बीटेक किया है। आईआईटी कानपुर से पढ़ाई करने के बाद आईएएस, आईपीएस, आईआरएस बनकर अपनी प्रशासनिक क्षमताओं से देश को विकास के पथ पर ले जा रहे हैं।