पांच दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में 50 से अधिक फ़िल्में दिखाई जा रही हैं जिनमें फ़ीचर फिल्में, लघु फिल्में और वृतचित्र भी शामिल हैं। महोत्सव में दिखाई जा रही सभी फ़िल्मों में भारत से कोई न कोई नाता ज़रूर है। कुछ फ़िल्में हिंदी भाषा तो कुछ अंग्रेज़ी के साथ-साथ अन्य भाषाओं में भी हैं।

पिछले कई सालों की तरह ही इस बार भी कई नए कलाकार और फ़िल्मकार अपनी फ़िल्में लेकर आए हैं। इनमें कई फ़िल्मकार भारत से भी आए हुए हैं। बेदाब्राता पाईन की चिट्टागांव फ़िल्म से महोत्सव की शुरूआत हुई। सन 1930 के दशक के भारत की एक कहानी पर आधारित इस फ़िल्म में मनोज बाजपई ने मुख्य किरदार निभाया है।

रजनीकांत की ‘थ्री’

दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के महानायक रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्य धनुश भी इस महोत्सव में अपनी पहली फ़ीचर फ़िल्म बतौर निर्देशक लेकर आई हैं। उनकी फ़िल्म का नाम है - थ्री ऐश्वर्य ने बीबीसी को बताया, “मैं तो बहुत नर्वस हूं, और बहुत उत्सुक्ता भी है कि पता नहीं कैसा करेगी फ़िल्म, लोगों को फ़िल्म कैसी लगेगी। मेरे पिताजी ने तो फ़िल्म देखी है उनको तो बहुत पसंद आई। उनको तो मुझपर बहुत गर्व है.”

वह कहती हैं कि उनके पिता ने उन्हे बहुत प्रोत्साहित किया है। अब निर्देशक की हैसियत से उनकी कई फ़िल्मों पर काम जारी है। आयोजकों का कहना है कि इस महोत्सव के ज़रिए कई नए और उभरते हुए कलाकारों और फ़िल्मकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने में मदद मिलती है।

उभरते फिल्मकारों को अवसर

फ़िल्म महोत्सव का आयोजन करने वाली संस्था इंडो अमेरिकन आर्टस काउंसिल की अध्यक्ष, अरूण शिवदसानी कहती हैं, “जब हमने 12 साल पहले यह महोत्सव शुरू किया था तो सिर्फ़ 12 फ़िल्में ही शामिल हुई थीं। अब तो दुनिया के कई देशों से फ़िल्में इसमें शामिल की गई हैं। और इनमें कई बहुत जाने माने फ़िल्मकार हैं तो कुछ अभी फ़िल्म स्कूल से पढ़ाई खत्म करके निकले हैं। लेकिन हम सभी कलाकारों और फ़िल्मकारों को समान अवसर देते हैं.”

एक इतालवी फ़िल्मकार इटालो स्पीनेली की फ़िल्म – गंगोर- की भी चर्चा है। न्यूयॉर्क में रहने वाले भारतीय मूल के अभिनेता सम्राट चक्रवर्ती ने गंगोर में मुख्य भूमिका निभाई है। सम्राट कहते हैं, “गंगोर फ़िल्म महाश्वेता देवी की पुस्तक पर आधारित है जो पुरुलिया गांव के मज़दूर वर्ग की कहानी है। और इसमें पत्रकारिता और मीडिया की भूमिका के बारे में भी चर्चा की गई है.”

कश्यप की ‘गैंग’

अनुराग कश्यप की फ़िल्म गैंग्स ऑफ़ वसेपुर का भी इस महोत्सव में प्रीमियर शो दिखाया जा रहा है। औऱ रितोपार्णो घोष की चितरांगड़ा फ़िल्म भी दर्शाई जा रही है। 2008 के मुंबई हमलों पर बनाई गई फ़िल्म – एंब्रेस – भी चर्चित है। इसमें एक अमरीकी कलाकार रैंडी रायन ने मुख्य भूमिका निभाई है।

इसके अलावा देख इंडियन सर्कस जिसमें तन्निष्ठा चटर्जी ने मुख्य भूमिका निभाई है, अशविन कुमार की इंशाअल्लाह फ़ुटबॉल, सुजोय दहाके की शाला और कई उभरते हुए युवा भारतीय मूल के अमरीकी फ़िल्मकारों की भी फ़िल्में दर्शाई जा रही हैं जैसे – लेट्स बी आउट, मुझसे फ़्रेंडशिप करोगे आदि।

कुछ पुरानी यादों को ताज़ा करने वाली फ़िल्में भी शामिल की गई हैं। जैसे देव आनंद की हम दोनों रंगीन जिसे डिजीटल तकनीक से रीमिक्स किया है। पिछले साल यह फ़िल्म भारत में दिखाई गई थी। और अब अमरीका में इसे कई शहरों में दिखाया जाएगा।

इसी तरह मशहूर निर्देशक श्याम बेनेगल की फ़िल्में जैसे ज़ुबैदा, सरदारी बेगम और मम्मो भी दिखाई जा रही हैं। भारत से बाहर पाकिस्तान में बनी ऑस्कर विजेता फ़िल्म सेविंग फ़ेस भी महोत्सव का हिस्सा है। इसके आलावा दक्षिण अफ़्रीका, ऑसट्रेलिया और श्रीलंका से भी कई फ़िल्में महोत्सव में शामिल हैं।

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